पटना : बिहार के कई जिलों में बाढ़ से लोगों का बुरा हाल है. आज सीएम नीतीश कुमार ने बाढ़ प्रभावित इलाकों का हवाई दौरा किया. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी राज्य में बाढ़ के हालात पर चर्चा की. पीएम मोदी ने सीएम नीतीश को स्थिति से निपटने के लिए केन्द्र की तरफ से तमाम सहयोग का भरोसा दिया.


यह पहली बार नहीं है जब बिहार बाढ़ की समस्या से जूझ रहा है. बिहार में बाढ़ के पीछे पांच बड़ी वजहे हैं. पहली वजह बिहार के बाढ़ प्रभावित इलाकों में हो रही भारी बारिश है. दूसरी वजह नेपाल में हो रही बारिश है. तीसरी वजह बारिश की वजह से नदियां उफान पर हैं. चौथी वजह नदियों में पानी भरा तो नेपाल ने अपना पानी छोड़ दिया. और पांचवीं वजह बिहार में भारी बारिश से पहले से नदी नालों में पानी भरा था, नेपाल ने पानी छोड़ा तो स्थिति और बिगड़ गई.

गौरतलब है कि बिहार में जो हर साल बाढ़ आती है, उसमें नेपाल से आयी पानी का सबसे बड़ा हिस्सा होता है. इस बार भी कोशी इलाके में जो बाढ़ आयी है, उसकी सबसे बड़ी वजह नेपाल का पानी ही है. सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, पूर्णिंया, कटिहार, किशनगंज, अररिया, फारबिसगंज और इससे सटे आसपास के जिले इस वक्त कोसी में आयी बाढ़ की चपेट में हैं.

कोसी नदी को बिहार का शोक कहा जाता है. करीब करीब हर साल कोसी में बाढ़ आती है और पूरा कोसी इलाका उसकी चपेट में आ जाता है. खास बात है कि बिहार के इस शोक की उत्पति बिहार से नहीं होती है बल्कि नेपाल से होती है और वहां से निकलकर कोसी बिहार में तबाही मचाती है.

बता दें कि कोसी नदी को सप्तकोसी नाम से भी पुकारा जाता है. दरअसल बिहार में जो कोसी नदी बहती है, उसमें सात नदियों-इंद्रावती, सुनकोसी, तांबकोसी, लिखुखोला, दूधकोसी, अरुण और तामूर नदी का जल मिला रहता है.

बरसात के मौसम में नेपाल के तराई वाले इलाकों में भारी बारिश होती है और उस बारिश की वजह से कोसी की सहायक सातों नदियों का जल उफान पर होता है और यहीं से बिहार के बाढ़ का नेपाल कनेक्शन शुरू होता है.

कोसी नदी नेपाल के हिमालय से निकलकर भीमनगर के रास्ते बिहार में दाखिल होती है. यहां पर कुछ और छोटी नदियों के साथ इसका संगम होता है और आखिर में ये भागलपुर के पास गंगा नदी में मिल जाती है.


कोसी का नेपाल से गंगा नदी का सफर आम दिनों में सामन्य होता है लेकिन बरसात के दिनों में कोसी की धारा की रफ्तार 150 मील प्रति घंटे से भी ज्यादा तेज हो जाती है. नदी के तेज बहाव की वजह से आसपास के इलाके की क्या हालत होती है, उसका अंदाजा लगाया जा सकता है.

कोसी के कहर से बिहार को बचाने के लिए 1954 में भीमनगर बांध बनाया गया था लेकिन अब तक का यही अनुभव रहा है कि ये बांध भी कोसी के कहर से बिहार को बचा नहीं पा रहा है. दरअसल इस बांध में ज्यादा पानी जमा रखने की क्षमता नहीं है और बरसात के मौसम में जैसे ही बांध में पानी क्षमता से ज्यादा होता है, बांध के 52 दरवाजों को जरुरत के हिसाब से खोल दिया जाते है.

भीमनगर बांध की क्षमता बढ़ाने और इसके रख रखाव को लेकर भारत और नेपाल के बीच कई बार बात हुई, समझौते भी हुए लेकिन अबतक इस मुद्दे पर कुछ खास काम नहीं हो पाया है. सच तो ये है कि अगर कोसी के जल को नियंत्रित कर लिया जाए तो बिहार में हर साल आनेवाली बाढ़ को काफी हदतक काबू किया जा सकता है.