मोदी कैबिनेट ने मुफ्त राशन योजना को एक बार फिर से बढ़ाने का ऐलान किया है. कैबिनेट बैठक के बाद खाद्य एवं उपभोक्ता मंत्री पीयूष गोयल ने बताया कि स्कीम को एक साल के लिए बढ़ाया गया है. इसमें बीपीएल कार्डधारकों को प्रति व्यक्ति हर महीने पांच किलो अनाज (गेहूं और चावल) मुफ्त में दिया जाता है. 


कोरोना महामारी और लॉकडाउन में लोगों को राहत देने के लिए इस स्कीम की शुरुआत की गई थी, लेकिन अब यह चुनावी लाभ का एक टूल बन गया है. इकॉनोमिक टाइम्स ने वित्त मंत्रालय के आधिकारिक सूत्रों के हवाले से बताया कि इस स्कीम की मियाद बढ़ाने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय से आदेश भेजा गया. 


मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि इस स्कीम की वजह से 1.50 लाख करोड़ का बोझ बढ़ रहा है, फिर भी सरकार इसे जारी रखना चाहती है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सच में यह स्कीम चुनाव का बड़ा मुद्दा बन गया है? विस्तार से समझते हैं...


योजना क्या है, किसे लाभ मिलता है?
2013 में कांग्रेस की सरकार ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम लागू किया था. इसके तहत बीपीएल कार्डधारकों को प्रतिमाह प्रति व्यक्ति 5 किलोग्राम अन्न देने की घोषणा की गई थी. 


राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत जो पात्र हैं, उन्हें प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना का भी लाभ दिया जाता है. 


रिपोर्ट के मुताबिक देश 67 प्रतिशत आबादी को खाद्य गारंटी देने की घोषणा की गई है. कुल 81 करोड़ लोग इसका लाभ ले रहे हैं.


प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना में मुफ्त में 5 किलो अनाज दिया जाता है. इसके लिए कोई भी पैसा नहीं लिया जाता है.


कैसे बन गया चुनावी मुद्दा?
बात पहले बिहार की- कोरोना की पहली लहर खत्म हो गई थी. सरकार ने PMGKAY के दूसरे चरण की घोषणा की थी. बिहार में पार्टी को इसका फायदा मिला. वोट प्रतिशत में कमी आने के बावजूद पार्टी ज्यादा सीटें जीतने में सफल रही. 


2015 के मुकाबले बीजेपी का वोट प्रतिशत में 4 प्रतिशत से भी कम रहा, लेकिन सीटें 53 से बढ़कर 74 हो गई. राजनीतिक विश्लेषकों ने प्रधानमंत्री के इस स्कीम को भी एक फैक्टर माना. 


बंगाल में विपक्षी पार्टी बन गई- कोरोना की दूसरी लहर के दौरान बंगाल में चुनाव हुए. यहां बीजेपी के पास सिर्फ 3 सीटें थी. पार्टी ने वेलफेयर स्कीम को मुद्दा बनाया. सरकार आने पर पीएम किसान और पीएम अन्न योजना को बेहतरीन तरीके से लागू करने का वादा किया.


तृणमूल कांग्रेस से उपेक्षित महसूस कर रहे नॉर्थ बंगाल के लोगों में यह फैक्टर काम कर गया. नॉर्थ बंगाल में बीजेपी ने एक तरफा जीत दर्ज की. 77 सीटें जीतकर बीजेपी बंगाल में मुख्य विपक्षी पार्टी बन गई. 


यूपी में खेला होने से बचाया- 2022 के यूपी चुनाव में सपा ने जातीय समीकरण और OPS को मुद्दा बनाकर बीजेपी की घेराबंदी कर दी. इसके बाद बीजेपी ने लॉ एंड ऑर्डर और मुफ्त राशन को मुद्दा बनाया. खुद प्रधानमंत्री मोदी ने हरदोई की रैली में मुफ्त राशन का जिक्र किया. 


पीएम ने एक वायरल वीडियो का हवाला देते हुए कहा कि नमक खाने वाले लोग धोखा नहीं देते हैं. यह दांव काम भी कर गया और बीजेपी फिर से सत्ता में आ गई. हालांकि, पार्टी को 57 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा. यूपी में चुनाव जीतने के बाद योगी सरकार ने तुरंत इस स्कीम का समय बढ़ाने का ऐलान कर दिया. 


7 बार डेडलाइन बढ़ाई, इनमें 4 बार चुनाव को ध्यान में रखा गया
जून 2020 में योजना की समय-सीमा खत्म हो गई थी. सरकार ने इसके बाद नवंबर तक इसे बढ़ा दिया. सितंबर-अक्टूबर में बिहार में चुनाव होने थे. 


नवंबर 2020 में योजना की समय सीमा खत्म होने के बाद इसे फिर बढ़ाकर जून 2021 तक कर दिया गया. अप्रैल-मई 2021 में बंगाल, असम समेत 5 राज्यों में चुनाव होने थे. 


नवंबर 2021 में योजना का चौथा फेज खत्म हो गया था. दिसंबर में फिर इसे मार्च 2022 तक के लिए बढ़ाया गया. फरवरी 2022 में यूपी, उत्तराखंड समेत 5 राज्यों में चुनाव प्रस्तावित था. 


सितंबर 2022 में योजना का छठा चरण खत्म हो रहा था. फरवरी में कर्नाटक और अगले साल अक्टूबर में हिंदी बेल्ट में चुनाव प्रस्तावित है. सरकार ने इसे फिर एक साल तक बढ़ाने की घोषणा की है.




नजर चुनावी राज्यों पर, जहां लगभग 5 करोड़ बीपीएल कार्डधारी
PMGKAY की मियाद एक साल बढ़ाने के बाद फिर से इसकी चर्चा तेज हो गई है. दरअसल, अगले साल कर्नाटक, एमपी, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और त्रिपुरा में चुनाव प्रस्तावित है. त्रिपुरा, कर्नाटक और एमपी में बीजेपी की और राजस्थान, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार है.


NFSA के मुताबिक इन 5 राज्यों में लगभग 5 करोड़ बीपीएल कार्डधारी हैं. अगर वोटों की संख्या के लिहाज से देखा जाए तो करीब 10 करोड़ वोटर्स. सरकार इस स्कीम के जरिए इन 10 करोड़ वोटर्स में सीधी पैठ बनाने की कोशिश में हैं. 



(Source- NFSA)


मुफ्त राशन का रेवड़ी कल्चर कनेक्शन भी, 3 प्वाइंट्स
कांग्रेस सेवादल के अध्यक्ष लालजी देसाई ने ट्वीट कर लिखा कि रेवड़ी कल्चर बंद करने की बात करने वाले प्रधानमंत्री अब खुद 81 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन बांटने पर अमादा हैं. 


सुप्रीम कोर्ट ने मुफ्त में दी जाने वाली चीजों को लेकर सवाल उठाया. चुनाव आयोग और आरबीआई ने कहा कि फ्रीबिज की कोई परिभाषा नहीं है. आप ही तय कर दें.


बीजेपी मुफ्त राशन को वेलफेयर स्कीम बता रही है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ही तय होगा कि यह किस तरह का स्कीम है?