जाहिर तौर पर गधे का मांस भारत के दक्षिणी राज्य आंध्र प्रदेश का नया वायग्रा बन गया है, जहां गधे के मांस का अवैध कारोबार फल-फूल रहा है. गधी का दूध भी गाय, भैंस और बकरी के दूध की तुलना में महंगा बिक रहा है. कुछ लोगों का मानना है कि गधे का मांस उनके यौन क्षमता को बढ़ा सकता है और अस्थमा जैसी सांस की समस्या का इलाज कर सकता है.


आंध्र प्रदेश में गधे के मांस की बिक्री क्यों हो रही लोकप्रिय?
वन्यजीव विशेषज्ञों को आशंका है कि गधे के मांस से जुड़ा वर्तमान का ये अंधविश्वास उनकी संख्या को तेजी से कम कर सकता है. पशु संरक्षण कार्यकर्ताओं के मुताबिक, गधा अवैध रूप से महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे राज्यों से आंध्र प्रदेश तस्करी कर लाया जा रहा है, और चोरी छिपे कृष्णा, पश्चिमी गोदावरी, गुंटूर और प्रकाशम में बेचा जा रहा है. हालांकि, एक गधे को 10 हजार से 20 हजार रुपये में खरीदा जा सकता है, लेकिन उसका मांस 600 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बिक रहा है.


स्थानीय स्तर पर मिली जुली भाषा में गधे के मांस को 'पॉपी' के नाम से जाना जाता है. पशु कल्याण कार्यकर्ता गोपाल आर सुरबथुलआ ने मीडिया को बताया, "मांस के बाजार हर गुरुवार और रविवार को लगते हैं, हर मौके पर 100 गधों को काटा जा रहा है." भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) ने 'पशु फूड' की 2011 की श्रेणी में गधे के मांस को शामिल नहीं किया है. इसलिए, उसकी हत्या करना और इस्तेमाल करना गैर कानूनी है.


यौन शक्ति बढ़ाने के इच्छुक और धावकों के बीच मिथक
ये पहली बार नहीं है जब झुठे दावों के तहत गधे के मांस की बिक्री का मुद्दा सामने आया हो. आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक जैसे राज्यों के अधिकारी मिलती-जुलती चिंता 2017 और 2018 में गधे के मांस के अवैध कारोबार पर जाहिर कर चुके हैं. कुछ पशु अधिकार कार्यकर्ताओं के मुताबिक, भारत में गधे के मांस खाने की परंपरा की शुरुआत आंध्र प्रदेश के प्रकाशम जिले से होती है.


ये इलाका ऐतिहासिक रूप से कुख्यात चोर गिरोह के लिए जाना जाता है. असत्यापित दावा शायद इस मिथक से निकला हो कि गधे के खून को पीने से तेज दौड़ने की क्षमता में सुधार हो सके, लंबी दूरी के दौड़नेवालों के बीच ये थ्योरी प्रसिद्ध है. हाल के दिनों में कुछ मछुआरों के भी बंगाल की खाड़ियों में मछली पकड़ने के लिए जाल फेंकने से पहले गधा का खून पीने की बात आ रही है.


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