Holika Dahan 2023: देश के कई हिस्सों में मंगलवार (7 मार्च) को होलिका दहन हुआ. मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ समेत कई हिस्सों से तस्वीरें सामने आई हैं. यहां परंपरानुसार पूरे विधि-विधान से होलिका दहन किया गया. बता दें कि इस बार होलिका दहन सोमवार-मंगलवार (6 और 7 मार्च) यानी दो दिन हुआ है. परंपरा के अनुसार, होलिका दहन के बाद ही रंग और गुलाल से होली खेली जाती है.


मध्य प्रदेश के छतरपुर में महिलाओं ने होलिका दहन से पहले पूजा की. वहीं, छत्तीसगढ़ के रायपुर में भी इसी प्रकार होलिका दहन हुआ. यहां से आए एक वीडियो में होलिका दहन के अवसर पर गाजे-बाजे की ध्वनि सुनाई दे रही है. 


मध्य प्रदेश के छतरपुर में होलिका दहन






छत्तीसगढ़ के रायपुर में होलिका दहन 






बिहार के पटना मे भी धूमधाम से होलिका दहन संपन्न हुआ. भारी संख्या में लोगों ने होलिका दहन के अनुष्ठान में हिस्सा लिया. 




(PTI Photo) 


फाल्गुन महीने की पूर्णिमा को होता है होलिका दहन


पौराणिक और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, होली का त्यौहार बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मानाया जाता है. हिंदी कलेंडर के अनुसार, फाल्गुन महीने की पूर्णिमा को होलिका दहन किया जाता है. अगले दिन रंग और गुलाल से होली खेली जाती है. रंगों के पर्व को धुलेंडी या धूलि जैसे नामों से भी जाना जाता है. होली का पर्व मनाने के पीछे कई कारण बताए जाते हैं. फसलों के उत्सव से भी जोड़कर इसे देखा जाता है क्योंकि होलिका दहन के समय नया अनाज जैसे कि चना और गेहूं अग्नि देव को अर्पित किया जाता है. वहीं होली के लिए सबसे ज्यादा भक्त प्रह्लाद, होलिका और हिरण्यकश्यप की पौराणिक कथा प्रचलित है. 


होलिका दहन के पीछे की एक कहानी


पौराणिक मान्यता के अनुसार, असुरराज हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रह्लाद हमेशा भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहते थे. पुत्र के इस आचरण से हिरण्यकश्यप बेहद क्रोधित रहते थे. एक बार उन्होंने अपनी बहन होलिका से कहा कि वह प्रह्लाद को लेकर आग में बैठ जाए. होलिका को यह वरदान मिला हुआ था कि आग उसे नहीं जला सकती है. बुआ होलिका जब भतीजे प्रह्लाद को अग्नि में लेकर बैठी तो भगवान ने अपने भक्त की रक्षा की. हवा कुछ इस तरह चली की होलिका जलकर भस्म हो गई और प्रह्लाद सुरक्षित बच गए. इसीलिए इसे बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना गया और बताया जाता है कि तभी से होलिका दहन की परंपरा शुरू हो गई.


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