Congress Donate For Desh: एक लाख 38 हजार रुपये. ये वो रकम है जो कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने पार्टी को चंदे के तौर पर दान दी है और इस राशि के साथ ही कांग्रेस ने आधिकारिक तौर पर क्राउड फंडिग की शुरुआत कर दी है, लेकिन 138 साल पुरानी पार्टी में आखिर ऐसा क्या हुआ कि अब उसे लोगों से पैसे मांगने की जरूरत पड़ गई.


आखिर महज 10 साल सत्ता से बाहर रहने के बाद कांग्रेस में ऐसा क्या हो गया कि उसे फंड जुटाने के लिए किसी कॉरपोरेट नहीं, बल्कि आम लोगों से अपील करनी पड़ी और क्या पैसे जुटाने की ये अपील पैसे जुटाने से ज्यादा वोट जुटाने के लिए है, जिसका सहारा कभी महात्‍मा गांधी ने आजादी के आंदोलन में भी लिया था.


दरअसल, 28 दिसंबर को कांग्रेस का बर्थडे है. इस साल पार्टी 138 साल की हो रही है. इस मौके पर ही कांग्रेस ने 18 साल से ऊपर के लोगों से चंदा देने की अपील की है, जिसमें चंदे की न्यूनतम राशि 138 रुपये रखी गई है. जिसे भी चंदा देना है वो 138 रुपये, 1380 रुपये, या 13,800 रुपये या फिर इसी 138 के गुणांक में पार्टी को चंदा दे सकता है.


28 दिसंबर को जब पार्टी का बर्थडे होगा तो पार्टी की ओर से नागपुर में एक रैली आयोजित की जाएगी. इस रैली में पूरे देश के कांग्रेस कार्यकर्ता शरीक होंगे. उसी दिन ऑनलाइन चंदे का ये कार्यक्रम बंद करके डोर-टू-डोर कैंपेन शुरू होगा और हर बूथ से कम से कम 10 घरों में जाकर कांग्रेस कार्यकर्ता चंदा इकट्ठा करेंगे.


कांग्रेस ने 2018 में भी की थी कोश‍िश, नाकाम रही 


अब सवाल यह है क‍ि क्या कांग्रेस को 'डोनेट फॉर देश' कैंपेन के जरिए सिर्फ पैसा चाहिए या फिर कहानी कुछ और है, ज‍िसका इशारा कांग्रेस कर चुकी है. जाहिर है कि कांग्रेस क्राउड फंडिंग के जरिए इतने पैसे तो इकट्ठा कर नहीं पाएगी कि वो बीजेपी के बराबर पैसे हासिल कर ले. साल 2018 में कांग्रेस ने ये कोशिश की थी और बुरी तरह से नाकाम हुई थी.


लिहाजा कहानी कुछ और ही है. ये कहानी लोगों से सीधे जुड़कर उनसे कुछ पैसे हासिल करने के साथ ही उनका भरोसा जीतने की है ताकि यह भरोसा 2024 के लोकसभा चुनाव में वोट में भी तब्दील हो सके. खुद कांग्रेस ने आजादी के आंदोलन के दौरान के तिलक स्वराज फंड का उदाहरण देकर अपनी मंशा साफ कर दी है.


1920 में कांग्रेस का महाराष्ट्र के नागपुर में हुआ था अधिवेशन


1 अगस्त 1920 को महाराष्ट्र के मुंबई में बाल गंगाधर तिलक की मौत हो गई थी. यह वो तारीख थी जब महात्मा गांधी के आह्वान पर देश में असहयोग आंदोलन शुरू हुआ था, जिसका अंतिम लक्ष्य स्वराज था. उसी साल यानी कि 1920 में ही कांग्रेस का महाराष्ट्र के नागपुर में अधिवेशन हुआ और वहां तय किया गया कि असहयोग आंदोलन के जरिए स्वराज हासिल करने के लिए कांग्रेस को पैसे चाहिए और ये पैसे लोगों से चंदे के तौर पर लिए जाएंगे.


तिलक स्वराज फंड के नाम से चलाया था अभियान


चंदा जुटाने के इस अभियान को नाम दिया गया तिलक स्वराज फंड. तब कांग्रेस का लक्ष्य था कि 1920-21 में कांग्रेस एक करोड़ रुपये जुटाएगी. जब चंदा जुटाने की तारीख बीत गई तो कांग्रेस के पास एक करोड़ रुपये से भी ज्यादा की रकम चंदे के तौर पर जमा हो चुकी थी.


तिलक स्वराज फंड ने पैसे के साथ जुटाई थी भीड़  


इस चंदा अभियान में सिर्फ पैसे ही जमा नहीं हुए थे. लोग भी जमा हुए थे, जो महात्मा गांधी की एक आवाज पर अपने स्कूल, अपनी नौकरी, अपना कारोबार छोड़कर असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए थे. पैसे का मकसद सिर्फ इतना सा था कि जिन्होंने भी कांग्रेस को स्वराज फंड में पैसे दिए हैं, वो असहयोग आंदोलन का हिस्सा जरूर बनेंगे और यही हुआ भी. असहयोग आंदोलन की सफलता इस बात की गवाही देती है कि तिलक स्वराज फंड ने पैसे के साथ आदमी भी जुटा दिए, जो कांग्रेस के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने को तैयार थे.


अब भी कांग्रेस की मंशा यही है कि जो भी लोग कांग्रेस को चंदा देंगे, चाहे वो रकम 138 रुपये ही क्यों न हो, वो कांग्रेस की विचारधारा से प्रभावित होंगे और उसे वोट करेंगे, नहीं तो इस चंदे के जरिए कांग्रेस पैसे जुटाकर बीजेपी के खिलाफ लड़ाई लड़ पाएगी, ये सोचना भी अपने आप में हास्यास्पद है, क्योंकि आंकड़े तो यही गवाही देते हैं. 


बीजेपी का चंदा 10 साल में बढ़कर 6,047 करोड़ रुपये हुआ 


चुनाव आयोग के आंकड़े बताते हैं कि सत्ता में आने से ठीक पहले साल 2013-14 में बीजेपी के पास कुल रकम करीब 781 करोड़ रुपये थी. करीब 10 साल तक सत्ता में रहने के बाद बीजेपी के पास अब कुल रकम बढ़कर 6,047 करोड़ रुपये हो गई है. ये आंकड़े साल 2021-22 के हैं, जो इनकम टैक्स रिटर्न से हासिल हुए हैं.


कांग्रेस पास बीजेपी के सत्ता में आने से पहले था 767 करोड़ का फंड


कांग्रेस की बात करें तो साल 2013-14 में जब देश की सत्ता पर वो काब‍िज थी, तो पार्टी के पास 767 करोड़ रुपये थे. यानी कि सत्ता में रहते हुए भी कांग्रेस के पास बीजेपी से कम पैसा था, लेकिन सत्ता जाने के बाद कांग्रेस के पैसे में थोड़ी बढ़ोतरी हुई और 2019-20 में कांग्रेस के पास कुल पैसे 929 करोड़ रुपये हो गए, लेकिन 2021-22 में जब बीजेपी के पास कुल रकम 6,047 करोड़ रुपये हो गई थी तो कांग्रेस के पास महज 806 करोड़ रुपये रह गए थे. 


बीजेपी के पास कांग्रेस से 8 गुना ज्यादा रकम 
 
इसका मतलब है कि बीजेपी के पास कांग्रेस से करीब 8 गुना ज्यादा पैसा है. पब्लिक डोनेशन हो या फिर इलेक्टोरल बॉन्ड, इसमें भी बीजेपी कांग्रेस से कम से कम चार गुना आगे है. उदाहरण के तौर पर 2021-22 में कांग्रेस को पब्लिक डोनेशन और इलेक्टोरल बॉन्ड से करीब 541 करोड़ रुपये मिले थे जबकि उसी वक्त में बीजेपी को 1917 करोड़ रुपये हासिल हुए थे. तो अब क्राउड फंडिग के जरिए कांग्रेस इस आंकड़े तक पहुंच जाएगी, ऐसा सोचना भी बेमानी है. लिहाजा क्राउड फंडिग एक जरिया है अपनी बात को लोगों तक पहुंचाने का, जिसमें कांग्रेस कितनी कामयाब होगी, ये 28 दिसंबर को तय हो जाएगा.


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