Story of Sucheta Kripalani: हमारे देश में चुनावों में मतदाता के रूप में महिलाओं की भूमिका भले ही पिछले कुछ सालों में बढ़ी हो, लेकिन राजनीति में नेताओं के रूप में उनकी सक्रियता आज भी पुरुषों के बराबर नहीं है. हालाकि स्वतंत्रता आंदोलन में अपना फर्ज निभाने से लेकर आज़ाद भारत में सरकार चलाने तक, महिलाओं की राजनीतिक भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. इसके बावजूद जब देश में महिला नेताओं की बात आती है तो आंकड़े थोड़े निराशाजनक होते हैं. 


ये तो बात है देश के आजाद होने के 75 साल बाद की, लेकिन जरा सोचिए आज के आधुनिक दौर में, जब महिलाओं को राजनीति में किसी मुकाम को पाने के लिए अनगिनत बाधाओं से गुजरना पड़ता है तो दशकों पहले की स्थिति कैसी रही होगी. 'महिलाएं जिनके लिए बेड़ी न बन सका समाज' के इस सीरीज में हम आज आपको एक ऐसी महिला के बारे में बताएंगे जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आजाद भारत की राजनीति में अपनी गहरी छाप छोड़ी है. हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री सुचेता कृपलानी की.


सुचेता कृपलानी की पहली महिला CM बनने की दिलचस्प कहानी


सुचेता कृपलानी जिनका उत्तर प्रदेश से कोई नाता नहीं था. वह बंगाली थीं और दिल्ली में पढ़ी थीं, उन्हें सिटिंग मुख्यमंत्री को हटाकर सीएम बनाया गया. इसके पीछे की कहानी काफी दिलचस्प है. दरअसल आजादी के बाद देश में कांग्रेस की सत्ता थी, लेकिन एक वक्त ऐसा आया जब पार्टी के लोग ही नेहरू की सत्ता को चुनौती देने लगे. चुनौती देने वाले नेताओं में यूपी का एक बड़ा नाम सीबी गुप्ता यानी चंद्रभानु गुप्ता का था.


राज्य के अंदर गुप्ता का नाम इतना मशहूर था कि दिल्ली में बैठे नेता असुरक्षित महसूस करने लगे. उन्हें सीएम पद से हटाने के लिए 1963 में कांग्रेस कामराज प्लान लेकर आई. इस प्लान के तहत पुराने लोगों को अपना पद छोड़ना था ताकि देश के हर राज्य में पार्टी को मजबूत किया जा सके. इसी प्लान के तहत जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें सीएम पद से इस्तीफा देने को कहा. सीबी गुप्‍ता के इस्तीफे के बाद ही देश और यूपी को अपनी पहली महिला सीएम मिली थी. 


कैसे बनी सुचेता कृपलानी यूपी की सीएम


साल 1963 में सीबी गुप्ता ने नेहरू के कहने पर इस्तीफा तो दे दिया लेकिन तबतक पार्टी के अंदर फूट पड़ गई थी. कांग्रेस दो धड़े में विभाजित हो गई थी. वहीं सीबी गुप्ता के इस्तीफे के बाद समस्या आई कि सूबे का अगला सीएम किसे बनाया जाए. उस वक्त इस पद की दावेदारी रखने वाले कई लोग थे, जिसमें चौधरी चरण सिंह, कमलापति त्रिपाठी, हेमवती नंदन बहुगुणा का नाम भी शामिल था. वहीं दूसरी तरफ सीबी गुप्ता नहीं चाहते थे कि इनमें से कोई मुख्यमंत्री का कार्यभार संभाले, तो कांग्रेस ने अप्रत्याशित रूप से एक महिला को मुख्यमंत्री चुन लिया. इससे पहले देश के किसी राज्य में महिला ने सीएम पद का कार्यभार नहीं संभाला था और इस तरह सुचेता बनीं देश और यूपी की पहली महिला सीएम.


सुचेता का बचपन


सुचेता का जन्म अंबाला (तब पंजाब का हिस्सा) में हुआ था. उनके पिताजी डॉक्टर थे. सुचेता की पढ़ाई  इंद्रप्रस्थ और सेंट स्टीफेंस कॉलेज से हुई थी. पढ़ाई पूरी होने के बाद वह बीएचयू में लेक्चरार हो गईं. साल1936 में उनकी शादी सोशलिस्ट लीडर जे बी कृपलानी से हुई. छोटी उम्र से ही राजनीत‍ि की तरफ रुझान रखने वाली सुचेता स्वतंत्रता संग्राम में उस वक्त जुड़ीं जब आंदोलन अपने चरम पर था. सुचेता साल 1942 में उषा मेहता और अरुणा आसफ अली के साथ भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल हुईं. आजादी के वक्त जब नोआखाली में दंगे हुए थे तब  सुचेता ही महात्मा गांधी के साथ वहां गई थीं. 


उनके बारे में एक कहानी काफी मशहूर है कि जब सुचेता दंगे के बाद नोआखाली गईं तब वह अपने साथ सायनाइड का कैप्सूल भी रखती थीं ताकि किसी भी परिस्थिति में वह खुद को बचा पाएं. एक कारण यह भी था कि उस वक्त महिलाओं के साथ कभी भी रेप और लूटपाट जैसी घटनाएं हो रही थीं.


बगावत कर की थी शादी 


अपनी आत्‍मकथा An Unfinished Biography में सुचेता ने अपने जीवन के कई पहलुओं को उजागर किया है. अपनी आत्मकथा में उन्होंने लिखा कि  'जालियावाला बाग हत्याकांड के बाद मैं अंग्रेजों के खिलाफ गुस्‍से से भर गयी थी. मैंने अपनी बहन सुलेखा के साथ-साथ खेल रहे एंग्लो इंडियन बच्चों के ऊपर इसका गुस्‍सा निकाला था.' उन्होंने लिखा कि जलियावाला कांड के बाद वह स्वतंत्रता संग्राम से जुड़कर देश के लिए कुछ करना चाहती थी. 


आज़ादी से लेकर वर्तमान समय में भारतीय राजनीति में महिलाओं की स्थिति


भारत आजादी के 75वें साल का महोत्सव मना रहा है लेकिन इतने सालों बाद भी राजनीति में महिलाओं की स्थिति बहुत बेहतर नहीं है. आजादी के बाद केंद्र सरकार (जवाहरलाल नेहरू की सरकार में) की पहली कैबिनेट में 20 कैबिनेट मिनिस्ट्री में सिर्फ एक महिला थी जिनका नाम था अमृत कौर, जिन्हें हेल्थ मिनिस्ट्री का चार्ज सौंपा गया था. यहां तक की इंदिरा गांधी की भी 5वीं, 6ठीं, 9वीं कैबिनेट में एक भी महिला यूनियन मिनिस्टर नहीं थीं. वहीं राजीव की कैबिनेट में केवल एक महिला मोहसिना किदवई को जगह मिली थी. वर्तमान स्थिति की बात करें तो पीएम नरेंद्र मोदी सरकार की कैबिनेट में अब कुल 11 महिला मंत्री हो गईं हैं. 


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