Election Commission On Electoral Bond: चुनाव आयोग ने रविवार (17 मार्च) को सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर एसबीआई से इलेक्टोरल बॉन्ड पर मिली नई जानकारी को अपनी वेबसाइट पर अपलोड कर दिया. इससे पहले चुनाव आयोग ने 14 मार्च को इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी जानकारी को सार्वजनिक किया था. इसमें कंपनियों द्वारा खरीदे गए इलेक्टोरल बॉन्ड और पार्टियों के इसके जरिए मिले चंदे का जिक्र था. 


दरअसल, केंद्रीय चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में इलेक्टोरल बॉन्ड पर जमा रिपोर्ट मिलने के बाद उसे सार्वजनिक किया है. यह वह जानकारी है जो राजनीतिक दलों ने सुप्रीम कोर्ट के अप्रैल 2019 के एक अंतरिम आदेश के बाद उनको इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए मिले चंदे के बारे में चुनाव आयोग को सौंपी थी. चुनाव आयोग ने इसे तत्कालीन कानून के हिसाब से गोपनीय रखते हुए सील्ड लिफाफे में रखी थी. 


लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर चुनाव आयोग ने यह जानकारी अदालत को सौंप दी थी. अब 15 मार्च के आदेश के बाद सुप्रीम कोर्ट ने यह सील बंद लिफाफा चुनाव आयोग को वापस सौंप दिया. इसके बाद चुनाव आयोग ने इसे सार्वजनिक कर दिया. 


क्या कहना है चुनाव आयोग का?


चुनाव आयोग ने यह डेटा सीलबंद लिफाफे में सुप्रीम कोर्ट को दिया था. चुनाव आयोग ने आज रविवार एक बयान में कहा, "सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री ने सीलबंद लिफाफे में एक पेन ड्राइव में डिजिटल रिकॉर्ड के साथ फिजिकल प्रतियां वापस कर दी हैं. भारत के चुनाव आयोग ने आज सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री से डिजिटल रूप में प्राप्त डेटा अपलोड कर दिया है. आयोग ने 19 अप्रैल से 1 जून तक सात चरणों में होने वाले लोकसभा चुनावों की तारीखों की घोषणा के एक दिन बाद डेटा जारी किया है.


विपक्ष उठा रहा सवाल


बता दें कि चुनावी बॉन्ड को लेकर विपक्षी दल लगातार केंद्र की BJP सरकार पर हमलावर है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इसे सबसे बड़ी लूट की साजिश करार दिया है, जबकि आम आदमी पार्टी ने कोर्ट की निगरानी में इसकी जांच की मांग की है. सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड की सख्ती के बाद स्टेट बैंक ने 12 मार्च को चुनावी बॉन्ड से संबंधित डाटा इलेक्शन कमिशन को सौंपा था, जहां से इसे सुप्रीम कोर्ट को दिया गया था. कोर्ट ने इसे अपलोड करने का आदेश चुनाव आयोग को दिया था.