नई दिल्ली: भारत और नेपाल के बीच रिश्तों में चल रही तल्खी को कम करने की कवायद में विदेश सचिव डॉ हर्षवर्धन श्रृंगला 26-27 नवंबर को दो दिन के नेपाल दौरे पर जाएंगे. नेपाल के नए नक्शे को लेकर उठे विवाद और काठमांडू से आए तल्ख बयानों से उपजी कड़वाहट कम करने की कड़ी में विदेश सचिव की यात्रा खासी अहम है.


बीते एक महीने में नई दिल्ली से काठमांडू के लिए यह तीसरी वरिष्ठ अधिकारी स्तर यात्रा होगी. इससे पहले सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे और भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ के प्रमुख सामंत गोयल नेपाल जा चुके हैं. ऐसे में विदेश सचिव की यात्रा को दोनों पक्षों के बीच संबंध सामान्य बनाने को लेकर बनी सहमति के तौर पर देखा जा है.


विदेश मंत्रालय के मुताबिक यात्रा के दौरान डॉ श्रृंगला की काठमांडू में अपने नेपाली समकक्ष भरत राय पौडियाल के अलावा सरकार के अन्य वरिष्ठ पदाधिकारियों के साथ मुलाकात होगी. बातचीत के दौरान भारत नेपाल के व्यापक संबंधों पर चर्चा होनी है. विदेश सचिव बनने के बाद डॉ श्रृंगला की यह पहली नेपाल यात्रा है.


विदेश मंत्रालय ने इस दौरे को भारत और नेपाल के बीच उच्च स्तरीय संपर्कों की परंपरा के अनुरूप एक कड़ी करार दिया है. गौरतलब है कि नेपाल के भारत के कालापानी समेत कुछ सीमावर्ती इलाकों को अपनी जमीन बताते हुए मई 2020 में अपना नया नक्शा जारी करने और प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की तरफ से दिए गए तीखे बयानों के बाद दोनों देशों के रिश्तों में तनाव काफी बढ़ गया था.


हालांकि, अगस्त 2020 में स्वाधीनता दिवस के मौके पर नेपाली पीएम ओली ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फोन कर संवाद की पहल की थी. सूत्रों के मुताबिक भारत की तरफ से हो रही विदेश सचिव की यात्रा नेपाल की तरफ से संवाद को लेकर नजर आए सकारात्मक रुख का ही जवाब है. महत्वपूर्ण है कि भारत और नेपाल के बीच काफी लंबी और खुली सीमा है जहां से आवाजाही होती है. लेकिन रिश्तों में तनाव के दौरान जून 2020 में एक स्थानीय विवाद के चलते सीमा पर नेपाली सुरक्षाबलों की तरफ से गोलीबारी जैसी घटना भी सामने आए. इतना ही नहीं कोरोना संकट के मद्देनजर नेपाल ने फिलहाल भारत से आवाजाही पर भी बहुत पाबंदियां लगा रखी हैं.


भारत के साथ संवाद का सेतु जोड़ने की कोशिशों को ओली सरकार पर गहराते राजनीतिक संकट की रौशनी में भी देखा जा रहा है. बीते काफी समय से सत्तारूढ़ नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी में ओली का विरोधी खेमा उनपर पद छोड़ने का दबाव बना रहा है. इसकी अगुवाई पूर्व प्रधानमंत्री पुष्पकमल दहल प्रचंड और माधव नेपाल जैसे नेता कर रहे हैं. वहीं इस संकट में चीन के पीछे ओली सरकार को चीन से मिल रहे समर्थन को लेकर भी आलोचना भरे सवाल उठते रहे हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि एक बार फिर सत्ता संतुलन साधने के लिए ओली भारत के साथ रिश्तों को पटरी पर लाने का प्रयास कर रहे हैं.