Gola Gokarnnath By-Election Results 2022: गोला गोकर्णनाथ... उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में छोटी काशी के नाम से विख्यात इस विधानसभा सीट के उपचुनाव पर सबसे ज्यादा नजरें टिकी थीं. 3 नवंबर को हुए उपचुनाव में यहां सिर्फ दो मुख्य पार्टियों के बीच कांटे का मुकाबला था. लखीमपुर-खीरी जिले की इस सीट पर बीजेपी उम्मीदवार अमन गिरि ने जीत की पताका फहराई है. उन्होंने सियासी मैदान में उतरे मुख्य विपक्षी समाजवादी पार्टी उम्मीदवार और पूर्व विधायक विनय तिवारी को पटखनी दी. ये सीट इस साल छह सितंबर को बीजेपी विधायक अरविंद गिरि के निधन के बाद से खाली पड़ी थी. आइये जानते हैं कि आखिर क्या वजह रही कि इस सीट पर पूरे सूबे की नजर थी, साथ ही, आखिर कहां कमी रह गई जिसके चलते अखिलेश यादव की साइकिल बीजेपी प्रत्याशी विनय तिवारी के सामने नहीं चल पाई.


1-सिर्फ दो दलों के बीच मुकाबला


गोला गोकर्णनाथ विधानसभा सीट पर मुकाबला दो पार्टियों के बीच होकर रह गया था. यहां पर हुए उपचुनाव में बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस ने अपने प्रत्याशी नहीं उतारने का फैसला किया. जाहिर है ऐसे में वोटों का दूसरे दलों में बंटवारा नहीं हुआ. चूंकि सत्ताधारी दल के विधायक अरविंद गिरि के निधन के चलते चुनाव हुआ, ऐसे में बीजेपी ने उनके बेटे को चुनावी मैदान में उतारा. राज्य में बीजेपी की अगुवाई वाली योगी आदित्यनाथ की सरकार है, जिसने हाल में शानदार जीत के साथ वापसी की है. जाहिर है, बीजेपी के पक्ष में जीत का यह एक बड़ा फैक्टर था.


2-मुद्दा भुनाने में नाकामयाब


लखीमपुर हाल में काफी सुर्खियों में रहा लेकिन एक हकीकत यह भी है कि विपक्ष को उसका कोई बड़ा फायदा नहीं मिला और न ही वह मुद्दों को भुना पाया. सपा की तरफ से लगातार गन्ने के भुगतान को लेकर योगी सरकार पर जरूर हमला बोला गया. बीते 31 अक्टूबर को सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बीजेपी पर हमला करते हुए ट्वीट किया था, ''लखीमपुर खीरी में बीजेपी की डबल इंजन की सरकार चलाने वाली झूठी उपलब्धियां बताते समय ये तो बताना ही भूल गए कि महंगाई, बेरोजगारी और टाइगर से बचाने के लिए क्या कर रहे हैं? किसानों को गन्ने के बकाया का भुगतान करने की निश्चित तारीख क्या होगी और धान की खरीद कब होगी?'' जाहिर तौर पर विपक्ष के पास योगी सरकार के खिलाफ ऐसा कोई बड़ा मुद्दा नहीं था, जिसे वहां पर भुनाया जा सके.


3-दो बार से लगातार बीजेपी की जीत


गोला गोकर्णनाथ विधानसभा सीट पर पिछले 10 साल के चुनाव पर अगर गौर करें तो पिछले दो बार से लगातार बीजेपी जीतती रही है. इस साल मार्च में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी के अरविंद गिरी को 1 लाख 26 हजार 534 वोट मिले थे यानी कुल वोट का 48.67 प्रतिशत. उन्होंने समाजवादी पार्टी के विनय तिवारी को 29 हजार 294 वोटों के अंतर से शिकस्त दी थी. सपा कैंडिडेट को सिर्फ 97 हजार 240 वोट ही मिल पाए थे. वहीं, 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी टिकट पर उतरे अरविंद सिंह ने सपा के विनय तिवारी को 55 हजार 17 वोटों के बड़े अंतर से हराया था. अरविंद सिंह को 1 लाख 22 हजार 497 वोट यानी 48.83 फीसदी मत हासिल हुए थे.


इसके अलावा, अगर 2012 के चुनाव की बात करें तो समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार विनय तिवारी ने यहां से 19 हजार 329 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की थी. दूसरे स्थान पर रहीं बहुजन समाज पार्टी कैंडिडेट सिम्मी बानो सिर्फ 63 हजार 110 वोट ही हासिल कर पाई थीं. जाहिर है कि बीजेपी को लगातार दो बार की जीत का फायदा भी मिला.


4-बीजेपी ने पूरी ताकत झोंकी


गोला गोकर्णनाथ सीट पर उपचुनाव में 57.35 फीसदी वोटिंग हुई थी. बीजेपी ने यहां पर करीब 40 स्टार प्रचारक उतारे यानी पूरी ताकत झोंक दी तो वहीं दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी ने बेहद ही शांत तरीके से जनसंपर्क अभियान चलाया था. इसके अलावा, पिछले चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के खाते में भी वोट काफी संख्या में पड़े थे. ऐसे में इस बार बीएसपी के मैदान में नहीं होने की वजह से उसके वोटों का बीजेपी की तरफ झुकाव भी अमन गिरि की जीत में एक अहम फैक्टर साबित हुआ है.


5-कुर्मी-ब्राह्मण वोटर का दबदबा


गोला विधानसभा के इतिहास पर अगर नजर दौड़ाएं तो 2012 के बाद ये सीट बनी. इससे पहले यह हैदारबाद विधानसभा सीट के नाम से जानी जाती थी. साल 1962 में हैदारबाद विधानसभा सीट के रूप में इसे पहचान मिली थी. इसे औद्योगिक क्षेत्र के रूप में भी जाना जाता है. इसकी वजह है बजाज हिन्दुस्तान मिल, जिसे एशिया की सबसे बड़ी मिल माना जाता है. यहां साथ ही राइस मिल और फ्लोर मिल भी काफी हैं. यहां के लोगों की मुख्य जीविका का श्रोत गन्ने की खेती है. यही वजह है कि गन्ना मूल्य का भुगतान हमेशा यहां बड़ा मुद्दा बनता आया है.


गोला गोकर्णनाथ विधानसभा सीट पर कुल वोटर्स की संख्या 3 लाख 94 हजार 433 है. इनमें से 2 लाख 8 हजार 181 पुरुष और 1 लाख 87 हजार 226 महिला वोटर हैं. आबादी के हिसाब से यहां पर कुर्मी, मुस्लिम और ब्राह्मण वोटरों का ही दबदबा रहा है लेकिन मुस्लिम समुदाय का वोट हमेशा निर्णायक फैक्टर में रहा है.


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