Chor Meghna: पश्चिम बंगाल के नादिया जिले की एक बस्ती के लोगों को रोज अपने ही देश में आने के लिए कागजात दिखाने पड़ते हैं. यहां तक कि इस बस्ती के लोगों को अपने देश में एंट्री का टाइम भी फिक्स है. भारत-बांग्लादेश की सीमा पर चोर मेघना नाम की एक भारतीय बस्ती के रहने वालों को रोज इस जद्दोजहद से दो-चार होना पड़ता है.


इस बस्ती के लोगों का कहना है कि भारतीय होने के बावजूद हम सीमा पर लगी कंटीली तारों के उस पार रहने को मजबूर हैं. चोर मेघना नाम की इस भारतीय बस्ती में करीब 750 लोग रहते हैं और सभी को हमेशा अपने साथ आधार कार्ड या वोटर आईडी रखना पड़ता है. इनका कहना है कि इन कागजात के बिना हम अपने ही गांव में नहीं जा सकते हैं.


सीमा-इलाका भारत का, लेकिन अभी भी कंटीली तारों के पार
इंडियास्पेंड की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस गांव के आखिरी छोर पर भारत की सीमा का पिलर लगा दिया गया है. इसके बावजूद सीमा पर लगी फेंसिंग के अंदर ये गांव नहीं है. ये भारत का हिस्सा तो है, लेकिन अभी भी फेंसिंग के उस पार ही है.


पढ़ाई से लेकर दवाई तक के लिए करनी पड़ती है मशक्कत
चोर मेघना गांव में प्राइमरी स्कूल है, लेकिन इससे आगे की पढ़ाई की लिए बच्चों को 'सीमा पार' करनी पड़ती है. कई बड़े स्कूल तारों की बाड़ से करीब 20 किमी तक दूर हैं. इसी तरह स्वास्थ्य सुविधाओं या अन्य जरूरी चीजों के लिए भी उन्हें कंटीली तारों को पार करना पड़ता है.


आने-जाने का टाइम भी है फिक्स
जब भी ये लोग सीमा पार करते हैं तो वहां मौजूद बीएसएफ के जवान इन लोगों का नाम और एंट्री का टाइम रजिस्टर पर नोट करते हैं. साथ ही वापसी का टाइम भी लिखा जाता है. चोर मेघना बस्ती के लोगों के लिए अपने ही देश में आने का टाइम भी फिक्स है. इन लोगों को सुबह 6 बजे से शाम को 6 बजे के बीच में ही एंट्री दी जाती है. अगर कोई किसी वजह से देरी से पहुंचा तो फिर गेट अगले दिन ही खुलते हैं. 


बॉर्डर फेंसिंग को सही करने की मांग 
चोर मेघना के निवासियों का कहना है कि हम केवल इतना चाहते हैं कि इस समस्या का समाधान हो और हमारा गांव भारत से जोड़ दिया जाए. इससे हम रोज होने वाली इस जद्दोजहद से बच जाएंगे. उनका कहना है कि अभी ऐसा लगता है कि हम लोग बाहरी हैं.


कई दशकों से झेल रहे हैं समस्या
16 मई 1974 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और बांग्लादेश के राष्ट्रपति शेख मुजीबुर रहमान के बीच सीमा समझौता हुआ था. इससे चोर मेघना की ये बस्ती भारत के हिस्से में आ गई थी. 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बांग्लादेश यात्रा के दौरान ऐसे तमाम भूमि विवादों का हल भी निकल आया.


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