International Women's Day 2021: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 (2015-2016) के तहत किया गया विश्लेषण लिंगानुपात की खराब स्थिति को पेश करता है. सर्वेक्षण में 5.53 लाख से ज्यादा जन्म का विश्लेषण किया गया. रिपोर्ट से पता चला कि जन्म के समय लिंगानुपात भारत में दूसरे, तीसरे और उससे ज्यादा होने के साथ बिगड़ता जा रहा है.


भारत में खराब होती लिंगानुपात की स्थिति 


'स्‍टडीज इन फैमिली प्‍लानिंग' नाम की वैश्विक पत्रिका में प्रकाशित रिसर्च से खुलासा हुआ कि जन्म के समय लिंगानुपात आम तौर पर बढ़ा है. पहले जन्म के समय प्रति 100 लड़कियों पर 107.5 लड़कों का जन्म हुआ, वहीं तीसरे जन्म के समय आंकड़ा बढ़कर प्रति 100 लड़कियों पर 112.3 लड़कों तक पहुंच गया.


विशेषज्ञों का कहना है कि सामान्य परिस्थितियों में जन्म के समय लिंगानुपात प्रति 100 लड़कियों पर 103 से 106 लड़कों के बीच होता है. डेटा से पुष्टि हुई कि जब समुदाय-स्तरीय प्रजनन क्षमता प्रति महिला 2.8 बच्चों से ज्यादा थी, तो जन्म के समय लिंगानुपात सामान्य 103.7 था. मगर जब प्रजनन क्षमता प्रति महिला 1.5 बच्चे हुआ, तो जन्म के समय लिंगानुपात का आंकड़ा बढ़कर 111.9 पर पहुंच गया.


रिसर्च टीम के सदस्य प्रोफेसर अभिषेक सिंह का कहना है, "रिसर्च से पता चलता है कि छोटे और अमीर घरानों में लिंग का चुनाव करने की दिलचस्पी बढ़ी है." लिंग का चुनाव के पीछे बढ़ोतरी की वजह बेटे की चाहत है और इसका संबंध आर्थिक-सामाजिक है. इससे अवैध गतिविधियों जैसे लिंग के निर्धारण में शामिल होने की दिशा को बढ़ाता है."


बेटे की प्राथमिकता से आ रहा जन्म में अंतर


इससे संभवत: ये पता चलता है कि संपन्न परिवारों ने अपना विशेषाधिकार लिंग निर्धारण के विकल्पों को चुना है. रिपोर्ट के मुताबिक, अगर एक लड़का पहले से न हो तो जन्म के समय लिंगानुपात 111.4 रहा, जबकि पहले से लड़के की मौजूदगी पर जन्म के समय लिंगानुपत 105.8 हो गया. शोधकर्ताओं का कहना है कि बेटे की चाहत में दूसरा, तीसरा बच्‍चा पैदा करने से लिंगानुपात बिगड़ रहा है.


राज की बात: सरकार का वो आर्थिक सुधार प्लान जो बिगड़ी अर्थव्यवस्था को लायेगा पटरी पर


Women’s Day पर संसद में उठी आवाज़, महिला सांसदों ने की 50 फीसदी आरक्षण की मांग