Railways Ministry: रेल मंत्रालय ने जोनल अधिकारियों को निर्देश दिया है कि ऐसी ट्रेनों की पहचान की जाए जिनमें रिजर्व स्लीपर कोचों में कम यात्री सवारी करते हैं. जिससे इन कोचों को अनरिजर्व कोचों में फिर बाद में उन्हें जनरल कोचों में बदला जा सके. इससे जनरल डिब्बों में भीड़ कम की जा सकेगी.


हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट में बताया गया कि 21 अगस्त को इंटरनल कम्युनिकेशन किया गया जिसके मुताबिक रेलवे बोर्ड ने जीएससीएन (जनरल स्लीपर क्लास) कोचों को जीएस (अनारक्षित) में बदलने के निर्देश जारी किए हैं. खासतौर पर उन ट्रेनों में जिनमें दिन के समय बहुत कम सीटें होती हैं या फिर जहां मांग बहुत कम है.


इंटरनल कम्युनिकेशन में क्या कहा गया?


कम्युनिकेश में कहा गया, “ये निर्देशित किया जाता है कि कृपया उन ट्रेनों/सेक्शनों की पहचान की जाए जहां पर ऑक्यूपेंसी बहुत कम है और स्लीपर क्लास आरक्षित (जीएससीएन) कोचों को जीएस (अनारक्षित) में बदलने की सिफारिश भेजें, ताकि अतिरिक्त रेलवे राजस्व पैदा होने के साथ-साथ स्थानीय यात्रियों/कम्युटर्स/डेली पैसेंजर्स को भी लाभ मिल सके. इस मामले में शीघ्र कार्रवाई अपेक्षित है.”


मामले के जानकार रेलवे के एक अधिकारी ने कहा, “अनारक्षित डिब्बों में भीड़भाड़ एक समस्या बनी हुई है क्योंकि जनरल डिब्बों के टिकट तब तक जारी किए जाते हैं जब तक कि ट्रेन निकल नहीं जाती है और रास्ते में रुकने वाले स्टेशनों पर बिना किसी लिमिट के रुक जाती हैं.”


किस कोच में कितनी सीटें?


एसी के फर्स्ट क्लास कोच में 18-24 बर्थ (पारंपरिक आईसीएफ या नए एलएचबी कोच के आधार पर) हो सकती हैं, एक टू-टियर एसी कोच में 48-54 बर्थ हो सकती हैं. एक थ्री-टीयर एसी कोच में 64-72 बर्थ और स्लीपर कोच में 72-80 बर्थ होती हैं. जबकि एक अनारक्षित कोच में 90 यात्री बैठ सकते हैं, आमतौर पर उनके अंदर 180 से अधिक यात्री पाए जाते हैं.


सीटों के मामले पर रेलवे के एक पूर्व अधिकारी ने बताया, “जनरल कोचों में भीड़भाड़ होने के पीछे की एक वजह ये भी है कि रेलवे पिछले कई सालों में ऐसे कोचों की संख्या में कमी कर रहा है जिससे कि एसी थ्री-टायर कोचों को समायोजित किया जा सके. ये ज्यादा लाभदायक हैं.” उन्होंने आगे कहा, “कोविड-19 के बाद, रेलवे ने जनसाधारण एक्सप्रेस, अनारक्षित जनरल डिब्बे वाली ट्रेनें चलाना बंद कर दिया क्योंकि उन्हें घाटे में चलने वाला माना जाता था.”


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