ISIS Suicide Bomber Intercepted In Russia: इस्लामिक स्टेट यानी आईएसआईएस (Islamic State- ISIS) भारत के शीर्ष सत्ताधारी नेता पर हमले की फिराक में है. इसी मंशा से तुर्की (Turkey) से निकला आईएसआईएस एक फिदायीन (Suicide Bomber) आंतकी सोमवार को रूस की संघीय सुरक्षा सेवा (Federal Security Service -FSB) के हत्थे चढ़ा है. रूस के कानून प्रवर्तन विभाग के मुताबिक इस आतंकी को खासतौर पर भारतीय नेतृत्व (Indian Leadership) में एक वरिष्ठ लीडर को मारने का काम सौंपा गया था.


रूस के रास्ते भारत आने की फिराक में था फिदायीन


रूस की एफएसबी (FSB) ने सोमवार को बताया कि उसने शीर्ष भारतीय राजनेता को मारने के लिए खुद को उड़ाने की साजिश रचने वाले एक शख्स को पकड़ा है. यह फिदायीन आतंकी (Terrorist) रूस के रास्ते भारत ट्रांजिट के दौरान रोक लिया गया था. एफएसबी के मुताबिक इस शख्स को आतंकवादी समूह इस्लामिक स्टेट (आईएस, पूर्व में आईएसआईएस) ने तुर्की में अपने आत्मघाती हमलावर दस्ते में शामिल किया था. एफएसबी ने बताया कि यह शख्स एक अनाम मध्य एशियाई राष्ट्र (Central Asian Nation) का नागरिक है. लेकिन यह अप्रैल और जून 2022 के बीच तुर्की गणराज्य (Turkish Republic) में रहा था.


एफएसबी ने जारी किया फिदायीन का वीडियो


इसे लेकर एफएसबी ने एक वीडियो भी जारी किया. इसमें संदिग्ध का चेहरा धुंधला कर के दिखाया गया है. इस वीडियो में वह आईएसआईएस के लिए अपनी वफादारी की बात कर रहा है. ये फिदायीन आतंकी टूटी-फूटी रूसी भाषा में अपनी बात रख रहा है. उसने बताया कि इसके लिए उसे खास ट्रेनिंग मिली थी. बस उसे भारत में अपने हैंडलर से मिलकर अपने काम को अंजाम देना था. यही हैंडलर उसे आतंकवादी हमले के लिए जरूरी सामान मुहैया कराने वाला था. इस वीडियो में आतंकी यह भी कह रहा है कि उसके भारतीय टारगेट ने पैगंबर मोहम्मद (Prophet Mohammed) का अपमान किया था. 


सोशल मीडिया से बना कट्टरपंथी


एफएसबी (FSB) को इस आत्मघाती हमलावार ने बताया कि वह सोशल मीडिया (Social Media) की पोस्ट देखकर एक कट्टरपंथी (Radicalized) बन गया. इसके बाद वह इस्तांबुल में आईएस के एक प्रतिनिधि से भारत के लिए मिशन पर जाने से पहले अपनी वफादारी साबित करने को लेकर मिला था. उसके इस मिशन में उसने रूस को एक ट्रांजिट देश की तरह इस्तेमाल किया, लेकिन भारत पहुंचने से पहले ही वह पकड़ लिया गया. रूसी की एजेंसी ने साफ किया कि इस फिदायीन का लक्ष्य भारत के शीर्ष के राजनेता हैं.


कैसे पैदा हुआ आईएस


'इस्लामिक स्टेट' भी तालिबान के जैसे ही सलाफ़ी-जिहादी संगठनों से पैदा हुआ एक आतंकी सगंठन है, लेकिन यह तालिबान की तरह एक हिस्से में सीमित न रहकर पूरे विश्व में अपना प्रसार किए हुए है. ये एक सीमाओं के परे काम करने वाला विस्तारवादी संगठन है. अंतरराष्ट्रीय शांति के लिए काम करने वाले गैर-पक्षपाती थिंक टैंक कार्नेगी एंडोमेंट (Carnegie Endowment) की एक स्टडी के मुताबिक इस्लामिक स्टेट (IS) के पैदा होने की कई वजहें हैं.


मसलन 2003 का इराक पर हुआ अमेरिका का हमला, ईरान का शिया मिलिशिया संगठनों को समर्थन ऐसे कुछ कारक हैं. जहां इस क्षेत्र में राजनीतिक इस्लाम की मौज़ूदगी को आईएसआईएस की कट्टरता का पोषक माना जाता है. वहीं यह कहना गलत नहीं होगा कि सीरिया के गृहयुद्ध ने इसके विकास के लिए एक उपजाऊ माहौल दिया.


आईएस की पूरी दुनिया है दुश्मन


इस्लामिक स्टेट खुद को  इस्लाम का सच्चा नुमाइंदा मानता है. ये इस्लाम का वह रूप मानता है जो उनके शुरुआती मुसलमानों ने माना था, इसलिए ये चरमपंथी विचारों पर चलते हैं.ये हिंसा और क्रूर तरीकों में विश्वास रखता है. ये संगठन मानता है कि 'अल्लाह की किताब और उनके पैगंबर की सुन्नत में कही बातों को लागू करना जरूरी है इसलिए इनका जो भी विरोध करता है.


इसे वो पैगंबर की बेइज्जती से जोड़ते हैं. इसे ही वह अपने विरोधी को नेस्तनाबूद करने का हक मानते हैं और इस तरह के विरोध के लिए हर तरह के तरीकों का इस्तेमाल करना जायज ठहराते हैं. वह मानता है कि दुनिया के धार्मिक विश्वास 'अल्लाह की क़िताब से अलग है, इसलिए वह पूरी दुनिया को अपने दुश्मन की नजर से देखता है. 


पश्चिमी देशों के है खिलाफ


आईएस पश्चिमी देशों के लोकतांत्रिक सिद्धांतों की खिलाफत करता है. इस्लामिक स्टेट विश्वास करता है कि इस्लाम के सबसे बड़े दुश्मन खुद इसी धर्म में हैं. वह मानता है कि इन आतंरिक दुश्मनों का शिकार कर वह बाहरी दुश्मनों को धूल चटा सकता है. यही वजह है कि वो पश्चिमी देशों के संग रिश्ते रखने वाले मुस्लिम देशों की हुकूमतों और इस्लाम के अन्य संप्रदायों के मानने वालों को अपने शत्रु की तरह देखते हैं. इसका सबसे बड़ा उदाहरण सीरिया और इराक का युद्ध है. इस युद्ध में आईएस ने दर्जनों यूरोपीय देशों को चपेट में ले लिया था.


आईएस पर है आंतकी संगठन का ठप्पा


अमेरिका और यूरोप के देश आईएस 'आतंकवादी समूह' मानते हैं, जबकि तालिबान के आंदोलन को वो आतंकवाद से जोड़कर नहीं देखते हैं. अपनी स्थापना के शुरूआती दौर से ही आईएसआईएस  दुनिया की अलग-अलग जातियों और राष्ट्रीयताओं को अपने साथ जुड़ने के लिए कहता रहा है. आईएस ने इसमें कामयाबी भी हासिल की है. उसने अरब, कुर्द, तुर्क़, चेचन, उज़्बेक, कज़ाक, ताजिक, वीगर समुदाय के लोगों को अपने साथ जोड़ा है. 
 
आर्थिक निर्भरता के लिए तेल व्यापार पर कब्जा


ये भी एक जटिल सवाल है कि आखिर आईएस को आर्थिक मदद कहां से मिलती है. ये भी साफ है उसे किसी भी अंतरराष्ट्रीय या क्षेत्रीय संगठन या ताकतें खुलकर मदद नहीं करतीं. गौरतलब है कि आईएस ने  इराक़ और सीरिया के जीते गए इलाक़ों के तेल के व्यापार पर कब्जा जमा लिया था. इसके साथ ही अमेरिकी और यूरोपीय सैन्य उपकरण भी अपने कब्जे में लिए थे.


भले ही इस्लामिक स्टेट इराक़ और सीरिया नेस्तनाबूद दो गया हो लेकिन अफ़ग़ानिस्तान के 'ख़ुरासान प्रांत' में यह अभी अपना परचम लहराए हुए है. इसे साल 2015 में पंजाब और अफगान तालिबान के दल बदल करने वाले चरमपंथी संगठनों ने जन्म दिया था.


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