कोरोना की दूसरी लहर ने अब बच्चों पर भी बेहद तेजी से अपना कहर बरपाना शुरु कर दिया है, लिहाजा ये सवाल उठ खड़ा हुआ है कि आखिर हम कैसे बचा पायेंगे अपने  देश का बचपन? केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन आज दिल्ली के एम्स अस्पताल में जब जायजा लेने पहुंचे,तो डॉक्टरों ने उन्हें इस हक़ीक़त से वाकिफ भी कराया कि पिछले 12 दिन में कोरोना वायरस का शिकार होने वाले बच्चों की संख्या में बेतहाशा इज़ाफ़ा हुआ है जो चिंताजनक स्थिति है.


एक विभाग के एचओडी ने डॉक्टरों व नर्सों की कमी का हवाला देते हुए मंत्री को यह सुझाव भी दे डाला कि जो हालात हम देख रहे हैं,वे बेहद परेशान करने वाले हैं,लिहाज़ा संक्रमण की चेन तोड़ने के लिये क्या यह नहीं हो सकता कि सरकार दो हफ्ते के लिए संपूर्ण लॉकडाउन कर दे. हालांकि हेल्थ मिनिस्टर ने इसका कोई सीधा जवाब नहीं दिया लेकिन मंत्री के साथ ही एक डॉक्टर होने के नाते उन्हें इतना जरुर समझ आ गया होगा कि हालात दिनोंदिन कितने नाजुक होते जा रहे हैं.


हालात इसलिये डरावने होते जा रहे हैं कि 16 साल से कम उम्र के बच्चों में यह संक्रमण ज्यादा फैल रहा है और कई जगह नवजात शिशु भी इसके लपटे में आ चुके हैं.पहली लहर में कोरोना के अधिकांश शिकार 60-65 साल की उम्र या उससे ज्यादा वाले थे लेकिन अब इस वायरस ने अपना स्वरूप बदलना शुरु कर दिया है. अकेले पांच राज्यों में ही एक मार्च से 4 अप्रैल के बीच कुल 79688 बच्चे कोरोना संक्रमण का शिकार हो चुके हैं.


यहां भी महाराष्ट्र पहले नंबर पर है जहां इनकी संख्या 60 हजार थी. कर्नाटक में 7327,छत्तीसगढ़ में 5940,उत्तरप्रदेश में 3004 और दिल्ली में यह आंकड़ा 2733 था.चार अप्रैल के बाद से लेकर आज तक की ताजा स्थिति क्या है, इस बारे में इन सरकारों ने कोई ब्योरा सार्वजनिक नहीं किया है. यह तो हुई पांच राज्यों की बात लेकिन जरा अंदाजा लगाइये कि पूरे देश का क्या हाल होगा.सरकारें भले ही आंकड़ों की बाजीगरी दिखाती रहें लेकिन डॉक्टरों का कहना है कि ये एक तरह की विस्फोटक स्थिति है.


मेदांता अस्पताल में चेस्ट सर्जरी के चेयरमैन डॉ. अरविंद कुमार के मुताबिक  "10 साल से कम उम्र के बच्चों को यह वायरस इतनी तेजी से पकड़ रहा है कि अगर किसी घर में एक को हुआ,तो वहां पूरा परिवार ही संक्रमित हो रहा है,इसलिये ये विस्फोटक है. अब तक हमारे पास सौ में से चार मरीज ऐसे आ रहे थे जिनकी उम्र 10 साल से कम है लेकिन अब उनकी संख्या दोगुनी होने लगी है.इसी तरह 11 से 18 साल की उम्र वाले मरीजों की संख्या सौ में 10 थी लेकिन अब वह भी बढ़ गई है."


सरकारें तो किसी भी बड़ी आपदा के वक़्त अपनी लापरवाही छुपाने-दबाने की कोशिशें करेंगी ही लेकिन अब पेरेंट्स की जिम्मेदारी दोगुनी इसलिये हो गई है कि उन्हें खुद को बचाने के साथ ही बच्चों को सुरक्षित रखने की ज्यादा एहतियात बरतनी होगी.रेडिक्स अस्पताल के सीएमडी डॉ.रवि मलिक कहते हैं कि "हमारे देश में 18 साल से कम उम्र के बच्चों की आबादी करीब 41 फीसदी है,यानी 55 करोड़ से ज्यादा. लिहाजा यह तय है कि अन्य कई वायरस की तरह कोविड भी अपना स्वरुप बदलेगा और अब वह उस आबादी पर अपना अटैक करेगा जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम है,इसलिए छोटे बच्चों के घर से बाहर निकलने पर पूर्ण पाबंदी लगानी होगी.


जिन बच्चों में इस संक्रमण के शुरुआती लक्षण दिखते हैं,उनमें से 90 फीसदी को अस्पताल में भर्ती कराने की जरूरत नहीं है.अपने फैमिली डॉक्टर या अन्य विशेषज्ञ के जरिये घर पर ही उनका इलाज करके संक्रमण पर काबू पा सकते हैं.18 साल से कम उम्र वालों को कोरोना वैक्सीन लगने में अभी तीन महीने और लग सकते हैं.इसलिये पेरेंट्स यही मानकर बच्चों को जागरुक करें कि वे अभी भी लॉकडाउन वाले माहौल में ही जी रहे हैं."


डॉ. कुमार के मुताबिक अगर किसी बच्चे की कोरोना टेस्ट रिपोर्ट नेगेटिव आती है,तो अपनी मर्जी से ही उसका सिटी स्कैन करवाने की कोई रिस्क न लें,बल्कि डॉक्टर की सलाह लें.वह इसलिए कि इतने हाई रेडिएशन से उसका किडनी फेलियर हो सकता है जो मौत का कारण बन सकता है.