नई दिल्ली: राजनीति में प्रतीकों से चुनावी खेल बनते हैं और कभी बिगड़ते हैं. कोरोना की थमती दूसरी लहर के बीच उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का मैसेज साफ है. यूपी के सीएम ने चार सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र गोद लेने का फैसला किया है.


दो केंद्र गोरखपुर से और एक वाराणसी और अयोध्या में हैं. योगी ने जिन शहरों को चुना है वो उनके ब्रांड हिंदुत्व से मेल खाता है तो अब ये मान कर चलिए कि यूपी चुनाव में आक्रामक हिंदुत्व ही योगी का सबसे बड़ा हथियार होगा. बाकी मुद्दे उसके बाद होंगे. योगी की छवि भी ऐसी ही रही है. पिछले चुनाव में पीएम नरेंद्र मोदी का श्मशान बनाम कब्रिस्तान का नारा हिट रहा था. उन दिनों योगी आदित्यनाथ ने देवा और महादेवा का मुद्दा छेड़ा था. चुनावी रैलियों में इस पर वे खूब तालियां बटोरते थे.


पांच बार सांसद


गोरखपुर को योगी आदित्यनाथ का घर ही समझिए. यहां से वे लगातार 5 बार सांसद रहे. गोरक्षपीठ के महंत बने. फिर यूपी के सीएम तक बन गए तो यहां से उन्होंने दो सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों को गोद ले लिया लेकिन महत्वपूर्ण है वाराणसी और अयोध्या. वाराणसी मतलब काशी. पीएम नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र. उससे भी बढ़कर गंगा और विश्वनाथ महादेव की नगरी.


इन दिनों मंदिर के आसपास के इलाके को खूबसूरत और आकर्षक बनाया जा रहा है. विश्वनाथ कॉरिडोर का शिलान्यास खुद पीएम मोदी ने किया था. अयोध्या को एक तरह से योगी सरकार ने सांस्कृतिक और आध्यात्मिक प्रतीक बना दिया है. हर साल वहां दीवाली, हनुमानगढ़ी जाकर बजरंगबली के दर्शन और फिर रामलला की पूजा अर्चना की जाती है. अयोध्या में भव्य राम मंदिर के लिए चबूतरा बनाने का काम तेजी से चल रहा है. अयोध्या हर बार बीजेपी के लिए चुनावी मुद्दा रहा है.


लखनऊ से लेकर दिल्ली तक बैठकों के बाद तय हो गया है की यूपी चुनाव में योगी आदित्यनाथ ही पार्टी के चेहरा होंगे. चुनावी मोहरे और वादे भी उनके ही एजेंडे के हिसाब से तय होंगे. स्वास्थ्य केंद्रों का चुनाव तो उसकी एक झलक समझिए.


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