नई दिल्ली: समलैंगिकता पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से नाराज भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के वरिष्ठ नेता और सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि इससे एचआईवी के मामले बढ़ेंगे. साथ ही उन्होंने उम्मीद जताई की सरकार सात जजों की संवैधानिक पीठ के सामने अपील करेगी.


राज्यसभा सांसद स्वामी ने समलैंगिकता पर कहा, ''यह अमेरिकी खेल है. जल्द ही यहां गे बार खोले जाएंगे जहां पर होमोसेक्सुअल जा सकते हैं. इससे एचआईवी के मामले बढ़ेंगे. इन परिमाणों को देखने के बाद मुझे उम्मीद है कि अगली सरकार सात जजों की बेंच के पास पूरा मामला लेकर जाएगी. जो पांच जजों की बेंच के फैसले को पलट देगी.''


उन्होंने कहा, ''किसी के निजी जीवन में क्या हो रहा है, यह किसी के लिए विषय नहीं होना चाहिए और न ही उसे दंडित किया जाना चाहिए. यह एक जेनेटिकल डिसऑर्डर है, जैसे कि किसी व्यक्ति की 6 अंगुलियां होती हैं. इससे निपटने के लिए मेडिकल रिसर्च होना चाहिए.''





आपको बता दें कि कांग्रेस और अन्य दलों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है. कांग्रेस नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने ट्वीट कर कहा, "सुप्रीम कोर्ट का धारा 377 पर फैसला बेहद महत्वपूर्ण है. एक पुराना औपनिवेशिक कानून जो आज के आधुनिक समय की सच्चाई से अलग था, समाप्त हो गया, मौलिक अधिकार बहाल हुए हैं और लैंगिक-रुझान पर आधारित भेदभाव को अस्वीकार किया गया है."


वहीं कांग्रेस नेता शशि थरूर ने बीजेपी पर निशाना साधते हुए कहा कि यह फैसला गोपनीयता, गरिमा और संवैधानिक स्वतंत्रता के आधार पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 पर उनके रुख को सही साबित करता है.

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थरूर ने ट्वीट में कहा, "यह फैसला धारा 377 और गोपनीयता, गरिमा और संवैधानिक स्वतंत्रता के आधार पर मेरे रुख को सही साबित करता है. यह उन बीजेपी सांसदों के लिए शर्म की बात है, जिन्होंने लोकसभा में शोरगुल के साथ मेरा विरोध किया था."


वहीं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले की तरह हम भी इसे (समलैंगिकता) अपराध नहीं मानते. हालांकि संघ ने पुराने रुख को दोहराते हुए कहा कि समलैंगिक विवाह और ऐसे संबंध ‘‘प्रकृति के साथ संगत’’ नहीं होते हैं. आरएसएस ने कहा, ‘‘ये संबंध प्राकृतिक नहीं होते इसलिए हम इस तरह के संबंध का समर्थन नहीं करते.’’ संघ ने दावा किया कि भारतीय समाज ‘‘पारंपरिक तौर पर ऐसे संबंधों को मान्यता नहीं देता है.’’


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आज सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा कि एलजीबीटीआईक्यू (लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर/ट्रांससेक्सुअल, इंटरसेक्स और क्वीर/क्वेशचनिंग) समुदाय के दो लोगों के बीच निजी रूप से सहमति से सेक्स अब अपराध नहीं है. फैसले को पढ़ते हुए चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि दूसरे की पहचान को स्वीकार करने के लिए दृष्टिकोण और मानसिकता को बदलने की जरूरत है. उन्हें जिस रूप में वे हैं, उसी रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए न कि इसे मुद्दा बनाना चाहिए कि उन्हें क्या होना चाहिए.