Nari Shakti Tessy Thomas India's Missile Woman: एक ऐसा क्षेत्र जहां पुरुषों का वर्चस्व रहा हो, उस क्षेत्र में जाकर अपना लोहा मनवाने वाली शख्सियत का नाम टेसी थॉमस (Tessy Thomas) है. वह भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में मिसाइल वुमन (Missile Woman) के नाम से मशहूर है और हो भी क्यों न? वह अग्नि मिसाइल प्रोग्राम (Agni Missile Program) की अहम जिम्मेदारी संभालने वालीं भारत की पहली महिला हैं.


अभी वह रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) में महानिदेशक एयरोनॉटिकल प्रणाली (Aeronautical Systems) हैं. "जेंडर मायने नहीं रखता आप एक साइंटिस्ट की तरह काम करते हो न कि एक औरत के तौर पर" की फिलॉसफी पर यकीन करने वाली देश की शान टेसी मिसाइल के क्षेत्र में महिलाओं के लिए पथप्रदर्शक साबित हुई हैं. 


थुंबा रॉकेट स्टेशन के विमान लुभाते थे


मिसाइल वुमन डॉ टेसी थॉमस का जन्म अप्रैल 1963 में केरल (Kerala) के अलाप्पुझा में सीरियन क्रिश्चन परिवार में हुआ. मदर टेरेसा के नाम पर उन्हें टेसी नाम दिया गया. जब टेसी 13 साल की थीं तो उनके पिता को लकवा मार गया था. उनकी मां टीचर थीं इसके बाद उन्होंने घर बाहर की सारी जिम्मेदारी उठा ली. टेसी का घर थुंबा रॉकेट लॉचिंग स्टेशन (Thumba Equatorial Rocket Launching Station ) के पास था, इसलिए बचपन से ही मिसाइल उन्हें आकर्षित करने लगीं थीं.


यहीं नहीं विमानों को उड़ते देखकर वो बहुत उत्तेजित होती थी. बचपन से ही उनके मन में वैमानिक प्रणालियों की वैज्ञानिक बनने का सपना जो उन्होंने हकीकत में ही नहीं बदला बल्कि उसमें कीर्तिमान स्थापित कर डाला. परिवार में छह भाई-बहनों में उनकी चार बहनें और एक भाई था. एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने बताया था कि उनकी मां ने मुश्किलों को दरकिनार कर सभी भाई-बहनों की एजुकेशन की तरफ बहुत ध्यान दिया. वह बताती हैं कि उनकी कामयाबी में उनकी मां, उनके होम टॉउन और प्रकृति का विशेष योगदान रहा. 


गणित और भौतिक विज्ञान से रहा प्यार


टेसी थॉमस ने सेंट माइकल्स हायर सेकेंडरी स्कूल और सेंट जोसेफ गर्ल्स हायर सेकेंडरी स्कूल एलेप्पी अलाप्पुझा से अपनी पढ़ाई पूरी की. पढ़ाई के दौरान ही उन्हें  गणित और भौतिकी विषय बहुत पसंद आते थे. नतीजन टेसी ने  स्कूल में 11वीं और 12वीं में गणित में 100 फीसदी अंक हासिल किए. विज्ञान में भी उन्हें 95 फीसदी से अधिक स्कोर किया.आगे की पढ़ाई के लिए देश के लिए प्रेरणा बनी इस महान वैज्ञानिक को ऋण लेना पड़ा था.


गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज त्रिशूर से इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के लिए उन्होंने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से 100 रुपये हर महीने का लोन लिया. उन्होंने अपनी प्रतिभा के बल पर स्कूल में स्कॉलरशिप भी मिली. इसमें उनकी ट्यूशन फीस शामिल थी. लोन की वजह से उन्हें बी.टेक करते हुए होस्टल में रहने की हिम्मत मिली.


स्कूल-कॉलेज के दिनों में ही वह राजनीतिक मुद्दों को लेकर मुखर रही और अन्य गतिविधियों में भी बढ़चढ़ कर भाग लिया. उन्होंने खेलों में विशेष रूप से बैडमिंटन में बेहतरीन प्रदर्शन किया. वह इंस्टीट्यूट ऑफ आर्मामेंट टेक्नोलॉजी, पुणे जो अब डिफेंस इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड टेक्नोलॉजी के रूप में जाना जाता है से गाइडेड मिसाइल में एम.टेक है. उन्होंने ऑपरेशंस मैनेजमेंट में एमबीए के साथ ही डीआरडीओ के मार्गदर्शन में गाइडेड मिसाइल (Guidance Missile) में पीएचडी. की. टेसी की शिक्षा इंडियन नेशनल एकेडमी ऑफ इंजीनियरिंग , इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियर्स तथा टाटा एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस जैसी बड़ी यूनिवर्सिटीज में हुई.


पूर्व राष्ट्रपति एपीजे बनाया अग्नि परियोजना का अगवा


टेसी थॉमस 1988 में डीआरडीओ (DRDO) में शामिल हुईं. यहां उन्होंने नई पीढ़ी की बैलिस्टिक मिसाइल, अग्नि के डिजाइन और विकास पर काम किया. उन्हें पूर्व राष्ट्रपति और वैज्ञानिक डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने अग्नि परियोजना के लिए नियुक्त किया था.  टेसी 3,000 किमी रेंज की अग्नि-III मिसाइल परियोजना की सहयोगी परियोजना निदेशक भी रहीं. वह मिशन अग्नि IV की परियोजना निदेशक थीं, जिसका 2011 में सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया था. इसके बाद उन्हें 2009 में 5,000 किमी रेंज अग्नि-V के परियोजना निदेशक बनाया. इसका 19 अप्रैल 2012 को सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया. साल 2018 में वह डीआरडीओ में वैमानिकी प्रणाली की महानिदेशक बनीं. 


नाम हैं कई खिताब भी


टेसी थॉमस ने साल 2012 में एक इंटरव्यू के दौरान कहा था कि वो 'शांति के हथियारों' पर काम कर रही हैं. उन्होंने बताया कि जब वह डीआरडीओ में आई थीं तो वहां बेहद कम औरतें काम करती थीं, लेकिन मौजूदा वक्त में उनकी संख्या में बढ़ोतरी हुई और अब औरतें अहम मिसाइल प्रोग्राम में काम कर रही हैं. साल 2012 में टेसी थॉमस को लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय पुरस्कार से दिया गया. यह पुरस्कार मिसाइल तकनीक के क्षेत्र में देश को आत्मनिर्भर बनाने के उल्लेखनीय योगदान के लिए दिया जाता है. यही नहीं उन्हें 2019 में आईआईटी कानपुर और 2018 में कर्नाटक केंद्रीय विवि ने डॉक्टर ऑफ साइंस की मानद डिग्री भी दी हैं. साल 2022 का लोकमान्य तिलक राष्ट्रीय पुरस्कार भी उनके नाम है. साल 2022 का के एपीजे अवॉर्ज भी उनके नाम है. वह भारतीय विज्ञान के सबसे बड़े पुरस्कार शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार से भी सम्मानित हैं. 


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