देश में इन दिनों लव जिहाद पर एक बार फिर से माहौल गर्माया हुआ है. मध्य प्रदेश में शिवराज चौहान की सरकार लव जिहाद पर कानून लाने का ऐलान कर चुकी है. इस कानून में सजा का प्रावधान भी किया गया है. वहीं मध्य प्रदेश की तर्ज पर ही देश में कई दूसरे राज्य भी लव जिहाद पर कानून लाने की तैयारी कर रहे हैं लेकिन क्या दो अलग-अलग धर्मों के लड़के-लड़कियों की शादी के लिए धर्म बदलना जरूरी है?


लव जिहाद के खिलाफ उत्तर प्रदेश, हरियाणा और कर्नाटक में कानून लाने की बात कही जा चुकी है. वहीं बिहार में भी लव जिहाद के खिलाफ कानून लाए जाने की आवाज उठ चुकी है. आमतौर पर लव जिहाद को लेकर धारणा है कि लव जिहाद के तहत मुस्लिम पुरुष, गैर-मुस्लिम महिलाओं से प्यार का नाटक करता है और उन महिलाओं को प्यार के जाल में फंसाकर उनका धर्म इस्लाम में परिवर्तित करवा देता है. इसी तरह के कृत्य रोकने के लिए देश के कई राज्यों में लव जिहाद को लेकर कानून बनाए जाने की मांग उठ रही है.


वहीं लव जिहाद से इतर सवाल उठता है कि अगर दो अलग-अलग धर्मों के वयस्क लड़के-लड़कियां शादी के लिए राजी होते हैं तो क्या वाकई धर्म परिवतर्न करना जरूरी है? इस सवाल का जवाब अगर कानून के नजरिए से देखें तो जवाब काफी सटीक तरीके से मिलता है.


स्पेशल मैरिज एक्ट-1954


भारत में शादी से जुड़े कई कानून बने हुए हैं. इनमें से एक कानून स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 है. इस कानून के तहत दो अलग-अलग धर्मों के लड़के-लड़कियां बिना अपने धर्म को बदले शादी कर सकते हैं. इस कानून के तहत दोनों को अपने धर्म में बदलाव करने की जरूरत नहीं है और बिना अपना धर्म बदले इस कानून के तहत रजिस्टर्ड शादी कर सकते हैं. इस कानून के तहत शादी करने के लिए पहले से जानकारी देनी होती है ताकि किसी को अगर कोई आपत्ति हो तो वो रजिस्ट्रार के ऑफिस जाकर अपनी आपत्ति दर्ज करा सकता है. इसके बाद शादी के लिए एक फॉर्म भरना होता है और मैरिज रजिस्ट्रार के पास जमा कराना होता है.


हिंदू मैरिज एक्ट-1955


वहीं दूसरी तरफ देश में कई पर्सनल लॉ भी हैं. इनमें से एक हिंदू मैरिज एक्ट-1955 है. इस कानून के तहत दो पक्षों में कोई शादी तभी वैध मानी जाएगी, जब लड़का और लड़की हिंदू धर्म से ही तालुल्क रखते हों. हिंदू धर्म के अलावा किसी और धर्म के लड़के या लड़की से शादी करना इस कानून के तहत वैध नहीं माना जाएगा. ऐसे में अगर कोई लड़का या लड़की हिंदू मैरिज एक्ट-1955 के अधीन शादी करना चाहता है तो दोनों पक्षकार का हिंदू होना अनिवार्य है.


वहीं अगर शादी में कोई एक पक्षकार हिंदू है और दूसरा पक्षकार गैर-हिंदू है तो शादी इस कानून के दायरे से बाहर होगी और यह शादी हिंदू शादी नहीं कहलाएगी. हालांकि इस कानून में जाति मायने नहीं रखती है. हिंदू अगर किसी भी जाति का हो तो इस कानून के तहत शादी मान्य होगी. इस कानून के तहत दोनों पक्षकारों का केवल हिंदू होना अनिवार्य है.


मुस्लिम विवाह विघटन अधिनियम-1939


मुस्लिम विवाह विघटन अधिनियम-1939 मुस्लिम धर्म के लोगों के मैरिज एक्ट के तौर पर जाना जाता है. इस कानून के तहत शादी (निकाह) तभी वैध होगी, जब लड़का और लड़की दोनों मुस्लिम होंगे. इस कानून के तहत मुस्लिम विवाह केवल दो मुसलमानों के बीच होता है. हालांकि मुस्लिम पुरुष को अहले किताब या जैसे यहूदी और ईसाई औरत से निकाह करने की आजादी दी गई है. यह निकाह भी वैध होगा. हालांकि यह कानून मुस्लिम स्त्रियों को ईसाई और यहूदी पुरुष से निकाह करने से रोकती है लेकिन अगर कोई मुस्लिम स्त्री किसी यहूदी या ईसाई पुरुष से निकाह करे और बाद में वह पुरुष मुसलमान बन जाए तो निकाह वैध माना जाएगा.


वहीं मुस्लिम विवाह केवल एक सिविल संविदा मात्र है क्योंकि निकाह के समय अनुष्ठान किए जाते वक्त किसी धार्मिक कर्मकांड की कोई आवश्यकता नहीं है. निकाह में स्वीकृति आवश्यक होती है वहीं इसका प्रतिफल 'मेहर' को माना जा सकता है जो पुरुष की ओर से महिला को दिया जाता है. वहीं निकाह को तलाक के माध्यम से खत्म किया जा सकता है.