नई दिल्ली: नोटबंदी के नौ महीने बाद रिज़र्व बैंक ने इस सवाल का जवाब दिया है कि पांच सौ और एक हज़ार के कितने पुराने नोट वापस आए. ABP न्यूज़ ने 18 अगस्त को सवाल उठाया था कि रिजर्व बैंक नोटों की वापसी पर जवाब क्यों नहीं दे रहा. अब रिजर्व बैंक ने बताया है कि नोटबंदी में रद्द हुए 99 फीसदी वापस आ चुके हैं. इन आंकड़ों के सामने आने के बाद विपक्ष ने नोटबंदी पर फिर से सवाल उठाए हैं.


आखिर आरबीआई ने जारी किया नोटबंदी का आंकड़ाः 1000 के नोटों में से 99% नोट वापस आए


रिजर्व बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘’30 जून तक कुल मिलाकर 15 लाख 28 हज़ार करोड़ रुपये के पांच सौ और हज़ार रुपये के पुराने नोट वापस आए हैं, जबकि कुल नोटों की कीमत 15 लाख 44 हज़ार करोड़ थी.’’  यानी सिर्फ 16 हज़ार करोड़ रुपये के पुराने नोट वापस नहीं आए. हालांकि इसमें सहकारी बैंकों में और नेपाल में जमा कराए गए नोट शामिल नहीं हैं.


रिजर्व बैंक के इन आंकड़ों को लेकर कांग्रेस ने मोदी सरकार पर हमला बोला है. कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्विटर पर लिखा है, ‘’नोटबंदी भयानक रूप से नाकाम रही है. इससे कई बेगुनाहों की जानें गईं और अर्थव्यवस्था तबाह हो गई. क्या प्रधानमंत्री इसकी जिम्मेदारी लेंगे?’’


 


यूपीए सरकार में वित्त मंत्री रह चुके पी चिदंबरम ने भी नोटबंदी को नाकाम बताते हुए ट्विटर पर लिखा है, ‘’नोटबंदी के बाद 15 लाख 44 हजार करोड़ में से सिर्फ 16 हज़ार करोड़ रुपये नहीं लौटे, नोटबंदी की सिफारिश करने वाले RBI के लिए ये शर्मनाक है. 99 फीसदी नोट कानूनी तरीके से बदल दिए गए. तो क्या नोटबंदी की योजना कालेधन को सफेद करने के लिए थी? रिजर्व बैंक ने 16 हजार करोड़ रुपये कमाए, लेकिन नए नोट छापने में 21 हजार करोड़ रुपये खर्च कर दिए. ऐसे अर्थशास्त्री को तो नोबेल पुरस्कार मिलना चाहिए.’’




 


यहां एक बात समझनी जरूरी है कि आरबीआई ने कहा कि नोट की छपाई में 7965 करोड़ रुपये खर्च हुए. अब ये साफ नहीं है कि चिदंबरम नोटों की छपाई में 21 हज़ार करोड़ के खर्च का दावा किस आधार पर कर रहे हैं.


रिजर्व बैंक ने जो आंकड़े पेश किए हैं उससे पहली नज़र में तो यही लग रहा है कि नोटबंदी से कुछ खास फायदा तो हुआ नहीं, लेकिन सरकार के मुताबिक रिजर्व बैंक के आंकड़ों के गलत मायने निकाले जा रहे हैं.


सरकार का कहना है, ‘’नोटबंदी की वजह से करीब दो लाख फर्जी कंपनियां पकड़ में आयीं, नगद लेन देन कम हुआ और डिजिटल ट्रांजैक्शन में इज़ाफा हुआ. पिछले साल के मुकाबले कैश ट्रांजैक्शन में एक लाख 89 हज़ार 200 करोड़ रुपये की कमी आई और 56 लाख नए करदाता भी जुड़े.’’


ज़ाहिर है रिजर्व बैंक के आंकड़े आने के बाद सवाल तो उठेंगे ही शायद इसीलिए सरकार नोटबंदी के आंकड़े जारी होने के बाद अपने फैसले का बचाव करती नज़र आ रही है.


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