Preamble of Constitution: एबीपी न्यूज़ के Hamara Samvidhan सीरीज में हम आज आपको संविधान की प्रस्तावना के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं. अब आपके मन में सवाल आ रहा होगा कि आखिर संविधान की प्रस्तावना है क्या. दरअसल संविधान निर्माता जैसा भारत चाहते थे, उसी के मुताबिक उन्होंने संविधान बनाया. पूरा संविधान जिन विचारों पर आधारित है, उसका परिचय देती है- संविधान की प्रस्तावना.


संविधान की प्रस्तावना से हमें ये ज्ञात होता है कि हमारे संविधानकर्ता कैसा भारत बनाना चाहते थे. जब 1950 में संविधान को हम अमल में लाए, तब हमारे संविधानकर्तोओं ने एक ऐसे भारत की कल्पना की थी, जहां सबको न्याय मिल सके, सब समान हों और एक मजबूत राष्ट्र बने. जब भी संविधान के कोई प्रावधान के इंटरप्रिटेशन का सवाल आता है, तब हम ये देखते हैं कि प्रिएंबल में क्या कहा गया है. एक तरह से अगर आप देखें, जैसे गीता सार का एक मात्र अर्थ बस यही है कि कर्मण्ये वाधिकारस्ते वैसे ही भारत के संविधान को अगर समझना है तो उसके प्रिएंबल को समझना होगा.


देश क्या है, कैसा है, इसके शासन का आधार क्या है, नागरिकों से क्या अपेक्षा है? हर बात इस प्रस्तावना में है


हम, भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्वसंपन्न समाजवादी पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए, तथा उसके समस्त नागरिकों को: सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता, प्राप्त कराने के लिए, तथा उन सब में, व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित कराने वाली, बन्धुता बढ़ाने के लिए, दृढ़ संकल्प होकर अपनी संविधानसभा में आज तारीख 26 नवम्बर 1949 ईस्वी को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं.


इस प्रस्तावना का एक-एक शब्द भारत का परिचय देता है. सबसे पहले लिखा है -


संपूर्ण प्रभुत्वसंपन्न समाजवादी पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य - मतलब ऐसा देश जो किसी के अधीन नहीं है. जो पूरे समाज के कल्याण के लिए काम करता है. जहां शासन हर धर्म को समान दृष्टि से देखता है. जहां लोकतंत्र है, लोग खुद अपने प्रतिनिधि चुनते हैं.


आगे सभी नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय देने का ज़िक्र है - साफ है कि भारत में हर नागरिक को सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक तौर पर एक जैसा अवसर देना, विषमताओं को दूर करना भारत की शासन व्यवस्था का आदर्श माना गया है.


इसके बाद नागरिकों को विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता दिलाने और व्यक्ति की गरिमा, राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित कराने वाली, बन्धुता बढ़ाने की बात कही गई है.


एक-एक शब्द बहुत महत्वपूर्ण है. इसके मुताबिक भारत मे सभी नागरिकों को अपनी बात कहने, अपना धर्म मानने की आज़ादी है। सबका सम्मान है और सबको बराबरी का दर्जा हासिल है. शासन के साथ नागरिकों का भी उद्देश्य होगा कि वो देश की एकता, अखण्डता को बढ़ावा देने। आपस में मेल-मिलाप, भाईचारा रखें.


इस प्रस्तावना को सभी मौजूदा और भावी नागरिकों की तरफ से संविधान सभा ने 26 नवंबर 1949 को स्वीकार किया. हमारे जो भी भारतीय नागरिक हैं वो सभी के सभी संविधान से बंधे हैं. कोई ये नहीं कह सकता कि हम संविधान का उल्लंघन कर देंगे, या कोई ये नहीं कह सकता कि हम संविधान से ऊपर हैं, देश का चाहे कितना ही पावरफुल आदमी हो, वो भी संविधान से बंधा है. वो भी खुद को ये नहीं कह सकता कि हम 'अबव द कॉन्स्टीट्यूशन' हैं यानी संविधान से ऊपर हैं.


भारत को शासन व्यवस्था देने वाला, हर नागरिक को बुनियादी हक देने वाला संविधान भारत की आत्मा है और इस आत्मा का परिचय, उसकी परिभाषा है 'संविधान की प्रस्तावना'. देश को संविधान देते वक्त संविधान सभा के सदस्यों ने जो शपथ ली, उससे हम सब बंधे हैं. हमारा फर्ज है कि हम संविधान के बुनियादी मूल्यों को समझें, उनका सम्मान करें.


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