5G Drones Technology: अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की अगुवाई में हो रही क्वाड नेताओं की पहली रूबरू बैठक हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में नई तकनीकी साझेदारी मजबूत करने के साथ ही सेमीकंडक्टर संकट के समाधान का भी रास्ता निकालेगी. इस बैठक के दौरान जहां उभरती तकनीकों और आवश्यक प्रौद्योगिकी पर मिलकर आगे बढ़ने की तैयारी है. क्वाड देशों के नेताओं की जून 2021 में हुई पहली वर्चुअल शिखर बैठक के बाद क्वाड तकनीकी सहयोग नेटवर्क का ऐलान किया गया. यह नेटवर्क तेजी से उभरती और भविष्य के कामकाज का खाका तय करने वाली उन्नत तकनीकों पर आपसी साझेदारी बढाने पर काम करेगा. माना जा रहा है कि 24 सितंबर को व्हाइट हाउस में होने वाली क्वाड नेताओं की पहली रूबरू शिखर बैठक में इस मोर्चे पर साझेदारी को आगे बढाने और ठोस शक्ल देने पर बात होगी.


दरअसल क्वाड की इमारत का एक अहम कमरा है तकनीकी साझेदारी. इसमें खासतौर पर उन प्रौद्योगिकियों पर है जो भविष्य के लिहाज़ से ज़रूरी हैं. साथ ही ख़ास ज़ोर चारों रणनीतिक साझेदार देशों के बीच इंटरऑपरेबिलिटी पर है. यानी सभी चारों देशों के बीच न केवल उपकरणों की समानता हो बल्कि उनके बीच कम्यूनिकेशन सिस्टम का तालमेल और एक दूसरे के ठिकानों पर उनकी मरम्मत का इंतज़ाम भी हो.


सभी क्वाड देश उड़ाएंगे अमेरिकी गार्जियन ड्रोन
क्वाड देशों की नई तकनीकी मोर्चाबंदी और साझेदारी का नमूना है अमेरिकी सी गार्जियन ड्रोन सिस्टम. अमेरिका की जनरल एटॉमिक्स कम्पनी का MQ9B सी गार्जियन सिस्टम अब क्वाड के चारों देशों के पास होगा. यानी अमेरिका के अलावा ऑस्ट्रेलिया, जापान और अब भारत भी समुद्री निगरानी के लिए इसी उन्नत ड्रोन का इस्तेमाल करेगा. जापानी कोस्टगार्ड और ऑस्ट्रेलिया डिफेंस फोर्सेज पहले ही MQ9 ड्रोन खरीद कर चुके हैं. जाहिर तौर पर इन ड्रोन के सहारे हिन्द प्रशांत सागर में चीन के जहाज और पनडुब्बियों की निगरानी सम्भव हो सकेगी. 


सी-गार्जियन ड्रोन सिस्टम की खरीद को दी गई मंजूरी
अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन की मार्च 2021 में हुई भारत यात्रा के बाद भारतीय नौसेना के लिए सी-गार्जियन ड्रोन सिस्टम की खरीद को मंजूरी दी गई. भारत करीब 3 अरब डॉलर की लागत से 30 सी गार्जियन ड्रोन खरीदेगा. इससे पहले भारत ने 2020 में इसी श्रेणी के दो MQ9 ड्रोन लीज़ पर हासिल किए थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान जनरल एटॉमिक्स के अध्यक्ष और सीईओ विवेक लाल से मुलाकात कर रहे हैं. गौरतलब है कि ड्रोन तकनीक भी एक उभरती हुई प्रौद्योगिकी है और भारत समेत दुनिया के कई देशों में तेज़ी से इसका इस्तेमाल भी बढ़ रहा है और ताकत भी. 


5G समेत संचार तंत्र पर साझेदारी
हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में रणनीतिक चतुर्भुज यानि क्वाड देश 5जी समेत संचार तकनीक में चीनी दबदबे से मुकाबले के लिए प्रौद्योगिकी विकल्प खड़ा करने में जुटे हैं. इसके लिए अमेरिका, यूरोप और जापान की तकनीकी कम्पनियों के बीच साझेदारी बनाने पर काम हो रहा है. भारत और जापान पहले से नई 5जी संचार तकनीक पर काम कर रहे हैं. अमेरिकी राजनयिक सूत्रों के अनुसार डिजिटल  नेटवर्क  सुरक्षा की बढ़ती अहमियत के मद्देनजर निश्चित तौर पर यह क्वाड के बीच सहयोग का महत्वपूर्ण मुद्दा है. ताकि 5 जी तकनीक के लिए भरोसेमंद वेंडर का एक बड़ा नेटवर्क खड़ा किया जा सके. क्वाड चौकड़ी की कोशिश नई 5जी तकनीक पर सहयोग का दायरा हिन्द प्रशांत के अन्य देशों खासकर आसियान देशों तक बढाने का है. स्वाभाविक तौर पर 5जी तकनीक पर चीन की हुवावे जैसी कम्पनियों के दर्जनों पेटेंट और दबदबा क़ई अब क़ई देशों की चिंता बढ़ा रहा है. वहीं डिजिटल सिल्क रुट जैसे विचारों ने चीनी तकनीकी उपनिवेशवाद के खतरों को गहराया ही है. 


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका यात्रा के दौरान मोबाइल व संचार तकनीक की अग्रणी कम्पनी क्वालकॉम के सीईओ से भी मिल रहे हैं. भारत की कोशिश है कि बड़ी अमेरिकी कम्पनियों से अधिक निवेश को आकर्षित किया जाए ताकि बेहतर व भरोसेमंद तकनीक के साथ साथ भारतीय पेशेवरों को नए अवसर भी मिल सकें. 


सेमीकंडक्टर संकट पर समाधान के बहाने चीन पर निशाने
विश्व में तेजी से बढ़ते डिजिटल आधार के बीच आए कोविड19 संकट ने दुनिया को जिस नई चुनौती से रूबरू कराया है वो है सेमीकंडक्टर या माइक्रोचिप. किसी भी कम्प्यूट, स्मार्ट डिवाइस से लेकर आधुनिक वाहनों में इस्तेमाल होने वाली माइक्रोचिप की इन दिनों भारी किल्लत है. कोविड19 संकट में बढ़ी माँग, चीन की जमाखोरी और आपूर्ति तंत्र में आई रुकावटों ने सेमीकंडक्टर संकट को इस कदर गहरा दिया है कि जनरल मोटर्स जैसी बड़ी वाहन निर्माता कम्पनियों को अपने उत्पादन क़ई रफ्तार रोकना पड़ी है. इतना ही नहीं क़ई महत्वपूर्ण रक्षा उपकरणों की मरम्मत के लिए भी संकट खड़ा होने लगा है.


अमेरिका करता है बाजार को कंट्रोल
दुनिया में अमेरिका 47 फीसद सेमीकंडक्टर बाजार को नियंत्रित करता है. लेकिन उसका घरेलू उत्पादन केवल 12 फीसद ही है. जबकि चीन मैक्रोचिप्स का नेट आयातक है. लेकिन डॉनल्ड ट्रम्प राज में शुरू हुए अमेरिकाचीन व्यापार युद्ध के बीच चीन ने बड़े पैमाने पर मैक्रोचिप्स क़ई जमाखोरी कर ली. साथ ही उसने बड़े पैमाने पर अपना घरेलू माइक्रोप्रोसेसर उत्पादन भी तेज़ी से बढ़ाया है. साथ ही इन चिप्स में इस्तेमाल होने वाले रेयर अर्थ धातुओं के बाज़ार पर चीन का दबदबा उसका बड़ा हथियार साबित हो रहा है. ऐसे में अगर वैकल्पिक उपाय न किए गए तो चीन पर मैक्रोचिप्स के लिए वैश्विक निर्भरता बढ़ सकती है. साथ ही वो वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक उत्पादनों पर भी अपनी दादागिरी चला सकेगा.


हालांकि इस संकट के बीच ताइवान और दक्षिण कोरिया जैसे देश बड़े मददगार के तौर पर उभरे हैं. चीन के आंख की किरकिरी ताइवान की कम्पनी TSMC दुनिया के आधे से अधिक सेमीकंडक्टर उत्पादन के लिए ज़िम्मेदार है. मौजूदा संकट में यदि ताइवान के हाथ मजबूत किए जाते हैं तो इसके सहारे क्वाड के लिए एक तीर से दो निशाने सम्भव होंगे. ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि क्वाड के देश ताइवान के साथ सहयोग पर ज़ोर दें ताकि मैक्रोचिप संकट का रास्ता निकलने के साथ साथ चीन के दुनिया का रिमोट कंट्रोल अपने हाथ में लेने के सपनों को मिनी यानी छोटा किया जा सके.


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