साल 2004 में वाजपेयी सरकार की हार के पीछे की एक बड़ी वजह महंगाई मानी जाती है. दरअसल उस समय की बीजेपी सरकार ने पेट्रोलियम की कीमतों से सरकारी नियंत्रण पूरी तरह से हटा दिया था. उस वक्त पेट्रोल-डीजल के दाम को बढ़ने के ही साथ ही घरेलू सिलेंडर की कीमतें भी पहली बार 400 तक पहुंच गई थी. 


यूपीए सरकार जब सत्ता में आई तो पेट्रोल-डीजल को छोड़कर सिलेंडर के दामों को फिर से नियंत्रित किया गया और घरेलू गैस की कीमतों में सब्सिडी दी जाने शुरू कर दी गई. लेकिन कॉमर्सियल सिलेंडरों के दाम बढ़ा दिए गए. 


लेकिन जिन आर्थिक सुधारों को लागू करके डॉ. मनमोहन सिंह ने अपने विश्वस्तरीय अर्थशास्त्री होने का अहसास 90 के दशक में कराया था, सिलेंडर के दामों का नियंत्रण उस सिद्धांत से बिलकुल अलग था.


यूपीए सरकार को पहले कार्यकाल में वामपंथी दलों का भी समर्थन था जो पेट्रोलियम में सरकारी नियंत्रण रखने के समर्थक में थे. लेकिन साल 2009 में जब यूपीए-2 की सरकार बनी तो उसमें वामदल शामिल नहीं थे. देश में साल 2012 तक आते-आते पेट्रोल-डीजल के दाम आसमान छू रहे थे. एलपीजी सिलेंडरों के दामों में सरकार की ओर से दी जा रही सब्सिडी भी अब देश की अर्थव्यवस्था के लिए भारी पड़ने लगी थी. 


सितंबर 2012 में डीजल के दामों में बढ़ोतरी कर दी गई और एक परिवार को साल भर में सब्सिडी वाले 6 सिलेंडर देने का भी कैप लगा दिया. इसके साथ ही रिटेल सेक्टर में विदेशी निवेश को भी मंजूरी दे दी. विपक्ष में बैठी बीजेपी ने इसको मुद्दा बना लिया. उस वक्त सरकार के बचाव के लिए खुद तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह आए. टेलीवीजन पर देश को किए गए संबोधन में उन्होंने कहा था पैसे पेड़ पर नहीं उगते. मनमोहन सिंह ने तर्क दिया कि अगर ये फैसला नहीं लिया जाता तो सरकारी खजाने पर 2 लाख करोड़ रुपये का बोझ पड़ता.  मनमोहन सिंह ने साफ कहा कि पेट्रोलियम के दामों को ज्यादा दिन तक नियंत्रित नहीं किया जा सकता है. 


मनमोहन सिंह के बाद उस समय के वित्तमंत्री पी. चिदंबरम ने भी पेट्रोलियम पदार्थों से सब्सिडी हटाने की वकालत की थी. अक्तूबर 2012 में पी. चिदंबरम ने कहा, 'जिस तरह अभी सब्सिडी दी जा रही है वो हमेशा नहीं रहेगी. सब्सिडी आर्थिक नीतियों के हिसाब से ठीक नहीं है. 


बता दें कि ये वही वक्त था जब बीजेपी सिलेंडर पर लगाए गए कैप और डीजल के दामों में बढ़ोतरी के बाद पूरे देश में प्रदर्शन कर रही थी. साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव के बाद नरेंद्र मोदी की अगुवाई में एनडीए की सरकार बनी. प्रचंड बहुमत के साथ आई बीजेपी के लिए आर्थिक सुधार लागू करना आसान था और वो भी उसी राह पर चली जिसकी बात डॉ. मनमोहन सिंह और पी. चिदंबरम अपनी सरकार के दौरान कर रहे थे.


अभी की सरकार में बीते 10 सालों में कितना बढ़ा रेट




पिछले 9 सालों में कितने बढ़े हैं सिलेंडर के उपयोगकर्ता


भारत में पिछले नौ सालों में गैस सिलेंडर का इस्तेमाल करने वाले उपभोक्ता में काफी तेजी से वृद्धि देखी गई है. आंकड़ों की मानें तो साल 2014 के अप्रैल महीने में घरेलू एलपीजी उपभोक्ता की संख्या 14.52 करोड़ थी. जो कि साल 2023 के मार्च महीने तक बढ़कर 31.36 करोड़ हो गई. सिलेंडर के इस्तेमाल में बढ़त का श्रेय एनडीए सरकार कई मौकों पर अपने प्रधान मंत्री उज्ज्वला योजना (पीएमयूवाई) को देती आई है. 


पीएमयूवाई की एक रिपोर्ट कहती है कि साल 2014 से 62 प्रतिशत से ज्यादा लोगों ने साल 2016 में अपने घरों में गैस कनेक्शन लगवाया था. यह संख्या साल 2019 में 80 प्रतिशत हुई और साल 2022 में आश्चर्यजनक 104.1 प्रतिशत तक बढ़ गई थी. वहीं 30 जनवरी, 2023 तक पीएमयूवाई के तहत जारी किए गए कनेक्शनों की कुल संख्या 9.58 करोड़ थी. 


2004 से 2014 में कितनी थी सिलेंडर की कीमत


साल 2004 में नॉन सब्सिडी सिलेंडर की कीमत 281 रुपये थी. इसके 10 साल बाद 1 मई 2014 को, यानी जब तक यूपीए की सरकार रही उस वक्त तक नॉन सब्सिडी सिलेंडर की कीमत 928 रुपये तक पहुंच गई थी. यानी यूपीए के कार्यकाल में 10 साल के भीतर नॉन सब्सिडी एलपीजी की कीमत में 197% की बढ़ोतरी हुई थी. 


LPG सिलेंडर का दाम मोदी सरकार से पहले


इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के अनुसार एनडीए के पहले कार्यकाल यानी एनडीए-1 में सब्सिडी वाले सिलेंडर की कीमत 414 रुपये थी जबकि बिना सब्सिडी वाले सिलेंडर की कीमत 928.5 रुपये थी. वहीं यूपीए के पहले कार्यकाल में सब्सिडी वाले सिलेंडर की कीमत 249 रुपये थी. 


एनडीए के दूसरे कार्यकाल यानी एनडीए-2 में सब्सिडी वाले सिलेंडर की कीमत 903 रुपये प्रति सिलेंडर थी. इन दौरान बिना सब्सिडी वाले सिलेंडर की कीमत 1,103 रुपये थी. वहीं यूपीए के दूसरे कार्यकाल में सब्सिडी वाले सिलेंडर की कीमत 414 रुपये थी और बिना सब्सिडी वाले सिलेंडर की कीमत 1,241 था. 




BJP सरकार के मुकाबले क्या कांग्रेस के कार्यकाल में LPG सिलेंडर ज़्यादा महंगा था?


चुनाव प्रचार के दौरान सोशल मीडिया पर दावा किया गए था कि एनडीए सरकार में LPG गैस की कीमत में बढ़ोतरी होने के बावजूद ये कीमत UPA सरकार के समय से सस्ती है. हालांकि आंकड़ों से देखें तो ये सच है कि LPG की कीमत बीजेपी की सरकार की तुलना में कांग्रेस के कार्यकाल में ज़्यादा थी. लेकिन कांग्रेस ने जो सब्सिडी दिया था उसे लगाने के बाद उपभोक्ता को बीजेपी की तुलना में काफी कम कीमत में सिलेंडर मिलता था. 


कांग्रेस के समय नॉन सब्सिडी वाले LPG की कीमत ज्यादा क्यों थी 


दरअसल देश में जब यूपीए की सरकार थी उस वक्त नॉन-सब्सिडाइज्ड गैस सिलेंडर की वैश्विक कीमत भी ज्यादा थी. लेकिन, क्योंकि उस वक्त की सरकार ने सिलेंडर पर सब्सिडी दी हुई थी इसलिए उपभोक्ता को भी आज के मुकाबले कम कीमत चुकानी पड़ती थी. 


द हिंदू की एक रिपोर्ट की मानें तो साल 2014 में LPG की वैश्विक कीमत में गिरावट आई है, लेकिन इसके बाद भी भारतीय जनता पार्टी के कार्यकाल में सब्सिडी को बंद कर दिया गया था. 


हालांकि, पेट्रोलियम एवं नेचुरल गैस और स्टील मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान की मानें तो देश में कोरोना के कारण हुए लॉकडाउन के दौरान प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत लगभग 8 करोड़ लोगों को 14 करोड़ सिलेंडर मुफ्त में प्रदान किये गये थे.


ग़ैर-सब्सिडी सिलेंडर की इतनी ज्यादा कीमत क्यों 


दरअसल हमारे देश में LPG की कीमत कितनी रखी जाएगी इसे अंतरराष्ट्रीय कीमतों के आधार पर तय किया जाता है. यानी क्षेत्रीय आधार पर सिलेंडर की कीमत तय करने से पहले इस कीमत को डॉलर से बदली जाती है. इसके बाद लोकल खर्चे जैसे, ट्रांसपोर्ट, पैकिंग, मार्केटिंग, डीलर के कमीशन और GST के ख़र्च जोड़े जाते हैं. 


लोकल खर्च में बहुत ज्यादा कुछ नहीं बदला जाता है. एक कारण ये भी है कि सरकार LPG की कीमत हर महीने बढ़ाती-घटाती रहती है, क्योंकि इसका फ़ैसला अंतर्राष्ट्रीय कीमत में बदलाव के आधार पर ही किया जाता है. 


कैसे मिलती है LPG पर सब्सिडी 


साल 2012 में द हिंदू की एक रिपोर्ट में इंडियन ऑइल कॉर्पोरेशन के चेयरमैन आरएस बुटोला ने इस सवाल का जवाब देते हुए बताया था कि कोई भी सरकार LPG की कीमत सब्सिडी और अंडर रिकवरी के ज़रिये नियंत्रित करती है.


इसे समझें कि भारत ने जिस कीमत पर रिफाइनरी से LPG खरीदा है, अगर उसे बेचने की कीमत उससे कम है तो इसका नुकसान सरकार या ऑइल मार्केटिंग कंपनी उठाती है. 


2014 से ही सब्सिडी और ग़ैर-सब्सिडी वाले सिलेंडर की कीमत में अंतर की कमी आई है. पेट्रोलियम प्लानिंग और एनालिसिस सेल (PDF देखें) के मुताबिक, अंडर रिकवरी की रकम मई 2020 से लगभग शून्य हो चुकी है. द हिन्दू बिज़नेसलाइन ने भी 2020 में यही रिपोर्ट किया था. यानी, अब LPG पर सब्सिडी नहीं मिलती है. ऑल्ट न्यूज़ ने इंडियन ऑइल की हेल्पलाइन से संपर्क कर इस बात की पुष्टि की.


सब्सिडी क्या होती है?


जब सरकार किसी संस्था को या इंडिविजुअल को पैसा ट्रांसफर करती है. जिससे की वह किसी प्रोडक्ट या सर्विस के रेट कम कर सके. ऐसा सरकार इसलिए करती है ताकि उनकी प्राथमिकताओं के आधार पर ये सुनिश्चित किया जा सके कि जो ज्यादा आवश्यकता की चीजे है वो कम कीमत में उपलब्ध हो सके. भारत की बात की जाए तो यहां  पेट्रोलियम सेक्टर, खाद्य सेक्टर और इंटरेस्ट दरों में सरकार सबसे ज्यादा सब्सिडी देती है.




 


सब्सिडी सरकारी खजाने पर कितना बड़ा बोझ


यूपीए की सरकार में यानी साल 2012-13 में पेट्रोलियम उत्पादों पर केंद्र सरकार 96,800 करोड़ रुपये की सब्सिडी दे रही थी, हालांकि एक्साइज के रूप में उन्हें केवल  63,478 करोड़ रुपये का राजस्व मिल रहा था. वहीं साल 2013-14 में भी फ्यूल सब्सिडी पर यूपीए सरकार 85,378 करोड़ रुपये की सब्सिडी दे रही थी. वहीं इससे मिला एक्साइज राजस्व 67,234 करोड़ रुपये रहा.


वहीं एनडीए के कार्यकाल की बात की जाए तो साल 2017-18 और 2018-19 में सरकार फ्यूल सब्सिडी पर 24,460 करोड़ रुपये और 24,837 करोड़ रुपये खर्च कर रही थी और एक्साइज ड्यूटी के रूप में 2 लाख 29,716 करोड़ और 2 लाख 14,369 करोड़ मिला.