नई दिल्ली: आपने सोने का अंडा देने वाली मुर्गी की कहानी सुनी होगी. जिसे लालच में रोज एक सोने का अंडा पानी की जगह, एक ही बार में काट दिया जाता है. क्या जनता की जेब को भी पेट्रोल डीजल के दाम में सोने का अंडा देने वाली मुर्गी समझकर सरकारें जब चाहती हैं, तब एक्साइज ड्यूटी के चाकू से आर्थिक रूप से काटती हैं. क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल पानी की बोतल से सस्ता होने पर जो पेट्रोल डीजल आपको सस्ता मिल सकता था, वो एक्साइज ड्यूटी तीन रुपए बढ़ जाने से फिलहाल सस्ता मिलने से रहा.


 70 रुपये लीटर क्यों बेचती है सरकार?  


दिल्ली में 16 मार्च के पेट्रोल के दाम को आधार मानें तो एक लीटर पेट्रोल को रिफाइनरी से खरीदने की कीमत 27.96 रुपये है. पेट्रोल डीलर को यही तेल फिर 28 रुपए 28 पैसे में मिलता है. जिस पर 22 रुपए 98 पैसे की केंद्र सरकार की एक्साइज ड्यूटी होती है. इसके बाद डीलर का कमीशन होता 3 रुपये 54 पैसे. इसके बाद राज्य सरकार वैट लगाकर 14 रुपए 79 पैसे का बोझ डालती है और इस तरह 28 रुपए का तेल 69.59 रुपए हो जाता है.


1 अप्रैल 2014 को पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी 9.48 रुपये थी. अब 14 मार्च से पेट्रोल पर केंद्र की ड्यूटी 22.98 रुपये प्रति लीटर है. छह साल में पेट्रोल पर प्रति लीटर केंद्र का टैक्स 142 फीसदी तक बढ़ चुका है. सरकार दावा करती है कि कच्चा तेल महंगा होने पर जनता को एक्साइज ड्यूटी घटाकर राहत दी जाती है.

एक्साइज ड्यूटी की जानकारी

2014-15 में कच्चा तेल 39.22 रुपये प्रति लीटर था. तब केंद्र ने एक्साइज ड्यूटी चार बार बढ़ाकर जनता से वसूला. 2015-16 में कच्चा तेल औसत 25.52 रुपये प्रति लीटर रहा. यानी कच्चा तेल सस्ता हुआ तो एक्साइज ड्यूटी 5 बार बढ़ाई.

2017-18 में जब कच्चा तेल महंगा होकर 26.29 रुपये प्रति लीटर हुआ. यानी कच्चा तेल महंगा हुआ तो एक्साइज ड्यूटी सिर्फ एक बार घटाई. इस तरह सरकार तेल पर 6 साल में 9 बार एक्साइज ड्यूटी बढ़ा चुकी है, जबकि राहत देने के नाम पर घटाया सिर्फ दो बार है.

सरकार कहती है कि एक्साइज ड्यूटी बढ़ाकर इंफ्रास्ट्रक्चर और विकास के कामों के खर्च का पैसा जुटाना है. लेकिन सवाल ये है कि अगर अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल का दाम न गिरता तो सरकार क्या करती? तो दाम गिरने के बाद ही यह ज़रूरी खर्च क्यों याद आए?

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