2024 Lok Sabha Election: राजनीतिक हलकों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक बयान की काफी चर्चा हो रही है. दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को राजस्थान के बांसवाड़ा में एक चुनावी सभा के दौरान कहा था कि कांग्रेस का इरादा लोगों की संपत्ति को "घुसपैठियों" और "जिनके ज़्यादा बच्चे हैं उनको बांटना चाहती है. उनका इशारा मुसलमान समुदाय की ओर था.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, पीएम मोदी के बयान पर सियासी घमासान शुरु हो गया है. जहां कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों ने पीएम पर हमला बोला है. दरअसल, जो पीएम मोदी ने जो कहा, वह कितना सच है? क्या सच में मुसलमानों के अन्य धर्मों से ज्यादा बच्चे हैं? सरकारी आंकड़ों के हवाले से समझिए.

जानिए भारत में कितनी है मुसलमानों की संख्या?

धार्मिक समूहों पर जनगणना के आंकड़े अब 13 साल पुराने हो गए हैं. ऐसे में धार्मिक समूहों के बारे में कोई विश्वसनीय आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं. मगर, पुराने आंकड़ो पर नजर डाले तो साल 2011 की जनगणना में मुसलमानों की जनसंख्या 17.22 करोड़ थी, जो उस समय भारत की जनसंख्या 121.08 करोड़ का 14.2% थी.  उससे पहले साल 2001 की जनगणना में मुसलमानों की जनसंख्या 13.81 करोड़ थी, जो उस समय भारत की जनसंख्या (102.8 करोड़) का 13.43% थी.

बता दें कि, साल 2001 से 2011 के बीच मुसलमानों की जनसंख्या में 24.69% की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है. यह भारत के इतिहास में मुसलमानों की जनसंख्या में सबसे धीमी वृद्धि थी. क्योंकि, साल 1991 से 2001 के बीच भारत की मुस्लिम जनसंख्या में 29.49% की बढ़ोत्तरी हुई थी.

मुस्लिम धर्म में कितने हैं औसतन सदस्य?

धर्मों के घरों से जुड़े आंकड़े नेशनल सैंपल सर्वे के 68वें राउंड (जुलाई 2011 से जून 2012) में हैं. इसके मुताबिक, प्रमुख धर्मों के घरों का औसत साइज इस तरह से है.

धर्म घर में सदस्यों की संख्या
हिंदू 4.3
मुस्लिम 5
ईसाई 3.9
सिख 4.7
अन्य 4.1
सभी 4.3
सोर्स- भारत में प्रमुख धार्मिक समूहों के बीच रोजगार और बेरोजगारी की स्थिति, एनएसएस 68वां राउंड  

रोजगार के आंकड़ों में मुस्लिमों के क्या हैं हालात?

नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (NSSO) जोकि देशभर में काम कर रहे मजदूरों की संख्या पर नजर रखता है. इसके अनुसार, देशभर की लेबर और वर्क फोर्स में मुस्लिमों की हिस्सेदारी सबसे कम है. माना जा रहा है कि मुस्लिम इन मामलों में तेजी से पिछड़ रहे है. मुस्लिम इन दोनों मामले में पिछड़ते जा रहे हैं. बात बेरोजगारी की करें तो मुस्लिमों की हालत बेहतर है. उनमें बेरोजगारी राष्ट्रीय औसत से कम है.

पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे में जुलाई 2022 - जून 2023 की सालाना रिपोर्ट के अनुसार, देश की लेबर फोर्स में मुस्लिमों की भागीदारी दर 32.5 है. जबकि, मुस्लिमों के बीच बेरोजगारी दर 2.4 है जो नेशनल एवरेज 3.2 से कम है.

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