नई दिल्ली: त्रिपुरा जहां पांच साल पहले तक बीजेपी की एक सीट नहीं थी. उस त्रिपुरा में पहली बार बीजेपी ने अपने दम पर लेफ्ट का किला ढहा दिया. त्रिपुरा में दो तिहाई सीटों के साथ बीजेपी पहली बार सरकार बनाने जा रही है. आखिर ये राजनीतिक चमत्कार कैसे हुआ, इस पर सियासी गलियारे में जोरदार चर्चा हो रही है.


लोकसभा की दो और विधानसभा की साठ सीटों वाले त्रिपुरा में बीजेपी के शानदार प्रदर्शन का सबसे बड़ा कारण सत्ता विरोधी लहर है. त्रिपुरा में 25 साल से लेफ्ट पार्टी की सरकार रही और पिछले 20 साल से माणिक सरकार त्रिपुरा के मुख्यमंत्री. विकास के मुद्दे पर सत्ता विरोधी लहर को अपने साथ लाने में बीजेपी कामयाब हुई.


त्रिपुरा में बीजेपी की जीते के नायक प्रदेश अध्यक्ष बिप्लव देव और त्रिपुरा में बीजेपी के प्रभारी सुनील देवधर बने हैं. संघ से जुड़े रहे यही दोनों शख्सियत त्रिपुरा में बीजेपी की ऐतिहासिक जीत की शिल्पकार हैं.त्रिपुरा में लेफ्ट का किला ध्वस्त कर बीजेपी की जीत का असली नायक है ये RSS का प्रचारक


2013 में त्रिपुरा में बीजेपी को सिर्फ 2% वोट मिले थे. लेकिन उसके बाद बीजेपी ने त्रिपुरा में जमीनी स्तर पर काम किया. निकाय चुनावों में 221 सीटें जीतकर बीजेपी ने अपनी जमीन मजबूत की थी. 2014 में सरकार आने के बाद पूर्वोत्तर के राज्यों पर बीजेपी ने खास ध्यान दिया. पीएम मोदी ने त्रिपुरा में खुद चार रैलियां कीं, अमित शाह ने भी त्रिपुरा में बंगाली हिंदू आबादी में करीब 70% नाथ योग संप्रदाय के वोटर हैं. जिन्हें अपने पाले में लाने के लिए योगी आदित्यनाथ ने रोड शो और जनसभाएं कीं.त्रिपुरा में बीजेपी की जीत का योगी कनेक्शन


त्रिपुरा में बीजेपी की ऐतिहासिक जीत का अगला कारण है, आदिवासी वोटर के लिए खास रणनीति. 30% वोट शेयर और 20 सीट पर असर डालने वाले आदिवासियों पर बीजेपी ने ध्यान दिया. माना जाता था कि त्रिपुरा में लेफ्ट की सीटों की गिनती 21 से होती है. माना जाता था कि 20 आदिवासी सीटें लेफ्ट की ही हैं. लेकिन बीजेपी ने आदिवासियों को विकास और रोजगार के मुद्दे पर अपनी तरफ खींच लिया.


यानी 25 साल से चली आ रही सत्ता के खिलाफ लहर को अपने पाले में खींच, स्थानीय मुद्दों और जनभावना को भांपकर, जमीन पर कार्यकर्ताओं के दम पर लोगों को जोड़कर, आदिवासियों के लिए खास ऱणनीति और माणिक सरकार के खिलाफ मोदी सरकार के विकास मॉडल को रखकर त्रिपुरा में बीजेपी ने इतिहास रच दिया.