नई दिल्ली: 1989 में जब जनता दल की गठबंधन सरकार बनी तो उस समय प्रधानमंत्री पद की रेस में चंद्रशेखर भी शामिल थे. लेकिन वीपी सिंह का पलड़ा भारी पड़ा. वीपी सिंह को प्रधानमंत्री बनाने के लिए अरुण नेहरू और देवीलाल जैसे दिग्गज नेताओं ने बकायदा साजिश रची जिसकी भनक तक चंद्रशेखर को न लगी. लेकिन वीपी सिंह की पारी बहुत लंबी नहीं चली और 11 महीने के बाद ही उनकी सरकार गिर गई और फिर चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने. दिलचस्प बात ये है कि भारतीय राजनीति के युवा तुर्क कहे जाने वाले चंद्रशेखर कभी मंत्री भी नहीं रहे और सीधे प्रधानमंत्री बने.


बीजेपी ने गिराई वीपी सिंह की सरकार


चंद्रशेखर के प्रधानमंत्री बनने की कहानी जानने से पहले ये समझना जरूरी है कि आखिर वीपी सिंह की सरकार कैसे गिरी. मंडल कमीशन पर मचे बवाल के बीच बीजेपी ने वीपी सिंह की सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया. वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय बताते हैं, ''वीपी सिंह की सरकार दो कारणों से गिरी थी. एक तो जनता दल के आपस में झगड़े थे और दूसरा ये कि राजीव गांधी ने चंद्रशेखर से हाथ मिला लिया था. चंद्रशेखर के साथ 64 सांसद आ गए थे. उससे भी बड़ी घटना ये हुई थी कि 23 अक्टूबर 1990 को लाल कृष्ण आडवाणी की गिरफ्तारी के बाद बीजेपी ने वीपी सिंह की सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था. इसके बाद सरकार अल्पमत में आ गई.''


राम बहादुर राय आगे बताते है, ''वीपी सिंह की सरकार बिल्कुल उसी तरह गिरी जैसे 1979 में मोरारजी देसाई की सरकार गिरी थी. उस समय राजनारायण और चौधरी चरण सिंह ने इंदिरा गांधी से हाथ मिला लिया था और इस बार यशवंत सिन्हा, चंद्रशेखर आदि ने राजीव गांधी से.''


इसके बाद हालात ये थे कि या तो तुरंत चुनाव कराए जाएं या फिर कोई वैकल्पिक सरकार बने. तो राजीव गांधी ने चंद्रशेखर से बातचीत की. चंद्रशेखर ने अपनी आत्मकथा 'ज़िदगी का कारवाँ' में इस बारे में लिखा है, ''एक दिन अचानक आरके धवन मेरे पास आ कर बोले कि राजीव गांधी आप से मिलना चाहते हैं. जब मैं धवन के यहाँ गया तो राजीव गांधी ने मुझसे पूछा, क्या आप सरकार बनाएंगे?'' मैने कहा, सरकार बनाने का मेरा कोई नैतिक आधार नहीं है. मेरे पास सरकार बनाने के लिए पर्याप्त संख्या भी नहीं है. इस पर उन्होंने कहा कि आप सरकार बनाइए. हम आपको बाहर से समर्थन देंगे.''


इसके बाद सवाल उठे कि चंद्रशेखर कांग्रेस के समर्थन से सरकार कैसे बना सकते हैं? रामबहादुर राय कहते है, ''उस समय मंडल के विरोध में देशभर में खूनी वातावरण बना हुआ था. लोग आत्मदाह कर रहे थे. तब चंद्रशेखर ने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाने को जायज ठहराते हुए ये तर्क किया कि मैं देश में अमन चैन लाना चाहता हूं. समय का जो तकाजा है उसके लिए सरकार बना रहा हूं.''


रामबहादुर राय उन दिनों उस वाकये को याद करते हुए बताते हैं, ''राजीव गांधी ने उस समय जब चंद्रशेखर का समर्थन किया तो पत्रकारों ने उनसे पूछा कि आप इनकी सरकार कितने दिन तक चलाएंगे. इस पर उन्होंने जवाब दिया, 'वीपी सिंह की सरकार से एक महीने ज्यादा.' तो वीपी सिंह की सरकार 11 महीने चली थी तो राजीव गांधी अगर सच बोलते तो चंद्रशेखर की सरकार कम से कम साल भर चलती. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. एक मामूली सा बहाना बनाकर राजीव गांधी ने सरकार गिरा दी.''


राजीव गांधी के समर्थन के बाद 64 सासंदो से चंद्रशेखर ने सरकार बनाने का दावा पेश किया और 10 नवंबर 1990 को भारत के 8वें प्रधानमंत्री पद की शपथ ली. चंद्रशेखर ने 6 मार्च 1991 को पीएम पद से इस्तीफा दे दिया. वो सिर्फ चार महीनों तक प्रधानमंत्री रहे. इसके बाद अगले प्रधानमंत्री चुने जाने तक यानि 21 जून 1991 तक उन्होंने ये पद संभाला.


चंद्रशेखर पीएम बनाने में किसकी अहम भूमिका रही? इस पर राम बहादुर राय कहते हैं, ''जब कोई भी समर्थन से सरकार बनाता है तो समर्थन करने वाले की शर्त रहती है कि हम किसे पीएम के रूप में देखाना चाहते हैं. तो इसलिए कांग्रेस ने चंद्रशेखर को प्रधानमंत्री बनाने की अहम भूमिका रही.''


प्रधानमंत्री बनने के बाद जब उनके काम में कांग्रेस हस्तक्षेप करना शुरु किया तो ये चंद्रशेखर ने ऐसा करने से इंकार कर दिया. समर्थन वापस लेने की खबरों के बीच चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. बाद में राजीव गांधी ने ये भी प्रयास किया कि चंद्रशेखर अपना इस्तीफा वापस ले लें. शरद पवार अपनी आत्मकथा On My Terms: From the Grassroots to the Corridors of Power में इसका जिक्र किया है. उन्होंने लिखा है, ''राजीव गाँधी ने मुझे दिल्ली बुला कर कहा कि क्या मैं चंद्रशेखर को इस्तीफ़ा वापस लेने के लिए मना सकता हूँ? मैं चंद्रशेखर के पास गया और इस्तीफ़ा वापस लेने के लिए कहा. चंद्रशेखर ने तब गुस्से में कहा, ''आप प्रधानमंत्री के पद का कैसे इस तरह उपहास कर सकते हैं?'' उन्होंने ये भी कहा, ''जाओ और उनसे कह दो, चंद्रशेखर एक दिन में तीन बार अपने विचार नहीं बदलता."


एक प्रधानमंत्री के रूप में चंद्रशेखर को कैसे याद किया जाएगा? इस सवाल पर राम बहादुर राय कहते हैं, ''चंद्रशेखर को पीएम के रूप में चार महीने मिले. उन चार महीनों में उन्होंने ये साबित किया कि वो पीएम पद के लायक हैं. वो सार्क में हिस्सा लेने मालदीव गए. विदेश मंत्रालय ने जो भाषण उन्हें बनाकर दिया था उसे उन्होंने रास्ते में देखा लेकिन वहां पढ़ा नहीं. उन्होंने ठेठ भाषा में अपना भाषण पढ़ा.''


राम बहादुर राय ये भी बताते हैं कि संसद में पहुंचने वाले सभी नेताओं का सपना रहता है कि वो एक दिन प्रधानमंत्री बनें. चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने के लिए ऐसा कोई सपना पाला तो नहीं था लेकिन जब मौका मिला तो उस चुनौती को स्वीकार कर लिया.


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