नई दिल्ली: दिल्ली और एनसीआर गैस चेंबर में तब्दील हो चुका है. डॉक्टरों ने इसको मेडिकल इमरजेंसी जैसे हालात बताया है. इस सबके बीच में सवाल यह भी है कि आखिर क्या इस जहरीली धुंध की वजह सिर्फ पड़ोसी राज्यों से आने वाला धुंआ ही है? एबीपी न्यूज की पड़ताल के दौरान आईआईटी दिल्ली की रिपोर्ट सामने आई. इसमें दिल्ली में फैले प्रदूषण के पीछे की वजहों को बताया गया है.


- दिल्ली के प्रदूषण में 38 फीसदी हिस्सा तो धूल का है.


- वहीं करीबन 20 फीसदी हिस्सा वाहनों से होने वाले प्रदूषण का है.


- 13 फीसदी प्रदूषण एमसीडी और जनेटर जैसी दूसरी वजहों से होता है. 


- 12 फीसदी हिस्सा घरों से होने वाले प्रदूषण का है.


- इसके बाद 11 फ़ीसदी हिस्सा दिल्ली में चल रही फैक्ट्रीयों का है.


- वहीं करीबन 6 फीसदी प्रदूषण में योगदान कंक्रीट बैचिंग देती है.


ऐसे में सवाल उठता है कि अगर धूल दिल्ली में सबसे बड़ा कारक है तो इस धूल पर नियंत्रण पाने के लिए अब तक क्या किया गया?  एबीपी न्यूज़ की पड़ताल में पता चला कि तीनों नगर निगमों ने फिलहाल इस समस्या से समाधान पाने के लिए वैक्यूम क्लीनिंग मशीन खरीदी है.


पूरी दिल्ली यानी के तीनों नगर निगमों के पास कुल मिलाकर इस तरह की 20 मशीने हैं. जिसमें से 12 मशीनें दक्षिणी दिल्ली नगर निगम के पास, 4 मशीनें पूर्वी दिल्ली नगर निगम के पास और 4 मशीनें उत्तरी दिल्ली नगर निगम के पास मौजूद हैं.


इसी वजह से नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में जब दिल्ली की जहरीली धुंध को लेकर सुनवाई शुरू हुई तो एनजीटी ने इसी तरीके से सफाई करने का निर्देश दिया. ताकि धूलकण नमी के साथ मिलकर इस वातावरण को और ज्यादा खराब ना करें. एनजीटी ने सुनवाई के दौरान इसी वजह से सफाई के साथ में ही जल छिड़काव का भी आदेश दिया है.


हालांकि इस बीच यह साफ कर देना जरूरी है कि दिल्ली को जितनी मशीने चाहिए उतनी मौजूद नहीं हैं. पूरी दिल्ली को सिर्फ 20 वैक्यूम मशीनों से साफ नहीं किया जा सकता और इसी वजह से अलग-अलग नगर निगमों ने इस तरीके की और मशीनें खरीदने का प्रपोजल भी तैयार किया है.


जानकारी के मुताबिक अभी तक जो मशीनें नगर निगम ने खरीदी हैं वह डीजल मशीन हैं. इनकी कीमत लगभग 87 लाख प्रति मशीन है. वहीं अगर CNG मशीन खरीदी जाती है तो उसकी लागत करीबन 2 करोड़ों रुपए प्रति मशीन पड़ेगी. लेकिन इस बीच नगर निगम से जुड़े लोगों की मानें तो इस वैक्यूम मशीन से ही दिल्ली की सफाई नहीं हो सकती क्योंकि यह मशीनें तो सिर्फ एक हिस्से में ही काम कर सकती हैं .एक बहुत बड़ा हिस्सा ऐसा है जहां पर मैनुअल सफाई करवानी ही पड़ेगी. जब मैनुअल सफाई होगी तो फिर धूल तो उड़ेगी ही.


हालांकि एमसीडी की दलीलें अपनी जगह हैं. लेकिन इस सब के बीच में इस बात से तो इनकार नहीं किया जा सकता कि दिल्ली में प्रदूषण की जो सबसे बड़ी वजह निकल के सामने आई वह धूल है. अगर इस धूल पर ही थोड़ा नियंत्रण कर लिया जाए और साफ सफाई के दौरान ही इसको हवा में उड़ने से रोका जा सके तो शायद इस मेडिकल इमरजेंसी जैसे हालात से तो बचा ही जा सकता है.