नई दिल्ली: अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद काबुल में भारी अफरातफरी है. लोग जान बचाने के लिए देश से निकलना चाहते हैं और यहां से निकलने के लिए एयरपोर्ट ही एकमात्र रास्ता बचा है. काबुल के हामिद करजई एयरपोर्ट पर हजारों लोगों की भीड़ जमा हो गई है. विमान पर चढ़ने के लिए मारामारी हो रही है. 


हालात को काबू करने के लिए अमेरिका ने एयरपोर्ट पर अपने छह हजार सैनिकों को तैनात किया है. ताजा खबर ये है कि एयरपोर्ट पर अमेरिकी सैनिकों की फायरिंग में पांच लोग मारे गए हैं. उधर तालिबान ने बयान जारी कर कहा है कि उसके लड़ाके उन लोगों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाएंगे जो देश छोड़कर जाना चाहते हैं.


अफगानिस्तान में मौजूदा हालात को लेकर बड़ी संख्या में लोग अमेरिका को जिम्मेदार बता रहे हैं. जिसने बीस साल बाद तालिबान के साथ करार करके अपनी सेना को वापस बुलाने का फैसला किया. अफगानिस्तान अराजकता के माहौल को लेकर वॉशिंगटन में भी लोगों का गुस्सा  फूट पड़ा है. 


लोग राष्ट्रपति जो बाइडेन के अमेरिकी सैनिकों को वापस बुलाने के फैसले की आलोचना कर रहे हैं. व्हाइट हाउस के बाहर लोग प्लेकार्ड्स लेकर विरोध प्रदर्शन भी कर रहे हैं.  इस सब के बीच सवाल उठता है आखिर अमेरिका ने अफगानिस्तान से अपनी सेना को वापस बुलाने का फैसला क्यों किया?


अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना क्यों छोड़कर चली गई?
अमेरिका ने तालिबान को सत्ता से बाहर करने के लिए अक्तूबर 2001 में अफगानिस्तान पर हमला किया था. अमेरिका का आरोप था कि अफगानिस्तान लादेन और अल-कायदा से जुड़े दूसरे लोगों को पनाह दे रहा है. अमेरिका इन्हें ही सितंबर 2001 के हमले के लिए ज़िम्मेदार मानता है.


युद्ध के दौरान एक समय अमेरिकी सैनिकों की संख्या 1 लाख 10 हजार तक पहुंच गई थी. दिसंबर 2020 तक अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों की संख्या 4 हजार ही रह गई थी. अमेरिका के रक्षा मंत्रालय के मुताबिक अफगानिस्तान युद्ध पर अक्तूबर 2001 से सितंबर 2019 के बीच 778 अरब डॉलर खर्च हुए.


अमेरिका के अधिकारिक डाटा के मुताबिक़ साल 2001 से 2019 के बीच अमेरिका ने अफगानिस्तान  में कुल 822 अरब डॉलर खर्च किए. 2001 में तालिबान के ख़िलाफ़ युद्ध शुरू होने के बाद से 2300 से अधिक अमेरिकी सैनिक अफ़ग़ानिस्तान में जान गंवा चुके हैं. जबकि 20660 सैनिक लड़ाई के दौरान घायल भी हुए हैं.


2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में प्रत्याशी के तौर पर ट्रंप ने कहा था कि अफ़ग़ानिस्तान और इराक में युद्ध के दलदल में फंसा हुआ अमेरिका इन 'अंतहीन युद्धों' से थक गया है. पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप ने सैनिकों की वापसी की 1 मई 2021 तक की समयसीमा तय की थी. बाइडेन ने समय बढ़ाते हुए सभी अमेरिकी सैनिकों को पहले वापस बुला लिया.


क्या है दोहा समझौत जिसके तहत अमेरिका और तालिबान में बातचीत हुई?
तालिबान ने अमेरिका के साथ साल 2018 में बातचीत शुरू कर दी थी. फरवरी, 2020 में कतर की राजधानी दोहा में दोनों पक्षों के बीच समझौता हुआ. जहां अमेरिका ने अफगानिस्तान से अपने सैनिकों को हटाने की प्रतिबद्धता जताई. और तालिबान अमेरिकी सैनिकों पर हमले बंद करने को तैयार हुआ.


समझौते में तालिबान ने अपने नियंत्रण वाले इलाके में अल कायदा और दूसरे चरमपंथी संगठनों के प्रवेश पर पाबंदी लगाने की बात भी कही. राष्ट्रीय स्तर की शांति बातचीत में शामिल होने का भरोसा भी दिया था.


समझौते के अगले साल से ही तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान के आम नागिरकों और सुरक्षा बल को निशाना बनाना जारी रखा. अब जब अमेरिकी सैनिक अफ़ग़ानिस्तान से विदा होने की तैयारी कर रहे हैं तब तालिबान अफ़गानिस्तान में हावी हो गया है.


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