नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने आज डीएमआरसी से कहा कि वह कैसे यात्रियों को फ्री में पीने का पानी मुहैया नहीं कराने को सही ठहरा सकता है जब कोच्चि, जयपुर, लखनऊ और अन्य शहरों में मेट्रो सेवाएं ऐसा कर रही हैं. मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति वी के राव की बेंच ने दिल्ली मेट्रो रेल निगम (डीएमआरसी) से पूछा कि कैसे मेट्रो स्टेशनों के भीतर वह यात्रियों को एक स्थान पर पेयजल मुहैया कराने जा रही है, जिससे सबकी उस तक पहुंच हो.

सुनवाई की अगली तारीख 12 अक्टूबर

अदालत ने कहा कि डीएमआरसी वाले साफ करें कि इसे कैसे लागू करेंगे. इसके साथ ही अदलात ने कहा कि स्टेशन के भीतर एक खास स्थान पर फ्री में पीने का पानी मुहैया कराया जा सकता है, जहां सभी यात्रियों की पहुंच हो. अदालत ने मामले की अगली सुनवाई की तारीख इसके बाद 12 अक्टूबर को निर्धारित कर दी.

कुश कालरा ने लगाई थी याचिका

अदालत ने यह सूचना तब मांगी जब डीएमआरसी ने एक हलफनामे में कहा कि जिन स्टेशनों पर वाटर एटीएम या कियोस्क नहीं हैं वहां पानी की तत्काल जरूरत महसूस करने वाला व्यक्ति उसके अधिकारियों से संपर्क कर सकता है. याचिकाकर्ता कुश कालरा की तरफ से अधिवक्ता कुश शर्मा ने अदालत से कहा कि अन्य शहरों में मेट्रो सेवाएं यात्रियों को फ्री में पीने का पानी मुहैया कराती हैं, लेकिन दिल्ली मेट्रो ऐसा नहीं करती है, जबकि वह उन सभी परियोजनाओं में सलाहकार है.

अपना पानी ले जाने को स्वतंत्र हैं यात्री- डीएमआरसी

इस दलील पर गौर करते हुए अदालत ने डीएमआरसी से पूछा, ‘‘उसके लिये आपकी मंशा क्या है.’’ डीएमआरसी ने अदालत से कहा कि वह मेट्रो स्टेशनों पर सूचना मुहैया कराएगी कि कहां आपात स्थिति में पीने का पानी उपलब्ध होगा. मेट्रो ने यह भी कहा कि उसने अपने स्टेशनों पर वाटर एटीएम लगाए हैं जहां दो रुपये प्रति ग्लास के हिसाब से पानी उपलब्ध कराया जाता है. उसने यह भी कहा कि यात्री अपना पेयजल भी ले जाने को स्वतंत्र हैं.

सुविधाओं के दुरुपयोग न हो इसके लिए लेते हैं कम पैसा

डीएमआरसी ने इससे पहले अदालत से कहा था कि उसके स्टेशनों पर पीने के पानी और शौचालय के लिये बहुत कम पैसा लिया जाता है ताकि इन सुविधाओं के दुरुपयोग को रोका जा सके. अदालत एकल न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ कालरा की अपील पर सुनवाई कर रही थी. एकल न्यायाधीश ने कहा था कि मेट्रो में यात्रा करने वाले यात्रियों को मुफ्त पेयजल का अधिकार नहीं है.

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