नई दिल्लीः टूलकिट मामले के पीछे क्या सचमुच कोई अंतराष्ट्रीय साजिश है या असंतोष की आवाज दबाने के लिए राजद्रोह कानून का बेजाड़ इस्तेमाल करने की कोशिश भर है. इस मामले के एक आरोपी को बॉम्बे हाइकोर्ट से मंगलवार को मिली जमानत से तो यही संकेत मिलता है कि पूरे मामले में कहीं कुछ ऐसी गड़बड़ जरुर है कि पुलिस की थ्योरी न्यायपालिका के गले नहीं उतर रही.


पिछले दो साल में देश में करीब 6300 लोगों के खिलाफ राजद्रोह का मामला दर्ज हुआ है लेकिन इस आरोप में गिरफ्तार महज दो फीसदी लोगों पर ही अब तक अदालत में आरोप तय किए जा सके हैं. इससे साफ जाहिर है कि पुलिस अपने दावों को सही साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत जुटाने में नाकाम होती दिख रही है.


राजद्रोह कानून का इस्तेमाल अदालत के लिए चिंता का विषय
पिछले कुछ साल में सोशल मीडिया की पोस्ट पर या राजनीतिक विरोधियों पर जिस तरह से इस कानून का इस्तेमाल बढ़ा है, वह न्यायपालिका के लिए भी चिंता का विषय है. ऐसे ही एक मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट भी कह चुका है कि अगर हिंसा, अराजकता और असंतोष नहीं फैलता है, तो सरकार की आलोचना करना राजद्रोह नहीं है. लेकिन हाल के दिनों में ऐसा देखने में आया है कि महज आलोचना करने वालों के खिलाफ भी इस अपराध के तहत मामले दर्ज हुए हैं.


सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड न्यायाधीश जस्टिस दीपक गुप्ता कहते हैं, "लोगों की आवाज दबाने के लिए बीते दो-चार साल से इस कानून का कुछ ज्यादा ही दुरुपयोग हो रहा है. टूलकिट मामले की आरोपी दिशा रवि पर धारा-153ए भी लगी है जिसका मतलब होता है, दो समुदायों के बीच विवाद पैदा करने की मंशा. टूलकिट में मुझे ऐसी कोई बात नहीं दिखी. मामले की जांच के लिए उससे जो भी मांगा गया, दिशा ने वह उपलब्ध कराया गया. लिहाजा यह धारा जोड़ना ही गलत है."


अंतरराष्ट्रीय साजिश!
वहीं दूसरी ओर पुलिस ने दावा किया है कि पूरे प्रकरण में अंतरराष्ट्रीय साजिश होने का सबूत अमेरिका की कैलिफोर्निया में रहने वाले एक व्यक्ति पीटर फ्रेड्रिक की भूमिका को लेकर सामने आया है. दावे के मुताबिक पीटर फ्रेड्रिक अमेरिका में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विश्व हिन्दू परिषद से जुड़े संगठनों के खिलाफ अभियान चलाता रहा है.


उसने पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई और खालिस्तानी संगठनों के साथ मिलकर ह्यूटन में आयोजित हाउडी मोदी कार्यक्रम का विरोध किया था. पिछले अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के दौरान उसने अमेरिका की पहली हिंदू सांसद तुलसी गैबार्ड की डेमोक्रेटिक पार्टी से राष्ट्रपति उम्मीदवारी की दावेदारी के खिलाफ भी अभियान चलाया था. अमेरिकी संसद और वहां के राज्यों की प्रतिनिधि संस्थाओं के लिए खड़े होने वाले हिंदू उम्मीदवारों के खिलाफ भी वह दुष्प्रचार करता रहा है.


दिल्ली पुलिस की साइबर शाखा के पुलिस उपायुक्त मनीषी चन्द्रा ने बताया कि पीटर फेड्रिक पर भारतीय सुरक्षा एजेंसियां साल 2006 से ही नजर रखे हुई थीं. वह पाकिस्तान में सक्रिय एक खालिस्तानी भजन सिंह भिंडर उर्फ इकबाल चौधरी के संपर्क में था. भिंडर खुफिया एजेंसी आईएसआई के (कश्मीर-खालिस्तान) डेस्क के साथ जुड़ा था. अमेरिका के मादक पदार्थों की तस्करी पर रोक लगाने से जुड़ी एजेंसी भिंडर पर नजर रखे हुए थी.


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