नई दिल्लीः स्वच्छता अभियान में बेकार सामग्री की खाद बनाने पर जोर दिया जा रहा है. पर योगी आदित्यनाथ का गोरक्षपीठ मठ ये काम कई साल पहले शुरू कर चुका है. एबीपी न्यूज ने गोरखनाथ मंदिर में गोबर से वर्मी कंपोस्ट बनाकर कैसे गोबर का उपयोग किया जाता है, इस बात की पड़ताल की.

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स्वच्छता मिशन के तहत अमिताभ बच्चन जिस कम्पोस्ट का विज्ञापन कर रहे हैं उसी खाद को बनाने के लिए योगी आदित्यनाथ 2.5 साल से जुटे हैं. गोरक्षपीठ मठ की गौशाला के पास रखे गए ये बोरे इसी की गवाही देते हैं. गोरखनाथ मंदिर के अंदर स्थित गौशाला में करीब 400 गाय हैं जिनमें 50 बछड़े भी शामिल हैं. इन गायों के गोबर के बेकार ना जाने देने के लिए 2.5 साल पहले गौशाला के पीछे एक खाद बनाने की इकाई बनाई गई. यहां खाद बनाने के लिए केंचुओं का इस्तेमाल किया जाता है

करीब 45 दिन तक इन क्यारियों में गोबर को रखने के बाद तैयार होती है जैविक खाद. जिसका इस्तेमाल मंदिर के खेतों, पौधों में किया जाता है और बची खाद को बेच दिया है. इस जैविक खाद की कीमत है 165 रूपये प्रति बोरी. दिलचस्प ये कि खेती के सीजन में करीब एक ट्रक जैविक खाद गोरखपुर के इस मठ से किसानों को बेचा जाता है.

गोरखनाथ मंदिर की खाद इकाई में काम करने वाले सुनील ने बताया है कि कृत्रिम खाद के आयात में देश हर साल करीब 70,000 करोड़ खर्च करता है. स्वदेशी जैविक खाद के इस्तेमाल से ना सिर्फ विदेशी मुद्रा बचेगी बल्कि पैदावार भी बढ़ेगी. रसायनिक खाद के मुकाबले जैविक खाद बेहतर होती है क्योंकि ये मिट्टी को नुकसान पहुंचाने की बजाए उसे फायदा पहुंचाती है.