Supreme Court on Gender Discrimination: सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले पर सुनवाई के दौरान कहा है कि शादी के कारण किसी भी महिला को नौकरी से निकालना लैंगिक भेदभाव है. भारत के उच्चतम न्ययालय ने कहा है कि सेवा नियमों के तहत विवाह के कारण किसी महिला की सेवाएं समाप्त करना लैंगिक भेदभाव और असमानता का स्पष्ट मामला है. कोर्ट का कहना है कि ऐसे पितृसत्तात्मक मानदंडों को स्वीकार करना मानवीय गरिमा को कमतर करता है.


न्यायालय ने यह तीखी टिप्पणी उस मामले में की जिसमें पूर्व लेफ्टिनेंट सेलिना जॉन को उनकी शादी के कारण सैन्य नर्सिंग सेवा की नौकरी से हटा दिया गया था. न्यायालय ने केंद्र को जॉन को 60 लाख रुपये बतौर मुआवजा देने का निर्देश भी दिया है. जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने कहा, “हम ऐसी किसी भी दलील को स्वीकार करने में असमर्थ हैं कि प्रतिवादी- पूर्व लेफ्टिनेंट सेलिना जॉन, जो सैन्य नर्सिंग सेवा में स्थायी कमीशन अधिकारी थीं, को इस आधार पर मुक्त किया जा सकता है कि उन्होंने शादी कर ली है.’’


आठ सप्ताह के अंदर देना होगा 60 लाख का मुआवजा


पीठ का यह आदेश सशस्त्र बल न्यायाधिकरण की लखनऊ पीठ के उस आदेश के खिलाफ केंद्र सरकार की अपील पर आया है, जिसमें जॉन की बर्खास्तगी को गलत और अवैध बताया गया था. पीठ ने कहा कि न्यायाधिकरण के आदेश में किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है. इस दौरान अदालत ने कहा, 'मौजूदा मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर गौर करते हुए, हम अपीलकर्ता (भारत सरकार) को प्रतिवादी को आठ सप्ताह के अंदर साठ लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश देते हैं.'


मामले की सुनवाई करते हुए पीठ ने न्यायाधिकरण के आदेश को संशोधित करते हुए कहा कि मुआवजा पूर्व अधिकारी द्वारा किए गए सभी दावों का 'पूर्ण और अंतिम निपटान' होगा. न्यायाधिकरण ने जॉन को पिछले वेतन और अन्य लाभों के साथ बहाल करने का निर्देश दिया था.


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