क्या भारत और रुस के रिश्तों में कड़वाहट आने की शुरुआत हो चुकी है? या फिर रूस को भारत की अमेरिका से नजदीकी खलने लगी है जिसकी वजह से उसने अचानक पाकिस्तान को ज्यादा महत्व देना शुरु कर दिया है? ये सवाल इसलिये कि पिछले नौ साल में ऐसा पहली बार हुआ है,जब रूसी विदेश मंत्री सेर्गेई लावरोव भारत दौरे पर आए तो वे पाकिस्तान भी गए.वहां जाकर उन्होंने पाकिस्तान को विशेष सैन्य उपकरण की सौगात देने का भी एलान कर दिया.जाहिर है कि यह भारत के लिये ज्यादा चिंता का विषय इसलिये भी है कि भारत अब तक रूस को अपना सबसे करीबी दोस्त मानता आया है.हालांकि कुटनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि रूस ने इसके जरिये इस क्षेत्र में सैन्य संतुलन बनाने का संकेत देते हुए यह भी जताने की कोशिश की है कि उसे अमेरिका के मुकाबले कमजोर न आंका जाये.



वैसे यह कोई पहला मौका नहीं है.इससे पहले रूस और भारत में दूरिया बढ़ने की अटकलें तब और तेज़ हुईं थीं जब दो दशक बाद पहली बार रूस और भारत के बीच पिछले साल होने वाली वार्षिक बैठक को टाल दिया गया था. इसे लेकर भी काफ़ी गहमागहमी हुई लेकिन दोनों देशों ने इसकी वजह कोविड 19 महामारी को बताया था.पुतिन मई 2000 में रूस के राष्ट्रपति बने और तब से भारत-रूस के बीच यह वार्षिक बैठक लगातार होती रही है. ऐसा पहली बार हुआ, जब वार्षिक बैठक को टाला गया था.



पिछले करीब  पांच साल से ही रूस और पाकिस्तान की बढ़ती क़रीबी की बात अंतराष्ट्रीय मीडिया में उछलती रही है. नवंबर 2019 में रूसी सेना के जवान पाकिस्तान में सैन्य अभ्यास के लिए आए थे. इसके अलावा, पाकिस्तान में रूस एलएनजी पाइपलाइन बना रहा है.पाकिस्तान में सैन्य अभ्यास को लेकर रूस पहले ही सफ़ाई देने के साथ ही यह भी कह चुका है कि भारत को रूस और पाकिस्तान के संबंधों को लेकर चिंतित नहीं होना चाहिए.



दरअसल, भारत-रूस के संबंधों में चीन की भूमिका एक खलनायक की ही रही है.लेकिन दूसरी तरफ,चीन लगातार रूस के साथ अपने रिश्ते बेहतर करने में लगा है. वो चाहता है कि रूस और भारत के बीच चौड़ी खाई खोद दी जाए. चीन का सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स यह लिख चुका है कि "भारत की अमेरिका से बढ़ती नजदीकी से रूस और भारत के बीच पारंपरिक हथियारों के व्यापार को गंभीर झटका लगा है. भारत के हथियारों के आयात में रूस का आधे से अधिक हिस्सा है, लेकिन, हाल ही में अमेरिका ने भारत पर दबाव बढ़ाया है कि वो रूस से हथियारों की खरीद से दूर रहे."



वैसे भी इतिहास पर नजर डालें, तो रूस और पाकिस्तान के रिश्ते कभी सहज नहीं रहे. ऐसा पाकिस्तान बनने के बाद से ही है. शीत युद्ध के दौरान भी पाकिस्तान अमेरिकी खेमे में था. अफगानिस्तान में भी अमेरिका ने रूसी मौजूदगी के खिलाफ पाकिस्तान की मदद से तालिबान को खड़ा किया था. अभी भारत और अमेरिका की करीबी बढ़ी है तो रूस से दूरियां. रूस और चीन, अमेरिका के वैश्विक नेतृत्व को चुनौती दे रहे हैं. पाकिस्तान पहले से ही चीन के साथ है, ऐसे में उसका रूस के करीब आना ज्यादा चौंकाता नहीं है.



करीब एक दशक में पाकिस्तान का दौरा करने वाले रूस के विदेश मंत्री लावरोव ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान और सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा से भी मुलाकात की.इस दौरे में अर्थव्यवस्था, व्यापार, आतंकवाद से निपटने और रक्षा के क्षेत्र में द्विपक्षीय सहयोग को और बढ़ावा देने की बात हुई.पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने दोहराया कि पाकिस्तान के निमंत्रण पर पुतिन अपनी सुविधानुसार जल्द से जल्द इस्लामाबाद का दौरा करेंगे.उन्होंने कहा कि पाकिस्तान अफगान शांति प्रक्रिया को बढ़ावा देने में रूस के प्रयासों की सराहना करता है.



लावरोव ने रूसी ऊपकरण के ब्योरे दिए बिना कहा, “पाकिस्तान को विशेष सैन्य उपकरण की आपूर्ति समेत हम पाकिस्तान की आतंकवाद रोधी क्षमता को बढ़ाने के लिए तैयार हैं.”दोनों पक्षों ने सैन्य अभ्यासों के आयोजन पर भी सहमति जताई है.रूस और पाकिस्तान 2016 से संयुक्त अभ्यास - द्रुजबा का हर साल आयोजन करते हैं.