नई दिल्ली: क्या कोरोना के ख़िलाफ़ लड़ाई में सस्ती दवाइयों के इस्तेमाल को रोकने की कोशिश हो रही है ? क्या बड़ी कंपनियां सस्ती दवाइयों के ख़िलाफ़ जानबूझकर साज़िश कर रही हैं ? ये सवाल आज गृह मंत्रालय से जुड़ी संसदीय स्थायी समिति की बैठक में मौजूद सदस्यों ने उठाया.


समिति की बैठक में केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला और स्वास्थ्य मंत्रालय में संयुक्त सचिव लव अग्रवाल शरीक हुए. सांसदों ने इन अधिकारियों से कोरोना के इलाज में उपयोग होने वाली दवाइयों के बारे में सवाल पूछा. सांसदों ने एक सुर में अधिकारियों से बीमारी के इलाज से जुड़ी दवाइयों के बारे में पूछा. सांसदों ने इलाज में इस्तेमाल हो रहीं महंगी दवाइयों पर अपना रोष प्रकट करते हुए कहा कि आम लोगों के लिए इतनी महंगी दवाइयां खरीदना सम्भव नहीं है. सूत्रों के मुताबिक़ सांसदों ने ख़ासकर रेमडेसिवीर (Remdesivir) नामक दवाई का नाम लिया. सांसदों का कहना था कि न सिर्फ़ महंगी दवाइयों की अधिकतम क़ीमत तय की जानी चाहिए, बल्कि उसकी उपलब्धता भी बढ़ाई जानी चाहिए, ताकि उसकी कालाबाज़ारी नहीं हो सके.


बैठक में मौजूद ज़्यादातर सांसदों ने इस बात पर चिंता जताई कि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन और डेक्सामिथासोन (Dexamethasone) जैसी दवाइयों को बेअसर बताकर उन्हें दरकिनार किया जा रहा है, जबकि वो सस्ते और सुलभ हैं. सांसदों ने आशंका जताई कि इसके पीछे दुनिया की बड़ी फार्मा कम्पनियों का हाथ है, जो जानबूझकर सस्ती दवाइयों को बेअसर बताने की कोशिश कर रही हैं. सांसदों का कहना था कि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन कुछ देशों में तो कारगर हैं, लेकिन कुछ देश इसे बेअसर बता रहे हैं. उनका कहना था कि सरकार को सस्ती दवाइयों के इस्तेमाल को बढ़ावा देना चाहिए और इसके लिए एक व्यवस्था बनाई जानी चाहिए.


सांसदों ने बैठक में कोरोना के वैक्सीन को लेकर भी सवाल पूछे. कुछ सांसदों ने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अधिकारियों की बातें नकारात्मकता पैदा कर रही हैं, लिहाजा वैक्सीन के बारे में जल्दी ही सकारात्मक ख़बर देने की ज़रूरत है.


हालांकि बैठक में लॉकडाउन के दौरान सरकार की ओर से की गई कोशिशों को सर्वसम्मति से सराहा गया. ख़ासकर सरकार की ओर से ग़रीबों को मुफ्त अनाज दिए जाने की पहल की तारीफ़ की गई.


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