रांचीः झारखंड में स्कूली शिक्षा का स्तर पहले से ही खराब है, इसी वजह से यहां नीति आयोग अपना फ्लैगशिप प्रोग्राम "साथ" यानी सस्टेनेबल एक्शन फ़ॉर ट्रांसफार्मेशन ऑफ ह्यूमन कैपिटल को चला रहा है जो कि उड़ीसा और मध्यप्रदेश में भी चल रहा है, अभी पिछली सरकार ने झारखंड में करीब 4000 से ज्यादा स्कूलों को बेहतर बनाने के नामपर मर्ज कर दिया था.


हालांकि झारखंड के स्कूल की एक तस्वीर आपको हैरान कर सकती है, दरअसल झारखंड की राजधानी रांची से करीब 15 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद ये महादेव टोली का प्राथमिक विद्यालय है जिसे नवंबर 2019 के महीने में ही तोड़ दिया गया था. तोड़ने के पीछे का कारण स्कूल का जर्जर हो जाना बताया गया था, भवन को 20 नवंबर को ही तोड़ दिया गया और तब से लेकर आज तक बच्चे हर मौसम में खुले आसमान के नीचे पढ़ने को मजबूर हैं.



इस स्कूल में पहली से पांचवी की कक्षा के कुल 31 बच्चे हैं जो पढ़ते हैं, लेकिन स्कूल टूटने के बाद मजबूरी ऐसी की सभी एक साथ बैठकर पढ़ रहे हैं, अध्यापिका 2 हैं, एक मंजिता कच्छप और दूसरी पिंकी लूसी एक्का हैं.


एबीपी न्यूज ने जब बच्चों से बात की तो बच्चों ने कहा है कि ठंड और धूप, बरसात सभी परिस्थितियों में यहीं बैठे रहते हैं. टीचर ने भी कहा कि कई बार लिखकर दिया लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है. टीचर पिंकी ने कहा कि स्कूल के मिड डे मील का खाना देने में भी हमें बहुत दिक्कत होती है क्योंकि खुले में खाना देने से अक्सर खाने में गंदगी आ जाती है लेकिन मजबूर हैं क्या कर सकते हैं.


एबीपी न्यूज़ ने झारखंड सरकार के नए शिक्षा मंत्री जगन्नाथ महतो से इस बारे में बात की तो मंत्री खुद चलकर देखने की बात करने लगे और अधिकारी को भी साथ चलने के लिए फोन किया. हमारे सामने ही अधिकारियों के साथ मंत्री जगन्नाथ महतो खुद स्कूल गए और वहां जाकर स्कूल देखा और मौजूद अधिकारियों को स्कूल निर्माण में हुई देरी के लिए खूब डांट लगाई.


एबीपी न्यूज़ को जानकारी देने के लिए शुक्रिया कहते हुए मंत्री ने कहा कि हमने आदेश दिया है कि 10 दिन के अंदर स्कूल का निर्माण कार्य शुरू हो जाना चाहिए. हम 11वें दिन खुद यहां आएंगे. झारखंड के गरीब बच्चे खुले आसमान के नीचे पढ़ रहे हैं ये दुख की बात है.


गौरतलब है कि झारखंड में 2019-20 का कुल बजट 84429 करोड़ रुपये था जिसमें से 13.5 प्रतिशत बजट सिर्फ शिक्षा के लिए था, लेकिन इतना भारी भरकम बजट होने के बाद भी शिक्षा की क्या स्थिति है वो आप खुद देख सकते हैं, झारखंड आदिवासी बाहुल्य और पिछड़े राज्य के तौर पर जाना जाता है, लेकिन इस राज्य के पिछड़ा होने में कौन और किस तरह के लोग जिम्मेदार हैं वो आप भी ये तस्वीर देखकर समझ सकते हैं, जिस राज्य में शिक्षा की अलख को जगाने के लिए नीति आयोग तक प्रयास कर रहा है,जिस राज्य में 4000 से ज्यादा सरकारी स्कूलों का विलय कर दिया गया हो, जिस राज्य में पहले से ही अध्यापकों की कमी की वजह से गुणवत्ता वाली शिक्षा न मिल पा रही हो वहां इस तरह की तस्वीर कल के भविष्य को और डराती है.