Devasahayam Chosen For Sainthood: 18वीं शताब्दी में तत्कालीन त्रावणकोर राज्य में ईसाई धर्म अपनाने वाले देवसहाय को आज वेटिकन में पोप फ्रांसिस ने संत घोषित किया है. देवसहायम को लाजर के नाम से भी जाना जाता है. वेटिकन देवसहायम, जिसे लाजर के नाम से भी जाना जाता है ने वेटिकन की कठिन परीक्षा को मुस्कुराकर पार कर लिया जिसके लिए वो संत की उपाधि पाने वाले पहले भारतीय हैं. नीलकंदन पिल्लई जिनका जन्म मौजूदा कन्याकुमारी में हिंदू उच्च जाति के परिवार में हुआ था. 


उन्होंने त्रावणकोर महल में काम किया था. साल1745 में, उन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया और देवसहायम नाम से जाने गए उन्हें लाजर नाम भी दिया गया. उन्होंने जातिगत भेदभाव के खिलाफ लड़ाई लड़ी और उन्हें सताया गया और फिर बाद में उनकी हत्या कर दी गई. साल 2012 में, वेटिकन ने एक कठोर प्रक्रिया के बाद उनकी शहादत को मान्यता दी. दवसहायम को गर्भावस्था के सातवें महीने में एक महिला द्वारा 2013 में प्रार्थना करने के बाद एक चमत्कार की गवाही देने के बाद संत की उपाधि के लिए चुना गया था.


वेटिकन ने दिया देवसहाय को संत का दर्जा
महिला ने कहा कि उसके भ्रूण को डॉक्टरों ने 'चिकित्सकीय रूप से मृत' घोषित कर दिया गया था और उसके शरीर में कोई भी गति नहीं थी. हालांकि, उसने कहा, उसने 'शहीद से प्रार्थना करने के बाद' ऐसा अनुभव किया कि उसके गर्भ में थोड़ी हलचल सी हो रही है. इसके बाद वेटिकन ने इसे स्वीकार कर लिया और देवसहाय को संत का दर्जा दे दिया. 


इस वजह से उपनाम पिल्लई वेटिकन ने हटा दिया
फादर जॉन कुलंदई ने कहा, 'यह संतत्व हमारे लिए भेदभाव से मुक्त जीवन जीने और जीने का निमंत्रण है.' आपको बता दें कि फादर जॉन कुलंदई ने इस मामले पर काम करने वाली कन्याकुमारी में टीम के एक प्रमुख सदस्य के रूप में वेटिकन में विमोचन में भाग लिया था. वेटिकन के मूल निमंत्रण में देवसहायम की पूर्व जाति 'पिल्लई' का उल्लेख था. हालांकि, विरोधों के बाद किसी जाति का नाम जोड़ने से देवसहायम का उद्देश्य विफल हो जाता है, इसलिए वेटिकन ने इसे हटा दिया.


जाति और सांप्रदायिकता के खिलाफ लड़ी थी लड़ाई
सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी देवसहायम ने वेटिकन को पत्र लिखकर देवसहायम की जाति का नाम हटाने की मांग करते हुए कहा, 'संत देवसहायम समानता के लिए खड़े हुए और जातिवाद और सांप्रदायिकता के खिलाफ लड़ाई लड़ी. उन्हें ऐसे समय में संत की उपाधि दी गई है जब भारत बढ़ती हुई सांप्रदायिकता का सामना कर रहा है.' उन्होंने कहा, 'यह प्रचलित सांप्रदायिक जहर के खिलाफ खड़े होने का एक बड़ा अवसर है. चर्च को इसे एक जन आंदोलन बनाना चाहिए था, लेकिन वे असफल रहे और इसे पादरी-केंद्रित कार्यक्रम बना दिया.'


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