नई दिल्लीः जिस तरह मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में एलपीजी सिलिंडर पर 'गिव इट अप' सब्सिडी का कार्यक्रम चलाकर करोड़ों लोगों से स्वेच्छा से उनकी एलपीजी पर मिलने वाली सब्सिडी छुड़वाई थी, ठीक उसी तरह भारतीय रेलवे जल्द ही आपको टिकट पर मिलने वाली सब्सिडी छोड़ने के लिए कह सकता है. रेल मंत्रलाय इस प्रस्ताव को आखिरी रूप दे रहा है जिसके तहत रेल टिकट बुक करते समय यात्रियों को आंशिक या पूरी तरह सब्सिडी छोड़ने का विकल्प मिलेगा. मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के पहले 100 दिन के एजेंडा के तहत इस योजना को लागू किया जा सकता है.


ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सब्सिडी छोड़ने और देश के लिए पैसे का प्रबंध करने की जिम्मेदारी सिर्फ नागरिकों की है. एक तरफ आम नागरिकों से उन्हें मिलने वाली तरह-तरह की सब्सिडी लगातार छोड़ने के लिए कहा जा रहा है. वहीं सरकार में बैठे विधायक और सांसदों को मिलने वाली सैलरी और तमाम तरह की सुविधाएं जिस पर हर साल हजारों करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं, उनके लिए अपनी सब्सिडी छोड़ने की कोई जिम्मेदारी तय नहीं की जा रही है.


सांसदों पर हो रहा खर्च
भारत में पिछले साल 543 सांसदों की सैलरी और अन्य खर्चों पर लगभग 1.76 करोड़ रुपये का व्यय किया गया. दूसरे शब्दों में कहें तो हर साल एक लोकसभा सांसद पर 71.29 लाख रुपये का खर्च हो रहा है. एक लोकसभा सांसद पर हर महीने 5.94 लाख रुपये का खर्च हो रहा है. वहीं राज्यसभा सांसदों की बात करें तो एक राज्यसभा सांसद पर 44.33 लाख रुपये सालाना और हर महीने 3.69 रुपये खर्च हो रहे हैं.

सांसदों के वेतन और अन्य खर्चों पर नजर डालें तो चौंकाने वाली तस्वीर सामने आती है.


साांसदों का वेतन देखें तो 1 लाख रुपये महीना उन्हें सैलरी मिल रही है. संसद सत्र के दौरान सांसदों को 2000 रुपये रोजाना का भत्ता मिलता है. संसदीय क्षेत्र के लिए 70 हजार रुपये, ऑफिस के लिए 45 हजार रुपये भत्ता, फर्नीचर के लिए 60 हजार रुपये मिलते हैं.


अन्य भत्तों की बात करें तो
अन्य भत्तों की बात करें तो एयर ट्रेवल के लिए 34 यात्रा एक साल में मुफ्त मिलती हैं और एक साल में 34 यात्रा पूरी नहीं होने पर दूसरे साल में जुड़ जाती हैं. सांसदों को किसी भी रेलवे में एसी फर्स्ट क्लास में यात्रा करने की सुविधा मिलती है. इसके अलावा सड़क से यात्रा करने पर 16 रुपये प्रति किलोमीटर के हिसाब से उन्हें मिलते हैं. टेलीफोन फैसिलिटी के रूप में देखें तो एक फोन पर सांसदों को 50 हजार मुफ्त कॉल मिलती हैं और सांसदों को तीन फोन मिलते हैं तो इस तरह एक साल में उन्हें 1.5 लाख कॉल्स मुफ्त मिलती हैं.


पानी और बिजली
सांसदों के घर पर 1 जनवरी से शुरु होकर एक साल में 4000 किलोलीटर पानी और 50,000 बिजली की यूनिट उन्हें फ्री मिलती है. अगर एक साल में इतने यूनिट और पानी का इस्तेमाल नहीं हो पाता है तो ये अगले साल में जुड़ जाता है.


इनकम टैक्स के मोर्चे पर भी राहत
सांसदों का टैक्स देखें तो सैलरी और अन्य भत्ते 'इनकम फ्रॉम अदर सोर्सेज' के तहत इनकम टैक्स के दायरे में आते हैं. सांसदों के इनकम के सोर्स पर कोई टैक्स नहीं लिया जाता है. वहीं इनका रोजाना का भत्ता और संसदीय क्षेत्र के लिए मिला भत्ता भी इनकम टैक्स से फ्री होता है.


4 सालों में सांसदों पर होने वाले खर्च देखें तो
2014 से 2018 के चार सालों के दौरान लोकसभा और राज्यसभा सांसदों की सैलरी और अन्य भत्तों पर होने वाला खर्च 1997 करोड़ रुपये पहुंच गया था. इसमें से लोकसभा सांसदों पर 1554 करोड़ रुपये का खर्च पिछले 4 सालों के दौरान किया गया और राज्य सभा सांसदों पर कुल 443 करोड़ रुपये का खर्च किया गया.


इस तरह देखा जाए तो 545 लोकसभा सांसदों और 245 राज्यसभा सांसदों पर देश का हजारों करोड़ रुपया खर्च हो रहा है, उन्हें लगातार ढेरों सुविधाएं मिल रही हैं और भत्तों के रुप में भी करोड़ों रुपये लुटाए जा रहे हैं. आम जनता जो पाई-पाई बचाकर अपने रोजाना के खर्चों को बमुश्किल पूरा कर पा रही है उसके लिए गिव इट अप जैसी योजना लाकर उसे मजबूर करने की कोशिश हो रही है कि वो अपने मिलने वाली सब्सिडी छोड़ दे. हालांकि सांसदों के लिए किसी तरह की नैतिक जिम्मेदारी को तय नहीं किया जा रहा है और उनके ऐश में कोई कमी नहीं आ रही है.


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