नई दिल्ली: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की ताकतवर टेबल पर भारत की मौजूदगी भी चीन को खटकने लगती हैं. खासकर ऐसे में जबकि भारत अस्थाई सदस्य के तौर पर सुरक्षा परिषद की क़ई अहम कमेटियों की अध्यक्षता का भी दावेदार हो. यही वजह है कि चीन ने आतंकियों को प्रतिबंधित सूची में डालने वाली अलकायदा सेंक्शन कमेटी की अध्यक्षता पर अड़ंगा लगाया.


हालांकि जनवरी 2021 से सुरक्षा परिषद में शरीक भारत आतंकवाद निरोधक मामलों और लीबिया व तालिबान सम्बन्धी मसलों की कमेटी की अध्यक्षता करेगा. दरअसल, सुरक्षा परिषद में सदस्य देशों के लिए क्रमिक अध्यक्षता का प्रावधान है. साथ ही परिषद के मातहत काम करने वाली विभिन्न कमेटियों में अस्थाई सदस्यों को भी अगुवाई का मौका दिया जाता है.


चीन अकेला ऐसा मुल्क था जिसने इसका विरोध किया
इस कड़ी में बीते दिनों जब भारत के आतंकवाद विरोधी मामलों को देखने वाली और आतंकवादियों व आतंकी संगठनों पर प्रतिबंध तय करने वाली अल कायदा सेंक्शन कमेटी की अध्यक्षता का मामला आया तो चीन अड़ंगा लगाने से बाज़ नहीं आया. राजनयिक सूत्रों के मुताबिक चीन अकेला ऐसा मुल्क था जिसने इसका विरोध किया. ऐसे में अध्यक्षता नॉर्वे को दी गई. हालांकि भारत आतंकवाद निरोधक मामलों सम्बन्धी समिति की अध्यक्षता करेगा. सूत्रों के चीनी विरोध के कारण यह पहला मौका है जब सुरक्षा परिषद की तालिबान व अल कायदा सम्बन्धी उप समितियों की अध्यक्षता अलग अलग देशों के पास होगी. हालांकि उम्मीद की जा रही है कि अगले साल भारत के पास अल-कायदा सम्बन्धी प्रतिबंध समिति की अगुवाई आ सकती है.


भारत के रास्ते में अड़ंगा लगाने के पीछे चीन को थी ये चिंता 


ज़ाहिर तौर पर भारत के रास्ते में अड़ंगा लगाने के पीछे चीन की चिंता अपने चहेते पाकिस्तान को बचाने की थी जो आतंकियों की बड़ी पनाहगाह है. हालांकि सुरक्षा परिषद में कामकाज के तौर तरीकों से वाकिफ़ जानकारों का मानना है कि उप समितियों का अध्यक्ष बनने से बहुत बड़ा फर्क नहीं पड़ता. क्योंकि भारत ने हाफ़िज़ सईद और मसूद अजहर जैसे आतंकियों को सुरक्षा परिषद से बाहर रहते हुए भी प्रतिबंधित सूची में डलवाया था.


अकाट्य सबूतों के आगे चीन को भी झुकना पड़ा
चीन ने मसूद अजहर जैसे आतंकी को बचाने के लिए फ्रांस, ब्रिटेन, रूस जैसे पी-5 देशों की तरफ से पेश प्रस्ताव का रास्ता रोका यह पूरी दुनिया ने देखा. मगर आखिरकार भारतीय दलीलों और पाक प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ अकाट्य सबूतों के आगे चीन को भी झुकना पड़ा.


जानकारों के मुताबिक परिषद के क्रमिक अध्यक्ष या कमेटी के प्रमुख के तौर पर किसी भी देश के पास अपने कार्यकाल के दौरान बैठकें बुलाने और उनका एजेंडा तय करने का अधिकार है. लेकिन परिषद के फैसले का रुख इससे प्रभावित हो यह ज़रूरी नहीं है.


वैसे भारत लंबे समय से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का दायरा बढ़ाने के साथ-साथ उसके कामकाज में पारदर्शिता की वकालत भी करता रहा है. संयुक्त राष्ट्र में फरवरी 2018 को दिए के भाषण में भारत के तत्कालीन स्थाई प्रतिनिधि सैय्यद अकबरुद्दीन ने सुरक्षा परिषद की पर्देदार प्रथाओं और परंपराओं पर गम्भीर सवाल उठाए थे. उन्होंने कहा था कि प्रतिबंध सम्बन्धी कमेटियों में कामकाज एक भूमिगत व्यवस्था से होता है. जहां यह कभी बताया नहीं जाता कि किस देश ने किसी फैसले पर को क्यों ब्लॉक किया. इस मामले में अज्ञात रहने और सर्वसम्मति दिखाने पर ज़ोर दिया जाता है जो पारदर्शिता के कतई खिलाफ है.


संयुक्त राष्ट्र संघ के कामकाज में पी-5 मुल्कों का बड़ा दबदबा
ध्यान रहे कि सुरक्षा परिषद ही नहीं संयुक्त राष्ट्र संघ के कामकाज में पी-5 मुल्कों का बड़ा दबदबा है. सुरक्षा परिषद के पांच स्थाई सदस्य देश अपने हितों और ज़रूरतों के अनुसार निर्णय प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं. भारत समेत कई देश लंबे समय से यह मांग कर रहे हैं कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्य संख्या बढ़ाई जाए. साथ ही मौजूदा वक्त के ज़रूरतों के मुताबिक़ यूएन के कामकाज की व्यवस्था में सुधार किया जाए.


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