नई दिल्ली: उत्तर-पूर्वी दिल्ली के गोकुलपुरी में कल शहीद हुए कांस्टेबल रतनलाल का आज 26 फरवरी को अंतिम संस्कार किया गया. कल उन्हें पूरे राजकीय सम्मान के साथ आखिरी सलामी दी गई थी. रतनलाल नामक एसीपी गोकुलपुरी दफ्तर में तैनात थे. यहां नागरिकता संशोधन कानून का विरोध कर रहे और कानून के समर्थकों के बीच झड़प हुई. हिंसक लोगों की भीड़ को तितर-बितर करने पहुंचे पुलिसकर्मियों पर लोगों ने ईंट-पत्थर बरसाए. इस हमले में हेड कांस्टेबल रतनलाल पूरी तरह जख्मी हुए और उनकी मौत हो गई.


घटनास्थल पर मौजूद प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, हवलदार रतनलाल भीड़ के बीच फंस गए. बुरी तरह से घायल कॉन्स्टेबल रतन लाल को तुरंत अस्पताल ले जाया गया. जहां इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई. हेड कांस्टेबल रतनलाल मूलरूप से राजस्थान के सीकर के रहने वाले थे.



बुखार होने पर भी ड्यूटी कर रहे थे दिल्ली हिंसा में मारे गए हेड कॉन्स्टेबल रतनलाल


शहीद रतनलाल ऐसे पुलिसकर्मी थे जिनमें ड्यूटी को लेकर अपार जज्बा था. दैनिक भास्कर में छपी रिपोर्ट के मुताबिक सोमवार को जब हिंसा हो रही थी उस वक्त रतनलाल को बुखार था. लेकिन हेड कांस्टेबल अपने स्वास्थ्य की फिक्र किए बगैर ड्यूटी पर तैनात थे. परिवार को टीवी पर खबर देखने के बाद उनकी मौत की जानकारी मिली. उनके परिवार में पत्नी पूनम, एक बारह साल की बेटी, एक दस साल की बेटी और सात साल का बेटा है.


बता दें कि राजधानी दिल्ली में आज लगातार तीसरे दिन भी हिंसा जारी है. दिल्ली में हुई हिंसा में हेड कांस्टेबल समेत सात लोगों की जान चली गई. आज सुबह मौजपुर में पथराव हुआ और उसके बाद प्रदर्शनकारियों की ओर से आगजनी की गई. इन इलाकों में कल भी हिंसा की घटनाएं हुई थीं. हिंसा को देखते हुए आज दिल्ली में कई मेट्रो स्टेशन बंद कर दिए गए हैं.


दिल्ली में बीते 30 सालों की सबसे बड़ी हिंसा, 7 लोगों की मौत, 70 जख्मी

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में सीएए समर्थकों और सीएए विरोधियों के बीच हुई हिंसा में मरने वालों की संख्या बढ़कर सात हो गई है. इस हिंसा में दिल्ली पुलिस के हेड कांस्टेबल रतनलाल भी शहीद हो गए हैं. हिंसा में लगभग 70 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं. उत्तर-पूर्वी दिल्ली में आज सुबह भी हिंसा व पत्थरबाजी की कई छिटपुट वारदातें होती रही. मौजपुर, बाबरपुर, जाफराबाद, गोकुलपुरी, बृजपुरी समेत कई इलाकों में पुलिस व रैपिड एक्शन फोर्स (आरएएफ) की तैनाती की गई है. इसके बाद भी कई इलाकों में आपसी भिड़ंत व एक दूसरे पर पत्थरबाजी की घटनाएं अभी भी हो रही हैं. दिल्ली में इतनी बड़ी हिंसा लगभग तीस साल बाद हुई है.


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