Defense Ministry Ballistic Helmets For Sikh Soldiers: धार्मिक सिख संगठन भले ही भारतीय सेना के नए हेलमेट का विरोध कर रहे हैं लेकिन आपको बता दें कि कश्मीर में आतंक-विरोधी ऑपरेशंस में सिख सैनिक बुलेट और गोलियों से बचाव के लिए पहले से ही लोहे का बना स्वदेशी पटका-नुमा हेलमेट अपनी पगड़ी के ऊपर पहनते आए हैं.


रक्षा मंत्रालय ने इमरजेंसी प्रोक्योरमेंट के तहत इसी महीने 5 जनवरी को सिख-सैनिकों के लिए खास बैलिस्टिक हेलमेट खरीदने की आरएफआई यानी टेंडर प्रक्रिया जारी की है. ये हेलमेट सिखों की सिर पर बांधी जाने वाली पगड़ी के ऊपर पहनने के लिए हैं, इसीलिए ये आकार में थोड़े अलग और बड़े हैं. रक्षा मंत्रालय ने करीब 13 हजार (12, 730) वीर-हेलमेट खरीदने का फैसला लिया है. इनमें से 8911 लार्ज-साइज के हैं और 3819 एक्सट्रा-लार्ज साइज के हैं.


SGPC ने जताया ऐतराज


रक्षा मंत्रालय के इस फैसले के बाद सिख संगठनों ने सिख सैनिकों की पहचान से छेड़छाड़ को लेकर सवाल खड़े किए हैं. श्री गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) ने इस बावत रक्षा मंत्री को पत्र लिखकर अपना ऐतराज भी जताया है.




अकाल तख्त ने भी सिख सैनिकों के लिए विशेष हेलमेट पहनने पर आपत्ति जताई है लेकिन भारतीय सेना के विश्वसनीय सूत्रों ने बताया कि जम्मू-कश्मीर में काउंटर इंसर्जेंसी और काउंटर टेररिस्ट ऑपरेशन (सीआई-सीटी ऑप्स) में सिख सैनिक पहले से ही लोहे का बना एक खास पटका-नुमा हेलमेट अपनी पगड़ी के ऊपर पहनते आए हैं क्योंकि इस पटके से आतंकियों की गोलियों से काफी हद तक बचाव होता है. इसके अलावा एलओसी की फॉरवर्ड पोस्ट पर सैनिक ये पटका पहनते आए थे. वर्ष 2017 तक जम्मू-कश्मीर और एलओसी पर सभी सैनिक अपने सिर के बचाव के लिए ये पटका पहनते आए थे.


वर्ष 2017 में रक्षा मंत्रालय ने कानपुर की जानी-मानी स्वदेशी कंपनी एमकेयू से मेक इन इंडिया के तहत डेढ़ लाख बैलिस्टिक हेलमेट खरीदने का करार किया था. कई दशक बाद सेना को ये आधुनिक हेलमेट मिलने का करार किया गया था जिसकी कुल कीमत करीब 170 करोड़ थी.


इतना है वीर हेलमेट का वजन


सेना के इन्फेंट्री जवान और राष्ट्रीय राइफल्स के सभी जवान तब तक ‘पटका’ इस्तेमाल करते थे. ये देश में ही बने हुए हैं और एक लोहे की मोटी ग्रिप पर मात्र कपड़ा लिपटा हुआ होता था. यह पटका मात्र माथे को सुरक्षा प्रदान करता था लेकिन इस पटके से ना तो सिर और न ही कान के करीब का हिस्सा या फिर गर्दन की सुरक्षा होती थी. यही वजह है कि सैनिकों की सुरक्षा ठीक प्रकार से नहीं हो पा रही थी, साथ ही ये पटका लोहे का होने की वजह से काफी भारी होता था. इस पटके का वजन करीब ढाई से तीन किलो का होता है जबकि एमकेयू कंपनी की ओर से बनाए जा रहे हेलमेट का वजन मात्र एक किलो तीस ग्राम है. जवानों को लंबे समय तक पटका लगाए रखने में काफी दिक्कत आती थी.




सीजफायर एग्रीमेंट (फरवरी 2021 से पहले) एलओसी पर पाकिस्तान की स्नाइपर फायरिंग से भी भारतीय सैनिक वीरगति को प्राप्त हो रहे थे. स्नाइपर फायरिंग में दुश्मन की कोशिश होती है कि गोली शरीर के ऊपरी हिस्से में मारी जाए क्योंकि शरीर का ऊपरी हिस्सा काफी संवदेनशील होता है और इस कारण से सैनिक मारे जा रहे थे. इसलिए एलओसी पर तैनात सैनिकों के लिए एमकेयू के नए हेलमेट काफी सेफ्टी प्रदान करने वाला माने गए थे.


बुलेट-बम से बचाता है बैलिस्टिक हेलमेट


आतंकग्रस्त जम्मू-कश्मीर और उत्तर पूर्व के उग्रवाद प्रभावित राज्यों में बम विस्फोट और हैंड ग्रैनेड की मार से भी यह आधुनिक बैलिस्टिक हेलमेट काफी सेफ्टी प्रदान करता है क्योंकि बम विस्फोट से कभी-कभी सिर में भी काफी चोट आती थी, लेकिन नए हेलमेट से सिर की सेफ्टी भी रहती है. यही वजह है कि सीआई-सीटी ऑप्स में तैनात सिख सैनिकों के लिए अब रक्षा मंत्रालय 13 हजार नए वीर-हेलमेट खरीदने जा रहा है. माना जा रहा है कि यह करार भी एमकेयू कंपनी से ही किया जा सकता है क्योंकि एमकेयू ने पहले ही सिख सैनिकों के लिए 'वीर हेलमेट' बनाकर तैयार कर लिया है.


हेलमेट में कम्युनिकेशन और नाइट विजन डिवाइस लगा पाएंगे जवान


ये मार्डन कॉम्बेट वीर-हेलमेट युद्ध और काउंटर इंसर्जेंसी और एंटी टेररिस्ट ऑपरेशन के लिए खासतौर से तैयार किए गए हैं. ये हेलमेट नाइन (9) एमएम कारतूस को झेलने में सक्षम हैं. ये हेलमेट किसी भी आधुनिक योद्धा के लिए बेहद जरूरी हैं क्योंकि ये सिर, माथा, कान और गर्दन की सुरक्षा करते हैं. साथ ही ये हेलमेट बम और ग्रेनेड के वार भी झेल जाता है. खास बात यह है कि इन हेलमेट्स में मॉडर्न कम्युनिकेशन डिवाइस और नाइट विजन डिवाइस लगा जा सकते हैं.


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