Delhi Court: दिल्ली की एक कोर्ट का कहना है कि जांच एजेंसी आरोपी से जबरदस्ती उसके इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस (Electronic Device) का पासवर्ड नहीं ले सकती है. उन्हें पासवर्ड बताने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है. राउज एवेन्यू कोर्ट के विशेष न्यायाधीश नरेश कुमार लाका ने केंद्रीय जांच ब्यूरो की तरफ से दायर एक आवेदन को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की है. 


कोर्ट ने कहा कि आरोपी को उक्त जानकारी देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता, क्योंकि वह भारत के संविधान के अनुच्छेद 20(3) का उल्लंघन माना जाता है. जज ने अपना विचार रखते हुए कहा कि अगर आईओ पासवर्ड (Password) के लिए आरोपी को मजबूर करता है तो अनुच्छेद 20(3) के तहत संवैधानिक अधिकार खतरे में पड़ सकता है. 


बायोमेट्रिक्स और पासवर्ड अलग-अलग तरीकों 


नरेश कुमार लाका ने कहा कि हालांकि कर्नाटक हाई कोर्ट के एक फैसले में पहले कहा गया था कि पासवर्ड और बायोमेट्रिक्स (Biometrics) समान हैं, हाल ही में अधिनियमित आपराधिक प्रक्रिया में अधिनियम ने पासवर्ड और बायोमेट्रिक्स के लिए अलग-अलग तरीकों का आह्वान किया है. यानी एक आरोपी से बायोमेट्रिक्स लिया जा सकता है.


प्राइवेसी के अधिकार के खिलाफ 


कोर्ट ने कहा कि कंप्यूटर में आरोपी व्यक्ति का निजी डेटा हो सकता है और इसे जांच एजेंसी के सामने रखना उसकी प्राइवेसी के अधिकार के साथ हस्तक्षेप कर सकता है. जज ने कहा कि पासवर्ड अपने आप में एक गवाही नहीं है. साथ ही राइट टू प्राइवेसी यानी निजता का अधिकार हर व्यक्ति को होता है. निजता के अधिकार को लेकर कोर्ट पहले भी फैसला सुना चुके हैं. कलकत्ता हाई कोर्ट ने कहा था आरटीआई अधिनियम के तहत मृत व्यक्ति के निजी चैट या फिर व्यक्तिगत तस्वीरों को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है. 


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