धर्मशाला सुपरस्पेशिलिटी हॉस्पिटल के पल्मोनेरी कंसल्टेंट डॉ. नवनीत सूद कहते हैं कि ये कहा जाता है कि कोविड से ग्रसित व्यक्ति में एंटीबॉडी बनती हैं जिससे ये धारणा बनाई जाती है कि अब उसे वायरस दोबारा शिकार नहीं बनाएगा. लेकिन ऐसे भी केस आए हैं जिनमें ठीक होने के बाद सही मात्रा में एंटीबॉडी नहीं बनी. ये किसी भी मरीज को होने वाले संक्रमण की तीव्रता पर निर्भर करता है. डॉ. नवनीत सूद कहते हैं एक बार संक्रमित होने के बाद एंटीबॉडीज बनती तो हैं लेकिन हर मरीज के संक्रमण के आधार पर ये प्रक्रिया अलग होती है.


मानव शरीर में वायरस से लड़ने के लिए एंटीबॉडी बनती हैं. लेकिन हर व्यक्ति का शरीर अलग तरह से रेस्पॉन्स देता है. ये भी हो सकता है कि किसी के शरीर में वायरस ब्लडस्ट्रीम तक या फिर फेफड़ों तक न पहुंचा हो, ऐसा होने पर एंटीबॉडीज कम संख्या में बनेगीं लेकिन इसी के साथ और दूसरे कारक भी अपने रोल निभाते हैं.


जानिए क्या होती हैं T cells  और B cells


इम्यूनिटी को T cells  और B cells में बांटा जा सकता है. T cells  का कोई इंडीकेटर नहीं होता और ये कई तरह के इंफेक्शन और वायरस से हमारी रक्षा करते हैं. एक बार संक्रमण होने पर जो एंटाबॉडीज बनती हैं वो B cells बनाती हैं. इस तरह कोविड एंटीबॉडीज भी B cells में जुड़ जाती हैं. लेकिन T cells  और B cells दोनों ही किसी भी तरह के इंफेक्शन से सुरक्षा देने में अहम होती हैं.


संक्रमण की तीव्रता का एंटीबॉडीज से संबंध


इस पर डॉ सूद कहते हैं कि संक्रमण की तीव्रता उतना अहम नहीं है जितना ये जानना कि संक्रमण खून या फिर फेफड़ों में प्रवेश तो नहीं कर गया है. एंटीबॉडीज संक्रमण से बचाती हैं लेकिन इसकी गारंटी नहीं कि व्यक्ति को दोबारा इंफेक्शन नहीं होगा. डॉ. सूद ये भी कहते हैं कि कोविड सिर्फ फेफड़ों को ही संक्रमित नहीं करता है बल्कि ये मल्टिपल ऑर्गंस पर असर डालता है. ये भी देखा गया है कि मल्टिपल आर्गंस पर प्रभाव के बाद किसी स्ट्रेन के खिलाफ बनने वाली एंटीबॉडीज इसके प्रभाव का इलाज करने में सक्षम नहीं होती हैं.


स्वास्थ्य का ध्यान रखना सबसे जरूरी


डॉ सूद कहते हैं कि किसी भी तरह के हल्के या मॉडरेट लक्ष्ण की सूरत में मरीज को अपने पूरे स्वास्थ्य पर फोकस करना चाहिए. एंटीबॉडीज का बनना पूरी तरह सब्जेक्टिव विषय है जो अलग-अलग संक्रमण की दशा में अलग होता है.


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