पिछले कुछ सालों में भारत और चीन के रिश्ते अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है. अरुणाचल प्रदेश के तवांग में चीनी सैनिकों द्वारा की गई कार्रवाई ने भारत के साथ उसके रिश्ते को और भी खराब कर दिया है. दोनों देशों के बीच विवाद की वजह 3440 किलोमीटर लंबी सीमा है. यहां पर चीन हमेशा नए-नए दावे करता रहता है.


चीन ने अपने क्षेत्रीय दावे को मजबूत करने के लिए विवादित लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल यानी LAC पर कई सारे सीमावर्ती गांव बसाए हैं. सिर्फ इतना ही नहीं, बल्कि उसने सड़कों के जाल को भी मजबूत किया है. ये सीमावर्ती गांव चीनी सेना को बेहद कम समय में सैनिकों और हथियारों को एक-जगह से दूसरी जगह करने में मदद करने का काम करते हैं. 


अब चीन की इन्हीं हरकतों के जवाब में भारत ने भी अपनी तैयारी शुरू कर दी है. पिछले साल घोषित किए गए बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 'वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम' का ऐलान किया.


केंद्र सरकार का बड़ा ऐलान 


इसी ऐलान को आगे बढ़ाते हुए अब केंद्र सरकार ने बड़ा फैसला लिया है. दरअसल मोदी कैबिनेट ने उत्तर के चार सरहदी राज्यों में वाइब्रेंट विलेज योजना को मंजूरी दे दी है. 


बुधवार 15 फरवरी को पीएम मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय कैबिनेट की बैठक हुई. इस बैठक में कई योजनाओं को मंजूरी दी गई है. बैठक के बाद किए गए एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने बताया कि मंत्रिमंडल ने वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम के लिए 4800 करोड़ रुपये आवंटित करने की मंजूरी दी है. जिसमें 2500 करोड़ रूपये सड़कों के निर्माण पर खर्च किया जाएगा. ये बजट वित्तीय वर्ष 2022-23 और 2025-26 के लिए है. 


अनुराग ठाकुर ने किया प्रेस कॉन्फ्रेंस, जानें क्या कहा


केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, 'वाइब्रेंट विलेज योजना भारत की उत्तरी सीमा के सामरिक महत्व को ध्यान में रखते हुए बहुत जरूरी है. इस योजना के पूरे होने के बाद इन सीमावर्ती गांवों में सुनिश्चित आजीविका मुहैया कराई जा सकेगी. जिसका फायदा ये होगा कि इस गांव से पलायन कर रहे लोग रुक जाएंगे. इसके अलावा इस योजना से सीमावर्ती क्षेत्रों की सुरक्षा को भी मजबूती मिलेगी. 


कहां-कहां होगा योजना लागू


सरकारी बयान के अनुसार यह योजना लद्दाख ,हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश के कुल 19 जिलों और 46 के सीमावर्ती ब्लॉकों 2966 गांवों में शुरू किया जाएगा. सबसे पहले चरण में इस योजना के तहत 662 गांव को चुना गया है. इस गांव में किए जाने वाले विकास का पूरा खर्च केंद्र सरकार करेगी. इस योजना के निर्माण से यहां रहने वाले लोगों के लिये गुणवत्तापूर्ण अवसर प्राप्त हो सकेगा.


अब जानते हैं क्या है वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम


सरकार की ओर से जारी प्रेस रिलीज के मुताबिक, चीन की सीमा के साथ सटे भारत के गांवों में बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए इस वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम की शुरुआत की गई है. 


इस प्रोग्राम के तहत लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश के कुल 19 जिलों के 2966 गांवों में सड़क और अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत किया जाएगा. इसके अलावा ये कार्यक्रम बॉर्डर एरिया डेवलपमेंट प्रोग्राम से अलग होगा और केंद्र सरकार इसका खर्च वहन करेगी.


इस योजना के तहत इन इलाकों में पर्यटन केंद्रों का भी निर्माण किया जाएगा. इसके अलावा उत्तरी सीमा के गांवों में मौसमों के अनुकूल सड़क, पीने का पानी, 24 घंटे बिजली और मोबाइल-इंटरनेट कनेक्टिविटी पर जोर दिया जाएगा.  


दूरदर्शन और शिक्षा संबंधी चैनलों की सीधी सुविधा पहुंचाई जाएगी और खुद को सेटल करने के लिए लोगों की सहायता भी की जाएगी.


समय समय पर होगी अधिकारियों की पोस्टिंग


इस योजना का सही तरीके से संचालन हो ये सुनिश्चित करने के लिए समय समय पर केंद्र, राज्य या जिले के अधिकारियों को इन गांवों में भेजा जाएगा. जिससे ना सिर्फ गांवों का विकास हो सके बल्कि वहां रहने वाले लोगों की और वहां की समस्याओं का समाधान निकाला जा सके.  इस कदम से इन को छोड़ कर पलायन रोकने में मदद मिलेगी और वहां पर रोजगार और स्वरोजगार के अवसर पैदा होंगे. 


इस योजना से भारत का क्या होगा फायदा 


अमेरिका के रक्षा मंत्रालय ने एक रिपोर्ट में कहा था कि चीन ने भारत की सरहद के कई किलोमीटर के अंदर एक गांव बसा लिया है. इसके अलावा अरुणाचल के सरहद के निकट चीनी फौजियों की गतिविधियां काफ़ी बढ़ गई हैं. यही कारण है कि भारत का भी सीमावर्ती इलाकों के गांव को बसाना बेहद जरूरी हो गया है. जब गांव बसते हैं तो सेना को जानकारी मिलने में मदद मिलती है. 


वर्तमान में मोदी सरकार का प्लान है कि वह देश के सीमावर्ती गांवों में विकास पर फोकस करेगी और वहां से पलायन कर रहे लोगों को रोका जाएगा. यह कदम सुरक्षा के लिहाज से भी बहुत ज्यादा जरूरी है क्योंकि कई बार जो घुसपैठ सेना की नजर से बच जाते हैं उसकी जानकारी गांववाले पहुंचा सकते हैं.  


उदाहरण के तौर पर साल 1999 कारगिल युद्ध को याद करते हैं. कहा जाता है कि सबसे पहले वहां के स्थानीय ताशी नामग्याल नाम के एक शख्स ने पहाड़ों में पाकिस्तानी घुसपैठ को देखा था और सेना को जानकारी दी थी.


चीन कैसे कर रहा भारत की घेराबंदी, क्या है वजह


साल 2022 के मई महीने में भारतीय सेना के पूर्वी कमांड के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल आरपी कलीता का अपने एक बयान में बताया था कि चीन की सेना अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर तेजी से इन्फ्रास्ट्रक्चर विकसित कर रहा है. उस वक्त कई सैटेलाइट तस्वीरें सामने आई थीं जिसमें देखा गया कि चीन लद्दाख की पैंगोंग त्सो लेक में पुल बना है. 


पैंगोंग त्सो झील पर चीन का ये दूसरा पुल निर्माण था. इसी झील पर पहला पुल बनकर तैयार हो गया है. नया पुल लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) से 20 किलोमीटर दूर है. 


क्या है मकसद 


चीन इस तरह का घुसपैठ इसलिए कर रहा ताकि अक्साई चिन इलाके में वह भारत के खिलाफ अपनी स्थिति को मजबूत कर सकते है. दरअसल चीन ने भारत के अक्साई चिन इलाके पर जबरन कब्जा कर रखा है और अब वहां पर सड़कों और पुलों का जाल बिछा रहा है. 


विपक्ष ने कब-कब मोदी सरकार पर हमला 


केंद्र सरकार चीन के साथ सीमा विवाद से जिस तरह निपट रही है उस पर राहुल गांधी समेत कई विपक्षी नेता लगातार हमला बोलते रहे हैं.  


अरविंद केजरीवाल: हाल ही में आप आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया था कि चीन को "सज़ा देने" के बजाय, मोदी सरकार इस पड़ोसी देश से बड़ी मात्रा में आयात की अनुमति देकर "बीजिंग को इनाम" दे रही है, जबकि भारतीय सैनिक चीनी सैनिकों का डटकर मुकाबला कर रहे हैं और अपनी जान तक दे देते हैं. 


राहुल गांधी: भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा था, 'अरुणाचल और लद्दाख में जो हो रहा है उससे मैं बेहद चिंतित हूं. गलवान और डोकलाम आपस में जुड़े हैं. ये चीन की रणनीति का हिस्सा है ताकि वो आज नहीं तो कल पाकिस्तान के साथ मिलकर हम पर हमला कर सके.' 


उन्होंने आगे कहा कि चीन और पाकिस्तान एक साथ हमें झटका देने की तैयारी कर रहे हैं. भारत सरकार चुप नहीं बैठ सकती. सीमा पर जो हुआ है सरकार को देश को बताना चाहिए और आज से ही कार्रवाई शुरू करनी चाहिए. 


राहुल गांधी ने साल 2022 के सितंबर महीने में पीएम मोदी पर हमला बोलते हुए आरोप लगाया था कि पीएम मोदी ने उन्ह चीन को बिना किसी लड़ाई के सौ वर्ग किलोमीटर जमीन दे दी.