नई दिल्ली: एलएसी पर चल रही तनातनी के बीच वायुसेना प्रमुख आरकेएस भदौरिया ने यह कहकर सनसनी फैला दी है कि भविष्य में कोई युद्ध हुआ तो इसमें वायुसेना की एक निर्णायक भूमिका होगी.


आखिर भविष्य‌ के युद्ध में भारत अपनी एयरो-स्पेस पावर का किस तरह इस्तेमाल करेगा, ये जानने के लिए भारतीय वायुसेना ने एबीपी न्यूज को खासतौर से पूर्वी लद्दाख स्थित अपने एक फ्रंटलाइन एयरबेस पर आमंत्रित किया और एयर-ऑपरेशन्स की ताकत का नमूना पेश किया. यहां वायुसेना के फाइटर जेट्स सहित मिलिट्री ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट्स और हेलीकॉप्टर तैनात हैं जो पिछले पांच महीने से दिन-रात अपने ऑपरेशन्स कर रहे हैं.


एबीपी न्यूज को बताया गया कि इस बेस से चीन से सटी एलएसी महज़ सात (07) मिनट की उड़ान की दूरी पर है तो पाकिस्तान पांच (05) मिनट की दूरी पर. सामरिक महत्व के इस फ्रंटलाइन एयरबेस से पूर्वी लद्दाख से सटी एलएसी और करगिल से सटी एलओसी की निगहबानी की जाती है. क्योंकि भारतीय वायुसेना टू-फ्रंट वॉर यानि चीन और पाकिस्तान से किसी भी चुनौती से लड़ने के लिए पूरी तरह से तैयार है.


सुबह की पहली किरण फूटती ही भारतीय वायुसेना के ऑपरेशन्स शुरू हो जाते हैं. शुरूआत हुई मिलिट्री ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट यानि मालवाहक विमानों से. सबसे पहले बारी थी एएन-32 और आईएल-76 एयरक्राफ्ट्स की. दोनों ही रूस के बने हुए सैन्य मालवाहक विमान हैं और पिछले दो-तीन दशकों से भारतीय वायुसेना के वर्कहॉर्स बने हुए हैं. इसके बाद बारी थी अमेरिका से लिए दुनिया के सबसे बड़े मिलिट्री ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट, सी-17 ग्लोबमास्टर की.


पिछले पांच महीनों से यानि जब से चीन से पूर्वी लद्दाख से सटी लाइन ऑफ एक्चुयल कंट्रोल यानि एलएसी पर टकराव शुरू हुआ है तभी से भारतीय वायुसेना ने दिल्ली और चंडीगढ़ से लद्दाख के इस एयरबेस तक 'एयर-ब्रिज' बनाया हुआ है‌ ताकि एलएसी पर सैनिकों के साथ साथ टैंक, तोप, सैन्य साजो सामान और खाने पानी का सामान भेजा जा सके. ये सभी सैनिक और सैन्य साजो सामान देश के प्लेन्स यानि मैदानी इलाकों से‌ यहां पहुंचाया जाता है.


यहां सामान पहुंचने के बाद आगे की जिम्मेदारी हेवी लिफ्ट हेलीकॉप्टर्स, चिनूक, मी-17वी5 और चीता-चेतक की है. पिछले साल अमेरिका से लिए चिनूक हेलीकॉप्टर्स के चलते ही भारत ने बेहद तेजी से एलएसी पर अपने सैनिकों की तैनाती की थी साथ ही विंटर्स यानि सर्दी के मौसम के लिए एडवांस स्टॉकिंग भी पूरी कर ली. यहां से इन्हें सामाना डीबीओ, नियोमा और फुकचे जैसी एडवांस लैंडिंग ग्राउंड्स (एएलजी) पर भेजा जाता है. हाल ही में खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वायुसेनाध्यक्ष, आरकेएस भदौरिया ने भी कहा था कि दौलत बेग ओल्डी (डीबीओ) एएलजी के ओपरएट करने से चीन भी भौचक्का रह गया था.


लेकिन चीन सबसे ज्यादा 'सरप्राइज' यानि भौचक्का हुआ था जब भारत ने पूर्वी लद्दाख से सटी 826 किलोमीटर लंबी एलएसी पर अपनए सैनिकों और सैन्य साजो सामान की तैनाती की.


दरअसल, करीब पांच महीने पहले जब पूरी दुनिया कोरोना महामारी से जूझ रही थी और भारतीय‌ सेना ने भी कोरोना प्रोटोकॉल के तहत अपने सभी युद्धभ्यास और मूवमेंट बंद कर दिए थे, तब चीन की पीएलए सेना ने मिलिट्री एक्सरसाइज के बहाने बड़ी तादाद में अपने सैनिको, टैंक और आर्टलरी यानी तोपखाने की तैनाती पूर्वी लद्दाख से सटी एलएसी पर तैनात कर दी थी. चीन दरअसल भारत को सरप्राइज कर एलएसी के विवादित इलाकों पर कब्जा करना चाहता था. लेकिन थलसेना ने भारतीय वायुसेना की मदद से त्वरित कारवाई करते हुए एलएसी पर 'मिरर-डिप्लोयमेंट' कर दी, जिससे चीन भौचक्का रह गया.


पिछले पांच महीनो में भारत ने चीन को सिर्फ भौचक्का ही नहीं किया बल्कि ये भी साबित कर दिया कि युद्ध की परिस्थिति में भारतीय वायु‌सेना चीन पर भारी पड़‌ सकती है.


आपको बता दें कि हाल ही में वायुसेना प्रमुख आरकेएस भदौरिया ने ऐलान किया था कि अगर चीन से कोई युद्ध हुआ तो भारतीय वायु‌सेना चीन पर भारी पड़ सकती है. इतना ही नहीं वायुसेना टू-फ्रंट वॉर यानि चीन और पाकिस्तान दोनों से निपटने के लिए भी तैयार है.


एबीपी न्यूज की टीम जिस खास कवरेज के लिए पूर्वी लद्दाख के फॉरवर्ड एयरबेस पर पहुंची थी वहां भारतीय वायुसेना के फ्रंटलाइन फाइटर जेट कॉम्बेट एयर पैट्रोलिंग कर रहे थे. मिग-29 (अपग्रेडेड) की गर्जना लगातार एलएसी तक पहुंच रही थी. इसके अलावा सुखोई, मिराज2000 और एलएसी तेजस तो यहां दिन रात कॉम्बेट एयर पैट्रोलि्ग करते ही है साथ ही हाल ही में फ्रांस से लिए रफाल लड़ाकू विमान भी सरहद की सुरक्षा में लगातार उड़ान भर रहे हैं. ये सभी फाइटर जेट्स उड़ान भरते वक्त पूरी तरह आर्म्ड रहते हैं यानि मिसाइल और बमों से लैस रहते हैं.


जानकारी के मुताबिक, पिछले पांच महीने में भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमानों ने एलएसी से‌ सटी‌ एलएसी पर इतनी फ्लाईंग की है कि चीनी रडार सिस्टम डिटेक्ट करते करते थक गया है.  चीन की रडार सिस्टम में इतनी फ्लाईंग के चलते ही चीन ने एलएसी पर शुरूआती धोखा देने के बाद अब कोई मिस-एडवेंचर नहीं किया है. साफ है भारत भी '62 के युद्ध की कोई गलती नहीं दोहराना चाहता जब चीन के खिलाफ एयरोस्पेस पॉवर का इ‌स्तेमाल नहीं किया गया था. लेकिन अब अगर चीन ने कोई दुस्साहस किया तो थलसेना के साथ मिलकर भारतीय वायुसेना इंटीग्रेटेड ऑपरेशन्स के लिए पूरी तरह तैयार है. यहां तक की अगर पाकिस्तान ने चीन की मदद के लिए दूसरा फ्रंट यानि मोर्चा खोला तो इसके लिए भी वायुसेना पूरी तरह तैयार है.


भारत की वायु शक्ति का ही नतीजा है कि चीन अब बातचीत के जरिए एलएसी विवाद को सुलझाना चाहता है. सोमवार को एक बार फिर से दोनों देशों के बीच कोर कमांडर स्तर की बैठक मोल्डो में होने जा रही है.  लेकिन भारत ने साफ कर दिया है कि एलएसी पर इस वक्त ‘नो पीस नो वॉर’ यानि ना तो युद्घ की स्थिति है और ना ही शांति के हालात हैं. इसीलिए भारतीय वायुसेना आने वाली सर्दियों में भी अपने गार्ड्स डॉउन नहीं करने जा रही है.


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