Bharatiya Nyaya Sanhita: मानसून सत्र के आखिरी दिन पेश किए गए भारतीय न्याय संहिता विधेयक 2023 को लेकर राजनीतिक विवाद शुरू हो गया है. कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि इस बिल में भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बाहर निकाल दिया गया है. कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने लोकसभा के अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति से इस बिल की जांच के लिए संसद की एक संयुक्त समिति के गठन की मांग की है. 


केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शुक्रवार (11 अगस्त) को लोकसभा में भारतीय न्यायिक व्यवस्था के तीन पुराने कानूनों में बदलाव करते हुए आईपीसी की जगह भारतीय न्याय संहिता 2023, सीआरपीसी की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और एविडेंस एक्ट की जगह भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 विधेयक पेश किया था.


अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को फेंक दिया गया- मनीष तिवारी


मनीष तिवारी ने कहा कि इस बिल में भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को खिड़की से बाहर फेंक दिया गया है. इसलिए मेरी मांग यह होगी कि लोकसभा के अध्यक्ष और भारत के उपराष्ट्रपति, जो राज्यों की परिषद के अध्यक्ष हैं, को इनमें से प्रत्येक की जांच करने के लिए संसद की एक संयुक्त समिति का गठन करना चाहिए जिसमें सभी दलों के प्रतिष्ठित कानूनी जानकार शामिल हों.


कपिल सिब्बल ने जताई आशंका


आईपीसी, सीआरपीसी और एविडेंस एक्ट में संशोधन पर वरिष्ठ वकील और पूर्व कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने कहा, इस देश में समस्या राजनीतिक उद्देश्यों के लिए पुलिस बलों का दुरुपयोग है. जहां भी बीजेपी सत्ता में है, राजनीतिक विरोधियों पर हमला किया जाएगा और पुलिस बल आम तौर पर सत्ता में राजनीतिक व्यक्तियों के निर्देशों के तहत काम कर रहा है.


उन्होंने कहा, जिस तरह से राजद्रोह कानून में बदलाव किया गया और राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित प्रावधानों को लागू किया गया, बिना यह परिभाषित किए कि किन परिस्थितियों में किसी व्यक्ति पर राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए मुकदमा चलाया जा सकता है. एक तरफ, वे पुलिस को अधिक शक्ति दे रहे हैं और दूसरी तरफ लोगों को चुप करा रहे हैं. यह अस्वीकार्य है.


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