Former CJI: सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस एसए बोबडे (SA Bobde) ने शनिवार (18 मार्च) को कहा कि सीजेआई के तौर पर काम करना एक बड़ी जिम्मेदारी है. उन्होंने कहा कि 'सुप्रीम कोर्ट का सीजेआई होना एक अहम जिम्मेदारी है. अदालतों में बहुत ज्यादा प्रतिस्पर्धा है. हर कोई अपना केस जीतना चाहता है.' 


इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में हिस्सा लेने के दौरान जस्टिस एसए बोबडे ने खुलकर अपनी बात रखी. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर राजनीति के प्रभाव को लेकर कहा कि सियासत के शब्द को किसी के साथ भी जोड़ा जा सकता है. उन्होंने कई महत्वपूर्ण फैसलों का जिक्र करते हुए कहा कि 'राफेल के मामले में कुछ भी सियासी नहीं था, यह एक डिफेंस डील थी. अयोध्या का मुद्दा आजादी के पहले से चला आ रहा था. इनमें से कुछ भी राजनीतिक नहीं था, बस वहां ये तथ्य था कि नेता इन पर बात करते हैं.'


'कोर्ट कभी राजनीति में शामिल नहीं होती है'


पूर्व सीजेआई ने कहा कि अदालतों के तौर पर हम कभी राजनीति में शामिल नहीं होते हैं. जस्टिस बोबडे ने सुप्रीम कोर्ट के वकील दुष्यंत दवे के आरोपों पर भी बात की. जिसमें दवे ने आरोप लगाए थे कि सुप्रीम कोर्ट पीएम मोदी से डरता है. उन्होंने कहा कि मैं उनके विचारों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देना चाहूंगा. 


बेंच फिक्सिंग पर जस्टिस बोबडे ने कही ये बात


जस्टिस बोबडे ने बेंच फिक्सिंग के आरोपों पर कहा कि वो प्रेस कॉन्फ्रेंस सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में सबसे दुर्भाग्यपूर्ण घटना के तौर पर थी. मैंने उसे रोकने की काफी कोशिश की. हालांकि, कुछ लोगों ने उसमें (प्रेस कॉन्फ्रेंस) मेरी कथित भूमिका को लेकर पहले ही लिख दिया है. मैंने इसे खुद से नहीं किया होता.


बता दें कि 12 जनवरी, 2018 में जस्टिस जे चेलमेश्वर, रंजन गोगोई, कुरियन जोसेफ और मदन लोकुर ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी. जिसमें उन्होंने तत्कालीन सीजेआई दीपक मिश्रा के कामकाज पर सवाल खड़े किए थे. उन्होंने आरोप लगाया था कि जस्टिस मिश्रा महत्वपूर्ण मामलों को जूनियर जजों को असाइन कर देते थे.


कश्मीर में गिरफ्तारी और किसान आंदोलन पर क्या बोले जस्टिस?


जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 हटाए जाने पर गिरफ्तार किए गए लोगों की रिहाई के बारे में बात करते हुए जस्टिस एसए बोबडे ने कहा कि मामले की फाइलें जानबूझकर नहीं रोकी गई थीं. उस दौरान कोरोना महामारी फैली थी, तब हमारे सामने सैकड़ों केस विचाराधीन थे और जज मौजूद नहीं थे.


कृषि कानूनों के खिलाफ हुए किसान आंदोलन की बात करते हुए उन्होंने कहा कि हमने खबरों में लोगों और पुलिस को गणतंत्र दिवस पर लाल किले में भिड़ते-हमले करते हुए देखा. मैं तभी सरकार के पास जाने और कृषि कानूनों पर रोक लगाने के बारे में सोचा. मैंने अपने सहयोगियों से बात की और हमने कृषि कानूनों पर रोक लगाने का फैसला लिया. इसमें कुछ भी सियासी नहीं था.


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