दिल्ली में 2020 में हुए दंगों के तीन आरोपियों को हाई कोर्ट से मिली जमानत के खिलाफ दिल्ली पुलिस सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है. नताशा नरवाल देवांगना कलिता और आसिफ इकबाल तन्हा को दी गई जमानत का विरोध करते हुए पुलिस ने कहा है कि हाई कोर्ट के जज सबूतों के बजाय सोशल मीडिया में लिखी जा रही बातों से ज्यादा प्रभावित नजर आए. जिन दंगों में 53 लोग मारे गए, उसकी योजना बनाने और साजिश रचने के आरोपियों को जमानत देते हुए हाई कोर्ट ने यह कह दिया कि उनकी गिरफ्तारी असहमति की आवाज को दबाने की कोशिश थी.


दिल्ली पुलिस ने 300 पन्नों की 3 याचिकाएं दाखिल की


दिल्ली पुलिस ने तीनों आरोपियों की जमानत के खिलाफ लगभग 300 पन्नों की 3 याचिकाएं दाखिल की हैं. इसमें कहा गया है कि हाई कोर्ट के जजों ने न गैरकानूनी गतिविधि निषेध अधिनियम (UAPA) के तहत लगाए गए आरोपों की गंभीरता को देखा, न पुलिस की तरफ से जुटाए गए ठोस सबूतों पर ध्यान दिया. उन्होंने सोशल मीडिया में एक वर्ग की तरफ से लिखी जा रही बातों के असर में आ कर पूरी तरह अतार्किक फैसला दिया है. जजों ने फैसले में जो लिखा है उससे यह लगता है जैसे यह कोई छात्रों का शांतिपूर्ण तरीके से किया गया विरोध प्रदर्शन था, जिसका पुलिस दमन करना चाहती हो. जबकि असल मे यह बड़े पैमाने पर हिंसा फैला कर दिल्ली को दंगों की आग में झोंकने के सुनियोजित षड्यंत्र था.


याचिका में कहा गया UAPA कानून को नहीं समझ पाया हाईकोर्ट


हाई कोर्ट के जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और अनूप भंबानी के फैसले को रद्द करने की मांग करते हुए पुलिस ने  यह भी कहा है कि इस आदेश का असर देश भर में हिंसा और आतंकवाद के तमाम मामलों पर होगा. हाई कोर्ट ने यह कह दिया है कि UAPA सिर्फ उन्हीं मामलों में लगना चाहिए, जिनमें राष्ट्रीय सुरक्षा प्रभावित हो रही हो. इस निष्कर्ष को आधार बनाया जाए तो आंतरिक हिंसा के तमाम मामले जिनकी जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA)  कर रही है, वह कोर्ट में टिक नहीं पाएंगे. सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता की देखरेख में तैयार याचिका में कहा गया है कि UAPA कानून पास करते समय संसद की जो सोच थी, उसे समझ पाने में भी हाई कोर्ट असफल रहा है.


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