भारतीय वायुसेना क्यों कर रही है ये ड्रिल?
1965 के युद्ध में पाकिस्तान के लड़ाकू विमानों ने ताबड़तोड़ बमबारी कर भारत के कई एयरबेस को तहस नहस कर दिया था. ऐसे में भारतीय वायुसेना को अपने ऑपरेशन करने में काफी दिक्कत आई थी. इसीलिए मॉर्डन वॉरफेयर में एयरबेस के साथ साथ लड़ाकू विमानों को जमीन पर उतारने के लिए खास तरह के एक्सप्रेसवे और हाईवों को ही लैंडिग ग्राउंड की तरह इस्तेमाल किया जाता है इसीलिए भारतीय वायुसेना इस तरह की ड्रिल कर रही है.
दरअसल, युद्ध के समय में किसी भी देश की कोशिश होती है कि वो दुश्मन के एयरबेस और एयर-स्ट्रीप को तहस नहस कर दे ताकि उसके लड़ाकू विमानों को उड़ने या फिर लैंड करने का मौका ना दिया जाए. इसीलिए हाईवों को इस तरह के कोंटिजेंसी प्लान के लिए तैयार किया जाता है.
भारत में पहली बार 2015 में मिराज विमानों ने की थी एक्सप्रेस वे पर लैंडिग
भारत में ये तीसरी बार है कि वायुसेना के लड़ाकू विमान किसी एक्सप्रेसवे पर टच डाउन कर रहे हैं. इससे पहले भी एक बार लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस वे पर लड़ाकू विमान टच डाउन कर चुके हैं. भारत में सबसे पहले मई 2015 में यमुना एक्सप्रेस-वे पर मथुरा के करीब मिराज विमानों ने लैंडिग की थी.
पाकिस्तान ने साल 2000 में की थी ऐसी ड्रिल
दुनिया की का वायुसेनाएं हाईवे और एक्सप्रेस वे को लैंडिग स्ट्रीप के तौर पर इस्तेमाल कर चुकी हैं. अमेरिका, आस्ट्रेलिया, जर्मनी, चीन, नार्थ कोरिया और साउथ कोरिया इत्यादि देश काफी सालों से इस तरह से ड्रिल कर चुके हैं. यहां तक की पाकिस्तान ने भी साल 2000 में ऐसा अभ्यास किया था.
वायुसेना ने 12 नेशनल हाईवों को लैंडिग के लिए चुना
वायुसेना ने हाल ही में सड़क और परिवहन मंत्रालय के साथ मिलकर 12 ऐसे नेशनल हाईवों को चुना हैं जहां इस तरह की लैंडिग कराई जा सकती है. इसके लिए हाईवों को और अधिक मजबूत बनाया जाता है ताकि लैंडिग करते वक्त हाइवे टूट ना जाए. क्योंकि अगर लैंडिग के वक्त हाईवे टूट गया तो लड़ाकू विमानों को नुकसान हो सकता है. कई हजार किलोमीटर प्रतिघंटा की स्पीड से उड़ान भरने वाले लड़ाकू विमान बेहद तेजगति से जमीन पर लैंड करते हैं. इसीलिए उनके लिए लैंडिग स्ट्रीप भी खास तरह के टार से बनाई जाती है.