Farmers Protest On MSP: न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) समेत कई मुद्दों को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे किसान पिछले कई दिनों से हरियाणा-पंजाब के बॉर्डर पर डटे हुए हैं. किसान आंदोलन का आज शुक्रवार (23 फरवरी) को 11वां दिन है और प्रदर्शनकारी किसानों ने आक्रोश दिवस का आह्वान किया. शुभकरण सिंह नाम के एक किसान की मौत भी हुई है. जिस एमएसपी को लेकर किसान आंदोलन कर रहे हैं उसका कानून बनाना मोदी सरकार के लिए उतना आसान भी नहीं है.


बिजनेस टुडे के मुताबिक, इसको लेकर विशेषज्ञों का मानना है कि एमएसपी के लिए कानून की गारंटी लागू करना सरकार के लिए मुश्किल हो सकता है. सरकार ने भी संकेत दिए हैं कि एमएसपी पर कानून लाना संभव नहीं है. सरकार से जुड़े सूत्रों की अगर मानें, एमएसपी गारंटी कानून अगर लाया जाता है तो सरकार पर आर्थिक भार बढ़ेगा जो सालाना लगभग 10 लाख करोड़ रुपये तक हो सकता है.


22 जरूरी फसलों पर सरकार तय कर रही एमएसपी


मौजूदा समय में, सरकार कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) की सिफारिशों के साथ-साथ केंद्र, राज्यों और अन्य हितधारकों के विचारों को ध्यान में रखते हुए 22 अनिवार्य फसलों के लिए एमएसपी तय करती है. केंद्रीय बजट 2018-19 में एक घोषणा के बाद, उत्पादन लागत के डेढ़ गुना के स्तर पर तय किया गया है.


इसके अलावा कौन सी है रुकावट?


किसान संगठन इस बात पर अड़े हैं कि सरकार एमएसपी की गारंटी दे लेकिन इस पर कानून न बन सकने की एक वजह है विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के साथ हुआ समझौता. विशेषज्ञों का कहना है कि एमएसपी अकेले भारत की ही नहीं बल्कि विश्व के ज्यादातर देशों की समस्या है और डब्ल्यूटीओ से जुड़े रहकर इसका समाधान निकालना मुश्किल है. भारत डब्ल्यूटीओ का संस्थापक सदस्य है और उसने इसके तहत बहुपक्षीय कृषि समझौते पर हस्ताक्षर कर रखे हैं. जिसमें लिखा गया है कि सरकार बाजार भाव में दखल नहीं देगी.


डब्ल्यूटीओ का सदस्य होना मजबूरी क्यों?


इसको लेकर विशेषज्ञ की राय है कि जो भी विकासशील देश होते हैं उनको अपनी अर्थव्यवस्था बढ़ाने के लिए बड़े पैमाने पर लोन भी चाहिए होता है. ये कर्ज या तो अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से मिलता है या फिर वर्ल्ड बैंक देती है. अब अगर इन दोनों जगहों से किसी देश को कर्ज लेना है तो उसे डब्ल्यूटीओ का मेंबर होना जरूरी है. अगर ऐसा नहीं है तो विश्व व्यापार का लाभ नहीं मिल सकता.


सरकार ने जिस समिति का गठन किया था उसका क्या?


मनी कंट्रोल के मुताबिक, किसान आंदोलन के पार्ट वन के दौरान 19 नवंबर, 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन कृषि कानूनों को रद्द करने की घोषणा के बाद तेरह महीने तक चला ये विरोध प्रदर्शन खत्म हुआ. 12 जुलाई 2022 को ही केंद्र सरकार ने पूर्व कृषि सचिव संजय अग्रवाल की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया था. समिति में 29 सदस्य हैं जिनमें से चार भारत सरकार के सचिव और चार राज्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं.


इसमें शामिल मुद्दों की जटिलता के कारण यह आश्चर्य की बात नहीं है कि समिति एक रिपोर्ट पेश नहीं कर पाई है. लोकसभा चुनाव पास होने की वजह से यह भी संभावना नहीं है कि समिति कोई अंतरिम रिपोर्ट पेश कर पाएगी. समिति की शर्तों में विशेष रूप से एमएसपी के लिए कानूनी गारंटी का उल्लेख नहीं है.


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