गुजरात विधानसभा चुनाव रिजल्ट 2017: बीजेपी भले ही जीत गई हो लेकिन हार्दिक पटेल ने बीजेपी को बड़ा नुकसान पहुंचाया है. पांच सीडी सामने आईं, होटल की सीसीटीवी फुटेज वायरल हुई लेकिन फिर भी हार्दिक का जलवा कम नहीं हुआ. हालांकि हार्दिक ने चुनाव नहीं लड़ा लेकिन फिर भी उन्होंने चुनावों को काफी हद तक प्रभावित किया.


पाटीदार बहुल इलाकों में कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन किया है. चुनाव के नतीजे साफ होने के बाद हार्दिक ने दो ही बातें कहीं हैं एक EVM में छेड़खानी हुई और दूसरी आंदोलन जारी रहेगा. उन्होंने कहा कि मैं बीजेपी को उसकी जीत के लिए अभिनंदन नहीं दूंगा क्योंकि ये जीत बेईमानी से हुई है. गुजरात की जनता जागृत हुई है लेकिन और जागृत होना जरूरी हैं. EVM के साथ छेड़छाड़ हुई है यह हकीकत है. जनता के अधिकारों की लड़ाई जारी रहेगी.


जानकारों का भी मानना है कि अब हार्दिक के पास आंदोलन के अलावा दूसरा विकल्प भी नहीं हैं क्योंकि चुनाव में वो बीजेपी के विरोध की हद तक पहुंच गए थे. गुजरात चुनाव में हार्दिक पटेल पाटीदारों के अनामत आंदोलन के बड़े चेहरे के तौर पर उभरे थे. गुजरात में कुल 15 फीसदी पाटीदार हैं. पाटीदारों में 40% कड़वा पटेल और 60% लेउआ पटेल हैं. इनमें से करीब 68% पाटीदारों ने 2012 में बीजेपी को वोट दिया था. लेकिन लगता है कि हार्दिक पटेल कुछ हद तक बीजेपी को करंट देने में कामयाब रहे हैं.


बीजेपी को दिए झटके का सबसे बड़ा सबूत ऊंझा से मिला. ऊंझा मेहसाणा जिले में पाटीदार बहुत सीट है. पीएम मोदी का गृहनगर वडनगर भी ऊंझा सीट के तहत ही आता है. ऊंझा सीट कांग्रेस ने बीजेपी से जीत ली है. यहां से कांग्रेस की आशा पटेल को 81797 मत मिले जबकि बीजेपी के मौजूदा हेवीवेट उम्मीदवार नारायण भाई पटेल को 62268 वोट मिले. पिछली बार नारायण भाई ने आशा पटेल को हराया था.


गुजरात में पाटीदार बहुल 72 सीट हैं. कड़वा पटेलों का सौराष्ट्र और उत्तर गुजरात में 32 सीटों पर असर है. कच्छ सौराष्ट्र इलाके में बीजेपी को 23 सीट मिली हैं जबकि कांग्रेस को 30 सीटों पर जीत मिली. उत्तर गुजरात से जो नतीजे मिले हैं उसमें बीजेपी को 21 सीट मिल रही हैं जबकि कांग्रेस ने यहां भी बीजेपी को कड़ी टक्कर देते हुए 17 सीट हासिल की हैं. इतना होने के बाद भी बीजेपी पाटीदारों की नाराजगी को झेल गई. वजह थी बीजेपी ने पाटीदारों को खुश करने के लिए 52 सीटें पाटीदार नेताओँ को दी थीं. इससे पाटीदार वोटों में बंटवारा हुआ.


इसके अलावा पाटीदार वोटों से होने वाली कमी को पूरा करने के लिए ओबीसी और आदिवासी वोटरों पर ध्यान लगाया. बीजेपी भी जानती है कि उसने पाटीदारों के गुस्से का झटका सहन कर लिया है. लेकिन अब उसके सामने है 2019, जिसकी तैयारी में लगी बीजेपी अब उससे पहले पाटीदारों को मनाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी.